दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh

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नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh  के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा । 

दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami Madiya Janjati Chhattisgarh Dandami Madiya Tribe Chhattisgarh

दण्डामि माड़िया जनजाति की उत्पत्ति 

भारत सरकार द्वारा जारी अनुसूचित जनजाति की सूची में दण्डामी मारिया तथा बाइसन हार्न माढ़िया को गोंड की उपजाति के रूप में शामिल किया गया है। दण्डामी माड़िया छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र की मुख्य जनजातियों में एक है। इस जनजाति के युवक जंगली भैंसा “गौर” (बाइसन) का सिंग (हार्न) युक्त “कोहक” सिर पर पहनकर नृत्य करते हैं। इसे देखकर अंग्रेज अध्येता डॉ. ग्रिगसन ने इन्हें “बाइसन हार्न माड़िया ” अपने पुस्तक में लिखा था।

इनका मुख्य निवास क्षेत्र बस्तर, कोंडागाँव, दंतेवाड़ा, सुकमा तथा बीजापुर जिला है। 2011 की जनगणना में इनकी जनसंख्या गोंड जनजाति के उपजातियों सहित दर्शित जनसंख्या में शामिल है। इस जनजाति के लोगों के अनुसार अनुमानित जनसंख्या बस्तर संभाग में 25 हजार से अधिक होगी। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

“मांड” अर्थात् सघन पहाड़ी जंगल/माड़ के मूल निवास “माड़िया ” दण्डामी माड़िया का मूल स्थान “माड़” को माना जाता है। जो माड़िया अपने मूल निवास माड़ को छोड़कर बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर के पठारी क्षेत्र में आकर बस गये “दण्डामी माड़िया ” कहलाये। ये स्वयं को कोईतूर कहते हैं। इनकी उत्पत्ति की दंतकथा अनुसार सृष्टि के आरंभ में, जब पृथ्वी दिखाई नहीं दे रही थी। चारों ओर जल ही जल था।

“भीमुलदेव” (भीमादेव) प्रगट हुए तथा जलमग्न भूमि पर “नागर” (हल) चलाने लगे। हल चलाने के कारण धरती का कुछ सतह उभर कर बाहर आया तथा बढ़ते-बढ़ते पहाड़ का रूप धारण किया। जहाँ की पत्थर मिट्टी नागर से बाहर निकल आई, बढ़ है पान, पाटी, नदी, नाले बने। भीमूलदेव ने इधर-उधर नजर दौड़ाई, किन्तु कोई नजर नहीं आ रहा था। अचानक उन्हें एक तुम्बा पानी में तैरता नजर आया। भीमूल देव ने तुम्बा को फोड़ा, तो उसमें एक “माकढ़” (वानर) डड्डे-बुरका कोवासी अपनी पत्नी के साथ बेसुध अवस्था में बैठा हुआ मिला।

भीमुल देव उन्हें चेतना प्रदान कर पहाड़ों में दाम्पत्य जीवन बिताने का आदेश दिया। इनके दस पुत्र एवं पुत्री हुये। इनका नाम मड़ियामी, मुचकी, मडवी, माइकामी, कछिन, कोवाली, केपावी, कुंजामी, पुन्नेम आदि रखी गई इनसे समस्त आदिवासियों की उत्पत्ति हुई। बस्तर में पालनार को पूर्वजों के मूल निवास स्थान माना जाता है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

