दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh Dorla Tribe Chhattisgarh

दोरला जनजाति की उत्पत्ति 

दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में बीजापुर एवं सुकमा जिले में पाये जाते हैं। इनकी आबादी मुख्यतः कोंटा, सुरुमा, बीजापुर, भोपालपट्टनम क्षेत्र में चीना कवली, कादुलनार, बोरले, गुड़ी चार, आंदेड़, पेछा कोवली, कोदईपाल, मांदक पाल, मुरकीनार, कुसगीड़ी, आयापल्ली, रुहैल मोरदण्डा आदि में निवासरत है।

भारत सरकार द्वारा जारी छत्तीसगढ़ के लिए जारी अनुसूचित जनजाति की सूची में दोरला को गॉड की उपजाति के रूप में शामिल किया गया है। इस जनजाति की विशेष बोली पाई जाती है, जो “दोरली” कहलाती है। दोरली में “दोरा” का अर्थ होता है, जाति का मुखिया। अर्थात् इन्हें कोया जाति के मुखिया से उत्पन्न उप समूह माना जाता है। स्वयं को मूल “कोया” जनजाति का मानते हैं। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

अंग्रेज अध्येता ग्रिगसन ने दोरला जनजाति को बायसन हार्न माड़िया (दण्डामी माड़िया ) के समान माना है। उन्होंने माना कि “कोया” जो ‘दोरला चक’ (दोरभूम) में निवास करते थे। उनसे दोर कोयतुर अर्थात् दोरला जनजाति का प्रादुर्भाव हुआ है। इस जनजाति की जनसंख्या गोंड जनजाति के उपजाति के रूप में जनगणना 2011 में शामिल है।

दोरला जनजाति रहन-सहन 

इस जनजाति के प्रमुख लोग अपनी जाति की आबादी छत्तीसगढ़ में लगभग 40 हजार से अधिक होने का अंदाज करते हैं। इनका गाँव पहाड़ी एवं घने जंगलों में बसा होता हैं। पानी की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए गाँव नदी-नाले के समीप होता है। गाँव में कई पारे होते हैं, जिसका नाम भी अलग-अलग होता हैं। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

इनके घर की दीवार बाँस के टट्टे या लकड़ी से बने होते हैं, जिस पर गोबर, मिट्टी का प्लास्टर करते हैं। कुछ घरों की देशी खपरैल का दीवार मिट्टी की भी पाई गई। घर का उप्पर घासफूस का अथवा होता है। घर में 2-3 कमरे होते हैं, जो बाँस के टट्टे से विभाजित किया हुआ होता है। घर के सामने भाग में परछी होता हैं। एक कमरे में देवी-देवताओं की स्थापना होती है। अनाज रखने, सोने आदि के लिए अलग कमरे होते हैं। एक कमरा या पीछे की परछी में रसोई की व्यवस्था होती है। घर का फर्श मिट्टी का होता है, इसे रोज गोवर से महिलाएँ लीपती हैं। महिलाएँ घर की दीवारों पर भीत्ति चित्र भी बनाती हैं। घर की स्वच्छता सफाई का विशेष ध्यान रखती हैं।

प्रतिदिन हर्रा, करंज, नीम आदि की दातुन से दाँतों की सफाई कर स्नान करते हैं। शरीर तथा बालों में गुल्ली का तेल लगाकर महिलाएँ कंघी कर जूड़ा बनाती हैं। वस्त्र – विन्यास में पुरुष धोती, पंछा, बंडी, बनियान आदि पहनते हैं। महिलाएँ लुगड़ा पहनती हैं। नवयुवतियाँ अब साड़ी-पोलका पहनने लगी हैं। शिक्षित नवयुवक अब लुंगी, पेंट शर्ट, नवयुवतियाँ, साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, सलवार कुर्ती पहनने लगी हैं।

महिलाएँ आभूषणों में गले में मोतीमाला, सुर्रा, हाथ में चूड़ियाँ, पैरों में पैरपट्टी, नाक में लौंग या नथ, कानों में खिनया, ऐरिंग आदि पहनती हैं, जो नकली चाँदी के होते हैं। महिलाएँ गुदना गोदवाती हैं। नवयुतियों में गुदना का प्रचलन अब कम हो रहा है। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो, कुटकी का भात, पेज, उड़द, मूंग, बरबट्टी, अरहर की दाल, मौसमी सब्जी भाजी, मांसाहार में मुर्गा, बकरा, सुअर, खरगोश, पक्षियों का मांस तथा मछली खाते हैं।

दोरला जनजाति के व्यवसाय 

इस जनजाति के लोग कृषि, मजदूरी, वनोपज संग्रह पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं। अधिकांश परिवारों के पास कृषि भूमि पाई जाती है। कृषि कार्य हेतु नागल (हल), जुआड़ी, कुदाली, फावड़ा, गैती, टोंगिया, हंसिया का उपयोग करते हैं। इनका मुख्य फसल, धान, मक्का, कोदो, मूंग, उड़द, अरहर आदि है। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

