हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh Halba Tribe Chhattisgarh

हलबा जनजाति की उत्पत्ति 

हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजाति है। राज्य में इनकी जनसंख्या जनगणना 2011 में 375182 दर्शित है। पुरुष 183877 तथा स्त्रियाँ 191305 थी। • हल्बा जनजाति राज्य में मुख्यतः बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, बालोद, धमतरी तथा राजनांदगांव जिले में निवासरत है। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ठोस प्रमाण नहीं है, किन्तु इनमें प्रचलित किवदंती अनुसार अपनी जाति की उत्पत्ति का संबंध महाभारत काल के स्वक्मणी हरण के प्रसंग से जोड़ते हैं। द्वारिकाधीश कृष्ण ने जब विदर्भ की राजकुमारी रूखमणी की प्रणय निवेदन को स्वीकार कर उनका हरण किया था, तब राजकुमारी का भाई रूखमी ने अपनी सेना के साथ कृष्ण पर आक्रमण किया। सेना को बलराम ने बल और पराक्रम से अपने हल और मूसल के द्वारा रोक दिया था।

बलराम के पराक्रम से प्रभावित होकर सैनिकों ने उनके अस्त्र डल एवं मूसल को अपना लिया. उन्हीं सैनिकों की संतानें कालांतर में हल से धान की खेती करके प्राप्त धान को मूसल से ” बाहना” में कूट कर “चिवड़ा” बनाने लगे। हल, बाहना और मूसल से संलग्न कार्यों के कारण हल या की व्युत्पत्ति से “हलबा ” कहलाये । ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति का रहन-सहन 

हलबा जनजाति के घर सामान्यतः लकड़ी एवं मिट्टी से निर्मित होते हैं, जिनके ऊपर खपरैल या देशी कवेलु लगी होती हैं। अपने घरों का निर्माण इनके द्वारा स्वयं किया जाता है। इनके गाँव कई पारों (मुहल्ले) में बँटे होते हैं। इनके साथ गॉड, भतरा, मुरिया, माड़िया आदि जनजाति के लोग भी ग्राम में निवास करते हैं।

घर की स्वच्छता पर हलबा जनजाति की महिलायें काफी ध्यान देती हैं। स्त्रियाँ अपने हाथ पैरों . पर देवार महिलाओ से गोदना गुदवाती हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ होती हैं। धोती, पटका, बंडी, सलुका पहनते हैं, नवयुवक अब कुर्ता, पैजामा, पैंट व शर्ट पहनते हैं। महिलाएँ साड़ी, ब्लाउज पहनती हैं। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो, कुटकी की भात, बासी, उड़द, मूंग, अरहर, मौसमी सब्जी, चटनी आदि है। मांसाहार में मुर्गा, मछली, बकरा, खरगोश आदि खाते हैं। उत्सव, त्योहार व विभिन्न संस्कारों के अवसरों पर सल्फी, तादी व महुए की शराय देवी-देवता को चढ़ा कर पीते हैं।

हलबा जनजाति के व्यवसाय 

हलबा जनजाति की आर्थिक संरचना मुख्यतः कृषि व जंगल उपज पर निर्भर है। कृषि कार्य में निपुण होने के कारण इस जनजाति की आर्थिक स्थिति अन्य जनजातियों से अच्छी है। अपने खेतों में धान कोदो, अरहर, उड़द, मूंग, तिल्ली, चना, तिवरा, कुटकी आदि बोते हैं जिनके पास कृषि भूमि कम है, वे अन्य कृषकों के खेतों में मजदूरी करते हैं।

वनों से महुआ, चिरौंजी, कोसा, लाख, तेंदूपत्ता, इमली, आम, हर्रा, बहेड़ा, आंवला आदि जंगली उपज संग्रह कर बेचते हैं। चिवड़ा कूटने का कार्य भी करते हैं। वर्तमान में कई युवक-युवतियाँ उच्च शिक्षण प्राप्त कर सरकारी नौकरी कर रहे हैं। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति के निवास क्षेत्र 

छत्तीसगढ़ के हलबा जनजातियों में मुख्यतः दो भाग पाये जाते हैं 1. बस्तरिया हलना मुख्यतः कांकेर, अन्तागढ़, बढ़े डोंगर, भानुप्रतापपुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नगरी, गरियाबंद, देवभोग क्षेत्र में निवासरत है।

2. छत्तीसगढ़िया हलबा दुर्ग जिले के बालोद, डौंडी, दल्ली राजहरा, गुण्डरदेही, राजनांदगाँव के चौकी, डोंगरगॉव के हलबा उत्तीसगढ़िया हलबा कहलाते हैं। हलबा जनजाति के प्रमुख गोत्र हैं नाइक, पिस्दा, मसिया, कोसमा, भंडारी, पुजारी, चनाब, घोरका, राना, तारम, सोम, सिवाना, धनगुण, केराम, नेगी, गुनागहिया, समरथ, गांवर, भैसारा आदि हैं।

एक गोत्र के लोग एक ही पूर्वजों के संतान होने के कारण अपने गोत्र के बाहर दूसरे गोत्र में विवाह करते हैं। जीव-जंतु, कीट-पतंग, लता वृक्ष आदि इनके टोटम होते हैं। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति के परम्परा 

इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के पूर्व तक आर्थिक व पारिवारिक कार्य करती हैं। प्रसव अधिकतर घर पर ही “सुदन” (राई) की देखरेख में कराया जाता है। गाँव के बुजुर्ग महिलाएँ प्रसव के समय सुदन की मदद करती है। प्रसव हो जाने पर सुइन द्वारा बच्चे का नाल ब्लेड से काटा जाता है प्रसव के दूसरे दिन तेलगुर होता है, जिसमें दिल को कूटकर गुड़ व जंगली जड़ी-बूटी मिलाई जाती है, तत्पश्चात् घी में मिलाकर प्रसूती को खिलाया जाता है। बच्चे के नाल गिरने पर छट्ठी मनाई जाती है, उसी दिन पूरे घर की सफाई की जाती है। पूरे घर के कपड़े साफ किये जाते हैं। परिवार या बुजुर्ग रिश्तेदार द्वारा बच्चे का नामकरण भी किया जाता है।

हलबा जनजाति में एक ही गोत्र में विवाह नहीं किया जाता है। इनमें विवाह अधिकतर लड़के, लड़कियों के वयस्क होने पर ही किया जाता है। बस्तरिहा डलबा में मामा बुआ के लड़के-लड़कियों के साथ विवाह होता है। इनमें लड़का का पिता लड़की के पिता के घर जाकर शादी की बात तय करता हैं। बात पक्की होने पर अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ जाकर मंगनी की जाती है, इसे “माहला” कहा जाता है। वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष को “सूक” दिया जाता है। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

विवाह कार्य हलबा जनजाति के ” भण्डारी” द्वारा संपन्न कराया जाता है। वर-वधू को मंडप में एक-दूसरे के सामने खड़ा कर बीच में चादर लगा जाती है। जाति का बुजुर्ग दो दीपक जलाकर उसके लौ को साथ मिलाकर रखता है। चादर हटा देते हैं एवं गठबंधन कर वर-वधू फेरे लगाते हैं।

हलबा जनजाति में मृत्यु पश्चात् मृत शरीर को दफनाते हैं। अच्छी आर्थिक स्थिति होने पर दाह संस्कार भी किया जाता है। पिता का दाह संस्कार सबसे बड़ा लड़का तथा माता का सबसे छोटा लड़का करने पर अच्छा माना जाता है। छोटे बच्चों की मृत्यु होने पर उन्हें दफनाया जाता है।

स्त्री का मृतक संस्कार सात दिन तथा पुरुष का नौवे दिन किया जाता है। कहीं-कहीं पर तीसरे दिन भी इस रस्म को पूरा कर देते हैं। दाह संस्कार के पश्चात् घर के सभी लोग स्नान करते हैं तय सातवें या नौवे दिन “बैगा” को बुलाकर घर शुद्ध किया जाता है। गाँव वासियों व रिश्तेदारों को भोज दिया जाता है। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति में सामाजिक न्याय व्यवस्था हेतु परंपरागत जाति पंचायत पाया जाता है। न्याय व्यवस्था का सही संचालन करने के लिये इन्हें अठारह गढ़ में विभाजित किया गया है, जैसे डोंगरगढ़, नारायणपुर गढ़, अंतागढ़, कांकेर गढ़, बिन्द्रानया गढ़ बस्तर गढ़, सोनपुर गढ़, कोलर गढ़ आदि प्रमुख है। यहाँ पर बड़े-बड़े सामाजिक प्रकरण गड़वार निर्णय किये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त जाति पंचायत, राज पंचायत या गढ़ पंचायत, गाँव पंचायत में छोटे-छोटे सामाजिक झगड़े पर निर्णय लेकर सुलझाया जाता है। सामाजिक पंचायत के निर्णय सभी सदस्यों को मान्य होते हैं। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

हलबा जनजाति के देवी-देवता 

हलबा जनजाति के लोग देवी-देवताओं में काफी आस्थ रखते हैं। हिंदू धर्म के सभी देवी-देवताओं को मानते हैं, यथा ग्राम देव में दूल्हा देव, करिया धुरवा, माता देवाला, शीतला माता, कंकालीन माता, शंकर भगवान, हनुमान आदि हैं।

इनके कुल देव में गुसई-पुसई, कुंवर देव, मौली माता आदि है। जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, नवाखानी, दशहरा, दिवाली, होली आदि त्योहार मनाते हैं। बस्तर के हलबा जनजाति के लोग अमूस, नवाखानी, लक्ष्मी जगार, दिवारी, छेरता, माटी तिहार आदि मनाते हैं। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

इस जनजाति में कर्मा नृत्य, पड़की होली नृत्य काफी प्रचलित है। लोक गीतों में धनकुल, छेरछेरा, गौरा व सुआ गीत प्रमुख है। बस्तर में डंडारी नृत्य, गेड़ी नृत्य भी करते हैं।

इस जनजाति की अपनी “हलबी” बोली है, जिसका उपयोग ये आपस में करते हैं। बस्तर में हल्बी सभी जनजातियों के संवाद की बोली है। जनगणना 2011 में हलबा जनजाति की साक्षरता 72.6 प्रतिशत दशाई गई है। पुरुषों में साक्षरता 86.6 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 65.2 प्रतिशत थी। ( हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ Halba Janjati Chhattisgarh halba tribe chhattisgarh )

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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