गोरखपुर में मल्लराष्ट्र की स्थापना , gorakhpur me mallrastra: ऊपर के विवेचन से स्पष्ट है कि अयोध्या के सूर्यवंश के दो राजकुमार अगद और चन्द्रकेतु ने कारुपथ (बस्ती का पूर्वी और गोरखपुर का पश्चिमी भाग) में अपना मांडलिक राज्य स्थापित किया।
उनके साथ बहुत से सूर्यवंशी क्षत्रिय यहाँ आकर अवश्य बसे होंगे। कारुपथ प्रदेश में अंगदीया और चन्द्रकान्ता नामकी दो सुन्दर राजधानियाँ बसायी गयी थीं। किन्तु प्राचीन बस्तियों के भग्नावशेषों से उनका पता लगाना बहुत कठिन है। शाक्यों के इतिहास से मालूम होता है कि वे सूर्यवंशी थे और कारुपथ के पश्चिमी भाग में बसे हुये थे। संभवत: वे अंगद के ही वंशज थे।
इस सम्बन्ध में एक और बात विचारणीय है। कारुपथ का पूर्वी भाग मल्लभूमि क्यों कहलाया? इसका उत्तर बाल्मीक-रामायण में स्पष्ट दिया हुआ है। लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु की उपाधि ‘मल्ल ’47 थी। उनका राज्य कारुपथ के पूर्वी भाग में स्थापित हुआ। इसलिये यह भाग ‘मल्लभूमि’ या मल्ल-राष्ट्र कहलाया। इसी उपाधि के अनुकरण पर इनके तथा इनके अभिजनों के वंशज ‘मल्ल’ कहलाये। ‘मल्लभूमि’ के ऊपर श्री पं० राम प्रसाद जी पाण्डेय ने अपनी पुस्तक (गोरखपुर जिले का इतिहास) में अपना मत इस प्रकार प्रकट किया है
248 “कारुपथ के पश्चिमी भाग में अंगद की राजधानी अंगदीया और उत्तरी भाग में मल्लों के प्रदेश में चन्द्रकेतु की राजधानी चन्द्रकान्ता स्थापित हुई। उसी प्रसंग में यह कहा गया है कि इस कार्य के लिये कारुपथ-प्रदेश जीता गया। अन्य प्रदेशों की भाँति इस कारुपथ और मल्लभूमि पर अनेक महाराजों का दिग्विजय दिखायी देता है।
” इस अवतरण से यह ध्वनि निकलती है कि चन्द्रकेतु के मांडलिक राज्य की स्थापना के पहले मल्लराष्ट्र नामक कोई राष्ट्र स्थापित था, जिसको जीत कर चन्द्रकेतु को वहाँ का राजा बनाया गया। इस मत का सूर्यवंश के पूर्व इतिहास से मेल नहीं खाता।
सभी पुराण इस विषय में एक मत हैं कि मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को मध्यदेश का राजा बनाया। कारुपथ (बस्ती का पूर्व और गोरखपुर का पश्चिमी भाग) प्रारम्भ से ही मध्यदेश का अभिन्न अंग था: यह अयोध्या के राज्य का भाग था, साम्राज्य का नहीं। अतः इसको फिर से जीतने का प्रश्न ही नहीं उठ सकता। इसको पहले से ही ‘रम्य, निरापद और राजा को पीड़ा न देने वाला’ कहा गया है।
इस प्रसंग में ‘वंश’ करने का अर्थ है सुशासित करना, जीतना नहीं, गान्धार तथा यमुना तटवर्ती (शूरसेन) प्रदेश के जीतने का जहाँ प्रसंग आया है वहाँ युद्ध की तैयारी और वास्तविक युद्ध का वर्णन पाया जाता है।
रामचन्द्र के पूर्व दशरथ, अज, रघु आदि कई दिग्विजयी सूर्यवंशी राजा हुये, किन्तु किसी के भी दिग्विजय में मल्लराष्ट्र का, स्वतंत्र अथवा अधीन राज्य के रूप में अस्तित्व सूचित नहीं होता 49 चन्द्रकेतु के कामरुपथ • जाने के पहले और मल्ल जाति का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। जब चन्द्रकेतु की उपाधि स्पष्ट रूप से ‘मल्ल’ दी हुई है तब इस बात में थोड़ा भी सन्देह नहीं रह जाता कि मल्लभूमि अथवा मल्लराष्ट्र के वे ही संस्थापक और क्षत्रिय मल्ल जाति के वे ही पूर्वज थे।