जिनके पास कृषि भूमि कम है, वे अन्य कृषकों के खेतों में मजदूरी करते हैं। जंगल से महुआ, येरा, हर्रा, आँवला इमली, आम, चिरौंजी, लाख, शहद, कोसा, तेंदूपत्ता, गोंद एकत्र कर बाजार में बेचते हैं। स्वयं के उपयोग के लिए कंदमूल, फल, भाजी, बोड़ा आदि एकत्र करते हैं एवं खाते हैं। महुआ से शराब बनाकर पीते हैं। वर्षा ऋतु के समय महुआ को उबाल कर खाते हैं।

दोरला जनजाति के परम्पराये

दोरला जनजाति में पारेम्बोई, पारेन, मुरो, आइडो आदि उप विभाग पाई जाती है। गोंड जनजाति की उपजाति होने के कारण इनके गोत्र गोंड जनजाति से मिलते-जुलते हैं। इनके प्रमुख गोत्र कोराम, एल्मा, कक्केम, दुब्बा, कारेम, कुड़ियाम, फुलसे, आयन, गाट बेली, बाद्दम आदि है। गोत्र के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे पर आधारित वंश चिन्ह (टोटम) पाये जाते हैं। एक ही गोत्र के युवक-युवतियों में विवाह नहीं होता है। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

दोरला जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक अपनी पारिवारिक तथा आर्थिक कार्य करती है। प्रसव परिवार की बुजुर्ग महिलाएँ स्थानीय दाई की मदद कराती हैं। शिशु का नाल तीर, बाँस की खपची से काटते थे। अब नया ब्लेड से काटते हैं। नाल को नदी नाले के किनारे गड़ाते हैं प्रसूता को गुड़, सोंठ, जंगली जड़ी-बूटी मिश्रित गर्म पानी पिलाते हैं। पाँचवें दिन से नौव दिन के बीच सुविधानुसार उट्ठी मानते हैं। शिशु तथा प्रसूता को नहलाकर बाहर सूर्य का दर्शन कराते हैं। शिशु का नाम रखते हैं।

विवाह हेतु मामा या बुआ की लड़की को प्राथमिकता देते हैं। ” (वधू मूल्य) प्रथा पायी जाती है। मंगनी तय होने पर घर के पिता कन्या पक्ष को सूफ” चावल, दाल, तेल, शराब, लुगड़ा आदि भेजता है। विवाह मंडप वर के घर बनाते हैं। वधू के परिवार वाले वधू को लेकर वर के गाँव आते हैं। विवाह की रस्म जाति के बुजुगों द्वारा सम्पन्न कराया जाता है। विधवा, त्यगता महिला को चूड़ी पहनाकर पुनर्विवाह समाज में स्वीकृत है।

मृत्यु होने पर मृत शरीर को दफनाते हैं। कुछ लोग अग्नि संस्कार करते हैं। मृतक के टेंगिया, कपड़े, कुछ चावल, शराब आदि श्मशान में छोड़कर आते हैं। घर की साफ-सफाई, लिपाई कर स्नान करते हैं। ग्यारहवें दिन दिनाल “किरिया” करते हैं, रिश्तेदारों को मृत्युभोज देते हैं। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

दोरला जनजाति के देवी-देवता 

इस जनजाति में परंपरागत जाति पंचायत (सामाजिक पंचायत) पाई जाती है। इस पंचायत में वैवाहिक विवाद का निपटारा तथा देवी-देवता का पूजा, उत्सव आदि कार्यक्रमों का निर्धारण तथा आयोजन करते हैं।

दोरला जनजाति के प्रमुख देवी-देवता आंगादेव, दंतेश्वरी देवी, हिंगावानी, ममकिरिया देव, मुमसिरिया देवी, मकमिरिया देव, जिबोकारी देवी, ऐसेलु देवी, मुसलोट देवी, भोमा देव आदि है। इनकी पूजा चावल, शराब चढ़ाकर की जाती है। मुर्गा, बकरा, सुअर आदि को बलि देते हैं। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

इनके प्रमुख त्योहार पंडुम, जिरा पंडुम, कोल पंडुम, चिकुर पंडुम, दशहरा, दिवाली, माटीतिहार, होली आदि है। इनके धार्मिक पुजारी “पेरूम” कहलाते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं।

इनके प्रमुख लोक नृत्य पेंडल पाटा, कोड़ता पाटा, कुर्रम पाटा, आना पाटा आदि प्रमुख लोक नृत्य है। ( दोरला जनजाति छत्तीसगढ़ Dorla Janjati Chhattisgarh dorla tribe chhattisgarh )

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source : Internet

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

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