गोरखपुर की हिन्दू जातिया , Gorakhpur ki hindi jatiya: जनपद का क्षेत्रफल और जनसंख्या बहुत बड़ी है, इसलिये यहाँ हिन्दुओं की अधिकांश जातियाँ पाई जाती हैं। उपजातियों को छोड़ देने पर यहाँ मुख्य 85 जातियाँ वर्तमान हैं। ये इतनी रूढ़ हो गयी हैं कि सभी अपनी स्वतंत्र सत्ता में विश्वास करती हैं। लगभग 31 जातियाँ ऐसी हैं जिनकी संख्या 1000 से भी कम; 19 ऐसी हैं जिनकी संख्या 5000 से कम; सात की संख्या 100000 से अधिक; और 17 ऐसी हैं जिनकी संख्या 25000 और 100000 के बीच है।
जनपद की जातियों में ब्राह्मणों की संख्या बहुत बड़ी है। जनपद की पूरी जनसंख्या लगभग 40 लाख है। हिन्दू जनसंख्या के 10 प्रतिशत ब्राह्मण हैं जो जनपद के सभी भागों में फैले हुये हैं। संख्या की दृष्टि से चमारों और अहीरों के बाद इनका तीसरा स्थान है। इन ब्राह्मणों में प्रधानता और बाहुल्य सरयूपारीण ब्राह्मणों का है जो अत्यन्त प्राचीन काल से यहां बसे हैं। इनके अतिरिक्त कान्यकुन्ज, शाकद्वीपी, जिजहुतिया और नायक ब्राह्मण भी इस प्रान्त के अन्य जनपदों और दूसरे प्रान्तों से आकर बसे हुये हैं। भूमिहार ब्राह्मण भी सरयूपारीणों के समान जनपद के प्राचीन निवासी हैं। इनकी संख्या 33 हजार के लगभग है।
क्षत्रियों की संख्या ब्राह्मणों से कुछ कम, किन्तु फिर भी बड़ी है। ये सारी हिन्दू जनसंख्या के लगभग 8 प्रतिशत हैं। क्षत्रियों के प्रायः सभी वंश और कुल जनपद में पाये जाते हैं। इनके तीन विभाग किये जा सकते हैं- (1) प्राचीन सूर्य, चन्द्र और नागवंशी क्षत्रियों के वंशज जो अत्यन्त प्राचीन काल से यहाँ बसे हुये हैं (2) मध्यकालीन राजपूत वंश जो मध्ययुग में राजस्थान और मध्यभारत से यहाँ आकर बसा है और (3) विविधा
कायस्थों की संख्या जनपद में लगभग 29 हजार के है। इनकी मुख्य शाखायें श्रीवास्तव्य और गौड हैं।
जनपद में अहीर एक बहुसंख्यक और शक्तिशाली जाति है। हिन्दू जनसंख्या के लगभग 13 प्रतिशत अहीर हैं जो जनपद के सभी भागों में पाये जाते हैं, किन्तु विशेषकर पहरौना और देवरिया में बसे हैं। इनकी मुख्य शाखायें स्वालवंश और डिंडोर हैं। वैश्यों में कान्दु, कसौधन, कलवार, वनवार, पटनवार, परवार, रौनियार, उनाई और अग्रवाल प्रसिद्ध हैं। अग्रवाल प्रायः गोरखपुर शहर में बसे हु हैं और बड़े-बड़े साहूकार और जमीदार हैं। मारवाड़ियों में अधिकांश वैश्य अग्रवाल हैं जो जनपद के सभी कस्बों में बसे हुये हैं। शिल्पी जातियों में सेना लोहार, बढ़ई, ठठेरे आदि उल्लेखनीय हैं।
दूसरी बड़ी जातियों में चमार या रविदास का स्थान संख्या की दृष्टि से है। जनपद में हिन्दू जनसंख्या के ये 13.5 प्रतिशत के लगभग हैं। प्रान्त के कई जनपदों से जीविका की खोज में यहाँ आकर बसे हुये हैं। इनकी शाखरें। कन्नौजिया, जैसवार, दखिनहा, उतरहा और देशी हैं। बहुत
संख्या के विचार से दूसरी प्रसिद्ध जातियाँ कुर्मी और कोइरी हैं। इनक अतिरिक्त और उल्लेखनीय जातियाँ केवट, मल्लाह, बिन्द, तेली, कहार या गड भर, लुनिया, कुम्हार, पासी, धोबी, नाई, बेलदार, कमकर, गड़ेरिया, मुसहर, दुसाध आदि हैं। खटिक, समाज के बिल्कुल निचले स्तर की जातियों में डोम, बसोर, धरकार, बेंसफोर आदि हैं। ये प्रायः खानाबदोश हैं और टोकरी आदि बनाकर अपना निर्वाह करते हैं।
अपराधपेशा जातियों में मगहिया डोम का स्थान सर्वप्रथम है ये बस कर रहना पसन्त नहीं करते और प्रायः चोरी और डकैती से अपना निर्वाह करते थे। सन् 1884 ई० (सं० 1941 वि०) से उनके लिये सरकार ने कस्बों में पुलिस स्टेशन के पास डोमराखाने बनवाये जहाँ रात को वे रहते और अपनी उपस्थिति देते हैं। आजकल ये लोग प्रायः कस्बों में सफाई का काम करते हैं। दूसरी अपराधपेशा और खानाबदोश जातियाँ बंधक, बहेलिया, बरवार, नट और कंजर हैं।
जनपद की हिन्दू जातियों में एक जाति थारु विचित्र है जो तराई के विनायकपुर और तिलपुर परगनों में विशेषकर रहती है। ये तराई के सर्वोत्तम किसान हैं, परन्तु अपने संकोची स्वभाव के कारण प्रायः जंगल के किनारे और। बहते हुये सोतों के तट पर रहना पसन्द करते हैं। इनको स्वास्थ्य के नियमों का अच्छा है। इसलिये इनके ऊपर मलेरिया का प्रभाव कम होता है। थारुओं के। अतिरिक्त कुनेर ( देवरिया और महाराजगंज) धंगर ( देवरिया पडरौना) नामक अर्द्ध जंगली जातियाँ भी जनपद में पायी जाती हैं। महाराजगंज तहसील में लगभग । दो हजार पहाड़ी अथवा थापा नेपाल से आकर बसे हुये हैं जिनको लोग गोरखा कहते हैं।