खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar Janjati Chhattisgarh Khairwar Tribe Chhattisgarh

खैरवार जनजाति की उत्पत्ति 

खैरवार छत्तीसगढ़ की एक अनुसूचित जनजाति है। इनकी अधिकांश जनसंख्या बिहार व मध्य प्रदेश में पायी जाती है। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश में भी इनकी जनसंख्या निवासरत है। छत्तीसगढ़ में 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 79816 दर्शित है। इनमें पुरुष 40165 तथा स्त्रियाँ 39651 थी।

इनकी जनसंख्या मुख्यतः सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया, बलरामपुर, बिलासपुर, जशपुर आदि जिले में निवास करते हैं। मध्य प्रदेश के पन्ना व छतरपुर जिले में “कोन्दर” कहलाते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

खैरवार जनजाति के उत्पत्ति संबंधी ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। कालोनिल डाल्टन के अनुसार खैरवार शब्द खैर वृक्ष से बना है। गोंड जाति के व्यक्ति जो खैर वृक्ष से कत्था बनाते थे, खैरवार कहलाये। रसेल ने छोटा नागपुर (बिहार) के खैरवारों की उत्पत्ति चेरो और संथाल जो कत्था बनाते थे से माना है। किवदन्ती के अनुसार खैरवार जनजाति के लोग अपनी उत्पत्ति सूर्यवंश के महाराज हरिशचन्द्र के पुत्र रोहिताश्व से मानते हैं।

खैरवार जनजाति का रहन-सहन 

खैरवार जनजाति के लोग उरांव, मुण्डा, गोंड, खड़िया, कंबर आदि जनजातियों के साथ दूरस्थ क्षेत्रों के ग्रामों में निवास करते हैं। इनके घर सामान्यतः मिट्टी के बने होते हैं, उप्पर घास फूस या देशी खपरैल से बनी होती है। घर में 2-3 कमरे होते हैं। घर की दीवार मिट्टी की होती है, जिस पर सफेद या पीली मिट्टी की पुताई होती है। घर का फर्श मिट्टी का होता है, जिसे महिलाएँ गोबर व मिट्टी से लीपती हैं। घर में अनाज कूटने का मूसल, अनाज पीसने की चक्की, अनाज रखने की कोठी, कुछ बर्तन, ओढ्ने बिछाने के कपड़े, कुल्हाड़ी, कृषि उपकरण आदि पाये जाते हैं।

स्त्रियों सिर के बाल में तेल डालकर चोटी या जूड़ा बनाती है। महिलाएँ हाथ चेहरे, पैरों पर गुदना गुदाती हैं। गहनों को शौकीन होती हैं। हाथ में चूड़ियाँ, ऐंठी, नागमोरी, कानों में खिनवा, द्वार, नाक में लौंग, गले में सुतिया सुरड़ा, हमेल आदि महनती हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

वस्त्र – विन्यास में पुरुष कमर के नीचे घुटने तक पछा या धोती, ऊपरी भाग में बड़ी पहनते हैं। महिलाएँ लुगड़ा, पोलका पहनती हैं।

इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो का भात, पेज, मूंग, उड़द, अरहर की दाल, मौसमी सब्जी आदि है। मांसाहार में बकरा, मुर्गा, मछली, तीतर, बटेर, खरगोश, चीतल आदि का मांस कभी-कभी खाते हैं। महुआ से निर्मित शराब पीते हैं। पुरुष बीड़ी पीते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

खैरवार जनजाति का व्यवसाय 

खैरवार जनजाति का आर्थिक जीवन मुख्यतः खैर वृक्ष से कत्था बनाने, जंगली उपज संग्रह तथा कृषि पर निर्भर है। जंगल से खैर वृक्ष की लकड़ी काटकर उसे पानी में डालकर भट्टी में पकाते हैं तथा कस्था गाड़ा होने पर निकालकर सुखाते हैं।

वर्तमान में कत्था निर्माण बहुत कम करते हैं। जंगली उपज महुआ, चार, गोंद, तेंदू पत्ता, लाख, गुल्ली, हर्रा, आँवला, सरई बीज, धवई फूल एकत्र कर बेचते हैं। जिनके पास कृषि भूमि है, ये धान, कोदो, मक्का, मूंग, उड़द, अरहर आदि बोते हैं। जिनके पास कृषि भूमि नहीं है, ये अन्य कृषकों के खेतों में मजदूरी करते हैं। वर्षा ऋतु में स्वयं के उपयोग के लिये मछली पकड़ते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

