द्वापर युग में गोरखपुर , Dwapar yug me gorakhpur: रामचन्द्र के देहावसान के बाद भारतीय इतिहास में एक दूसरा युग शुरु होता है जिसको द्वापर कहते हैं। इस युग में सूर्यवंशियों की शक्ति क्षीण होती गयी। रामचन्द्र के बाद किसी भी सूर्यवंशी सम्राट का नाम नहीं सुनायी पड़ता ।
प्रायः सार युग में चन्द्रवंशी पौरवों और यादवों की प्रधानता रही। किन्तु उनका प्रधान कार्यक्षेत्र दक्षिण और पश्चिम में था। इसलिए गोरखपुर जनपद से उनका सम्बन्ध नहीं। कोमल के अन्तर्गत जो यहाँ छोटे-छोटे राज्य बन गये थे, वे चले जा रहे थे। पूर द्वापर युग में उनका इतिहास अन्धकारमय है। केवल महाभारत के समय में उन पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
महाभारत और गोरखपुर जनपद –
महाभारत के समय भारतवर्ष के सभी राजा दो पक्षों-पाण्डव और कौरव में बँट गये थे। हिमालय की तलहटी के प्रायः सभी राज्य कौरवों के पक्ष में थे। ‘प्राग्ज्योतिष; अंग, विदेह, मगध (पूर्वी) और कोसल सभी कौरवों के साथ थे। इस समय कोसल का राजा बृहद्बल था जो कौरवों के साथ होकर लड़ा।” सम्भवतः गोरखपुर-जनपद के (कोसल के) सामन्त-राज्य भी इसी तरफ थे।
गोरखपुर जनपद के उल्लेख का दूसरा प्रसंग वह है जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के पहले भीमसेन ने पूर्वी राज्यों का दिग्विजय किया था। इस अवसर पर अयोध्या के पूर्व दो राज्यों का उल्लेख है, (1) गोपालक और, (2) मल्ल राष्ट्र। इससे मालूम होता है कि आगद और चन्द्रकेतु के वंशजों के राज्यों की गणना मल्लराष्ट्र में होती थी और दोनों में मल्लराष्ट्र ही प्रधान था।
मल्लराष्ट्र की राजधानी इस समय निश्चित कुशीनगर श्री मल्लराष्ट्र का इतिहास तो पहले तो मालूम है किन्तु गोपालक की स्थिति का निर्धारण करना कठिन है। इस सम्बन्ध में एक बात तो स्पष्ट है कि गोपाल अयोध्या और मल्लराष्ट्र के बीच में था। इसलिये यह गोरखपुर जनपद में ही स्थित होना चाहिये। जनपद में ‘गोपालक’ से मिलता जुलता एक स्थान है और वह है बाँसगाँव तहसील का गोपालपुर। यह इस समय भी एक छोटा सा कस्वा और एक स्थानीय राज्य की राजधानी है। गोपालक और गोपालपुर के एक होने के पक्ष में एक और प्रमाण है।
गोपालपुर के पास में स्थानीय लोग एक मीमटीला नामक स्थान बतलाते हैं, जहाँ पर जनश्रुति के अनुसार भीम ने वहाँ पर विजय के बाद विश्राम किया था। गोपालक में किस क्षत्रिय वंश का राज्य था, यह बतलाना कठिन है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार सरयू किनारे का राज्य विश्वामित्र के कौशिकों को मिला था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं यदि कोई छोटा कौशिक वंशी राज्य वहीं स्थापित था।
कोसल राज्य का ह्रास और गोरखपुर जनपद –
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के बाद कुछ समय तक गोरखपुर जनपद कौरव-साम्राज्य के अन्तर्गत रहा किन्तु जनमेजय के बाद कौरव साम्राज्य नष्ट हो गया। इसके अनन्तर स्थानीय राज्य स्वतंत्र होते गये। कोसल का बल महाभारत के बाद और घट गया और उसके गोरखपुर जनपद के सामन्त राज्य स्वाधीन हो गये। महाजनपदों के युग में जब ऐतिहासिक नाटक का पर्दा उठता है तो गोरखपुर जनपद स्वतंत्र रूप में दिखायी पड़ता है।