गोरखपुर की भाषा , निति और वर्णमाला , Gorakhpur ki bhasha niti or varnmala:
भाषा:- गोरखपुर जनपद की भाषा प्राचीन अर्द्धमागधी और अवधी के मिश्रण से बनी हुई है। इसकी मातामही पाली थी जिसको अशोक ने सारे भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा बनाने की चेष्टा की थी और प्राचीन बौद्ध साहित्य जिसमें लिखा गया था। आजकल जनपद में जो भाषा बोली जाती है वह इसके पूर्वी भाग में शुद्ध भोजपुरी और पश्चिमी भाग में उसके ऊपर सरवरिया अथवा अवधी का पुट है। जनपद के दक्षिण-पश्चिमी में जो बोली प्रचलित है उस पर उपर्युक्त दोनों धाराओं की छाँह है। दक्षिण-पूर्व में बोली जानेवाली भाषा का मेल अधिकतर सारन की भाषा से है।
यहाँ के कुल मुसल्मान पच्छाही खड़ी बोली बोलने की कोशिश करते हैं। मदनपुर के मुसल्मान एक विचित्र भाषा बोलते हैं जो आस पास की किसी बोली से नहीं मिलती है। तराई के थारू भी भोजपुरी का ही एक प्रकार बोलते हैं, किन्तु उस पर थोड़ी पहाड़ी किरात भाषा की छाया है। डोम और नट अपने निजी व्यवहार के लिये एक गुप्त भाषा बोलते हैं। यह चारों का एक शब्दकोष है, जिसके समझने वालों की संख्या बहुत कम है। इसलिये लोक भाषा में इसकी गणना नहीं हो सकती।
लिपि और वर्णमाला
जनपद का प्राचीन लिपि ब्राह्मी थी जिसके कालक्रम से कई रूपान्तर हुये। परिवर्तित होते हुये वह आधुनिक नागरी के रूप में विकतस हुई। उसका सर्व प्रथम रूप वह मिलता है जिसमें अशोक के धर्म लेख लिखे हुये हैं। इसके कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं –

इसका दूसरा रूप जनपद में गुप्तकालीन लेखों और तीसरा रूप गहडवाओं के उपलब्ध लेखों में मिलता है। ब्राह्मी का आधुनिक रूप नागरी ग्यारहवीं बारहवीं शताब्दी विक्रम से मिलना शुरू होता है और वह भी क्रमशः वर्तमान छापे के अक्षरों के रूप में गढ़ा गया है। जनपद में सामान्य व्यवहार के लिये एक और लिपि कुछ दिनों पहले तक प्रचलित थी जिसको कैथी कहते थे। इसमें शिरोरेखा नहीं होती थी। और शीघ्रता से लिखने के लिये उसका आविष्कार किया गया था। किन्तु इसका व्यवहार आजकल प्रायः बिल्कुल बन्द हो गया है। जनपद में संस्कृत के वर्णमाला का ही प्रयोग होता है, जिसका सारे भारतवर्ष में प्रचार है। जनसाधारण के व्यवहार में इस वर्णमाला के श, ष स अक्षरों में से केवल स काम में लाया जाता है। य का उच्चारण शब्द के प्रारम्भ में ज के समान और सानुनासिकों में प्राय: न और म का ही प्रयोग होता है।