दण्डामि माड़िया जनजाति का रहन-सहन 

दण्डामी माड़िया जंगलों के बीच ऊंचे स्थान पर अपना गाँव बसाते हैं। गाँव में बीस-पच्चीस झोपड़ी दूर-दूर बनी होती है। जंगल तथा नदी-नाले समीप गाँव बसा होता है। घर स्वयं बनाते हैं। इनके घर झोपड़ीनुमा, घर की दीवार लकड़ी, बाँस की बनी होती है, जिस पर मिट्टी से “उबाई” की जाती है। छप्पर घासफूस का होता है। अन्दर बाँस की दीवार से इसे दो भागों में बाँटा जाता है। एक भाग में अनाज व घरेलू सामान रखते हैं। दूसरे भाग में रसोई की व्यवस्था होती है। सामने हिस्से में घासफूस के छप्पर युक्त “परछी ” होती है, जिसमें लोग बैठते/सोते हैं। घर के समीप गाय, बैल, “बकरी, आदि के लिए “सार” होता है। घर के चारों ओर बाड़ी होती है, जो लकड़ी या पत्थरों से घिरा होता है। प्रत्येक गाँव में “देव गुढ़ी” होता है।

प्रातः उठकर महिलाएँ घर की साफ-सफाई करती हैं। महिला एवं पुरुष करंज, हर्रा, नीम, बबूल आदि की दातून से दाँत की सफाई करते हैं। नदी-नाले में स्नान करते हैं। शरीर से मैल पत्थर से निकालते हैं। शरीर एवं बालों पर गुल्ली का तेल लगाते हैं। महिलाएँ बालों में तेल लगा कर कंघी करती है तथा जूड़ा बनाती है। जूड़े को लकड़ी या बाँस की कंघी तथा क्लिप से सजाती है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

महिलाएँ अपनी बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में हाथ, पैर, चेहरे, माथे, तुढ़ी आदि पर आकर्षक गुदना गोदवाती हैं। वस्त्र – में पुरुष लंगोटी, पंछा तथा बंडी, महिलाएँ लुगड़ा पहनती हैं। नवयुवक अब लुंगी, कमीज, पेंट तथा नवयुवतियाँ लुगड़ा-पोलका पहनने लगी हैं। महिलाएँ आभूषण की शौकीन होती हैं। अविवाहित नवयुवतियाँ गले में हमेल, सूता, नाक में फूली पहनती हैं। विवाहित स्त्रियों गले में पोत माला, कौड़ियों की माला, कलाई में कड़े पहनती है।

माड़िया युवक हाथ में पीतल या गिलट के कड़े पहनते हैं। कमर में रस्सी की करधन पहनते हैं, जिसमें तम्बाखू रखने की चुनौटी रखते हैं। ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र बहुत कम होते हैं। घास या बाँस की चटाईयों पर सोते हैं। घर में भोजन बनाने के मिट्टी तथा के बर्तन, पानी भरने की गगरी, थाली-लोटा आदि होता है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

इनका मुख्य भोजन, चावल, कोदो, कुटकी, मढ़िया का पेज, भात, उड़द, मूंग, कुलथी, बेलिया, सेम आदि की दाल, मौसमी साग-भाजी, जंगली कंदमूल, भाजी आदि है। मांसाहार में मुर्गा, बकरा, सुअर, हिरण, खरगोश, जोह, गिलहरी, पक्षी का मांस तथा मछली खाते हैं। लांदा तथा सल्फी पीते हैं। त्योहार, उत्सव, जन्म, मृत्यु संस्कार पर महुए की शराब पीते हैं।

दण्डामि माड़िया जनजाति के व्यवसाय 

माद क्षेत्र में इनके पूर्वज बेवर खेती करते थे। पठारी क्षेत्र में आने के बाद स्थिर खेती करने लगे हैं। इस जनजाति के लोग अपने खेतों में कोदो, फुटकी, मदिया, धान, अरहर, मूंग, उड़द, बेलिया, कुलथी आदि मोते हैं। घर की बादी में मक्का, बैगन, टमाटर, “तुमा ” (लौकी), “कुम्हड़ा”, “रखिया”, जिमीकंद, कोचई (अरबी), करेला, तुरई आदि बोते हैं। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