खैरवार जनजाति की परम्परा 

खैरवार समाज पितृवंशीय, पितृ निवास स्थानीय, पितृसत्तात्मक होता है। खैरवार महर्विवाही उपजातियों में विभक्त है। इनके प्रमुख उपजाति सूरजवंशी, दौलतवंशी, पटबंधी, मटकोदा या कंवर वंशी तथा खैरा है। सूरजवंशी उपजाति अपने को अन्य उपजाति से श्रेष्ठ मानती है। स्वयं को जमींदारी से जुड़े हुए मानते हैं। तथा जनेऊ धारण करते हैं।

उपजातियों में विभिन्न गोत्र पाये जाते हैं। इनके प्रमुख गोत्र नाग, धान, नून, ढेकी, काशी, चन्दन, कछुआ, बहेरा, बेल आदि। गोत्र के जीव-जन्तु, वृक्ष-लता आदि पर आधारित टोटम पाये जाते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव तक अपनी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। गर्भावस्था में कोई विशेष संस्कार नहीं किया जाता है। प्रसव बुजुर्ग महिलाएँ कराती हैं। प्रसव उपरान्त प्रसूता को कुलथी की दाल, छिंद की जड़, गुड़, हल्दी, सरई की छाल, ऐंठीमुड़ी, गोंद, सोंठ आदि का काढ़ा बनाकर पिलाते हैं। तिल, गुड़, सोंठ का लड्डू भी खिलाते हैं। छठे दिन छठी मनाते हैं। रिश्तेदारों को शराब पिलाते हैं। कुल देवी-देवता की पूजा करते हैं।

विवाह उम्र लड़कों की 18 से 21 वर्ष तथा लड़कियों की 16 से 18 वर्ष मानी जाती है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। वर के पिता वधू के पिता को चावल, दाल, गुड़, तेल व नगद 50 से 100 रुपये देते हैं। वधू की माँ के लिये कपड़े देते हैं। विवाह संस्कार जाति का बुजुर्ग व्यक्ति संपन्न कराता है। इसके अतिरिक्त सेवा विवाह, विनिमय, दुकु (घुसपैठ, सहपलायन, विधवा या त्यक्ता पुनर्विवाह को भी समाज स्वीकृति प्राप्त है।

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। कभी-कभी जलाते भी हैं। तीसरे दिन परिवार के पुरुष दाढ़ी, मूंछ व सिर के बाल कटाते हैं। 10वें दिन जाति वालों को भोज देते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

इस जनजाति की अपनी परम्परागत जाति पंचायत (समाज पंचायत) पायी जाती है। जाति पंचायत का प्रमुख “महतो माझी” कहलाता है। इनका पद वंशानुगत होता है जाति पंचायत में विवाह, तलाक, वधू मूल्य, अन्य जाति के व्यक्ति से विवाह, अनैतिक संबंध, सम्पत्ति के बटवारा आदि विवादों का निपटारा किया जाता है। जाति के देवी-देवता की पूजा व्यवस्था भी जाति पंचायत करती है।

खैरवार जनजाति के देवी-देवता और त्यौहार 

इनके प्रमुख देवी-देवता ठाकुर देव, महारानी देवी, बुढ़ी माई सती देवी, बंजारिन देवी, खुंटदेव, सोहराई, गुरमादेव, दुल्हादेव आदि है। इसके अतिरिक्त हिंदू देवी-देवता तथा सूरज, चंद्रमा, धरती, नाग, वृक्ष, पहाड़, नदी आदि प्राकृतिक वस्तुओं की भी पूजा करते हैं। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

इनके प्रमुख त्योहार करमा, जुतिया, नोरता, नवाखानी, दशहरा, दिवाली, होली, बैशाखी आदि हैं देवी-देवता की पूजा त्योहारों में करते हैं। मुर्गा व बकरा की बलि भी चढ़ाते हैं भूत-प्रेत, जादू-टोना, मंत्र-तंत्र में काफी विश्वास करते हैं। मंत्र-तंत्र का जानकार बैगा कहलाता है।

खैरवार जनजाति के लोग करमा नृत्य करमा पूजा पर, दिवाली पर जदुरा नृत्य, होली पर डंडा नृत्य, विवाह में विवाह नृत्य करते हैं। करमा पूजा में डंडा नाच, विवाह आदि पर लोकगीत गाते हैं। इनके प्रमुख वाद्ययंत्र मांदर, मंजीरा, ढोल, बाँसुरी आदि है। ( खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ Khairwar janjati chhattisgarh khairwar tribe chhattisgarh )

2011 की जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ की खैरवार जनजाति में साक्षरता 61.5 प्रतिशत दर्शित है। पुरुषों में साक्षरता 72.7 प्रतिशत तथा स्त्रियों में साक्षरता 50.3 प्रतिशत थी।

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source : Internet

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Rajveer Singh
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