जंगलों से यनोपज एकत्र करते हैं, जिसमें महुआ, इमली, लाख, कोसा, चिरौंजी, तेंदूपत्ता, हर्रा, बहेड़ा, आँवला, शब्द आदि मुख्य हैं। इसे स्थानीय बाजार में बेचते हैं। आम तेंदू, घोड़ा, जंगली कंदमूल को एकत्र कर खाने में उपयोग करते हैं। इनके पूर्वज पुराने समय में शिकार करते थे। रंगिया और तीर धनुष इनके शिकार के मुख्य साधन हैं। पक्षियों के लिए गुलेल और फांदा का भी उपयोग करते थे।

दण्डामी माड़िया जनजाति में उड़का, मंडावी, मुड़ियामी, पोटामी, सोढ़ी, तेलामी, बारसा, ओयामी, उसेंडी, पोयामी, पड़यामी, कुरामी, कोवासी, मुचाकी, एलमा मंडावी, दर्रा, नेतामी आदि गोत्र पाये जाते हैं। गोत्रों के पशु-पक्षी, पेड़-पौधे पर आधारित वंश चिन्ह (टोटम) पाये जाते हैं। एक ही गोत्र के लड़का-लड़की में विवाह नहीं होता है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

दण्डामि माड़िया जनजाति के परम्परा 

संतानोत्पत्ति को भीमुलदेव, बूढ़ा देव की देन मानते हैं। इस जनजाति की गर्भवती महिलाएँ प्रसव के दिन तक सभी आर्थिक तथा पारिवारिक कार्य करती हैं। प्रसव घर के किनारे बने हुए “सार” में कराया जाता है। बच्चे का नाल तीर या छुरी से माता या दाई काटती है। इसे वहीं गढ़ाते हैं। 5 दिन तक दाल-चावल की खिचड़ी प्रसूता को खिलाते हैं।

छठे दिन प्रसूता तथा बच्चे को नहलाकर सूरज का दर्शन करावे हैं। 15 दिन तक प्रसूती महिला व शिशु सार में ही रहते हैं। मुख्य घर में प्रवेश नहीं कर सकती है। 16वें दिन स्नान करा बच्चे एवं प्रसूती को मुख्य घर में प्रवेश कराते हैं। रिश्तेदारों को शराब पिलाते हैं। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

विवाह के लिए मामा या बुआ की लड़की को प्रथम प्राथमिकता देते हैं। विवाह उम्र लड़कों का 18-21 वर्ष, लड़कियों का 16 से 18 वर्ष माना जाता है। विवाह प्रस्ताव लेकर वर का पिता वधू के घर दो-चार बोतल मंद (शराब) लेकर जाता है। चार व्यक्ति वधू के घर बैठकर रिश्ता तय करते हैं तथा बात पक्की होने पर बैठकर शराब पीते हैं। के रूप में 10-12 खण्डी चावल, दाल, गुड़, चूड़ी, लुगड़ा आदि देते हैं।

तय दिन को वर पक्ष बारात लेकर वधू के घर जाता है। बारात का स्वागत करते हैं। गाँव के लड़के मंडप बनाते हैं। यहाँ मण्डप पर वर-वधू को नागर की जुआड़ी ‘पर बैठाकर उनके ऊपर एक कुंडी (मटके) उठाकर पानी डाला जाता है। वधू का हाथ वर के हाथ में दे देते हैं। इस प्रकार विवाह संपन्न माना जाता है। रिश्तेदार तथा गाँव वालों को शराब पिलाते हैं। भोज देते हैं। नाचते गाते हैं।

लमसेना (सेवा विवाह), गुरांवट (बहन के पति की बहन से विवाह ), विधवा या त्यगता को चूड़ी पहनाना प्रचलित हैं। उरिया, सहपलायन को भी सामाजिक जुर्माना के बाद समाज स्वीकृत माना जाता है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

मृत्यु होने पर मृतक के शरीर को दफनाते हैं। उनक कपड़ा, तुमा टाँगिया आदि श्मशान में दफनाने के स्थान पर छोड़कर आते हैं। तीसरे दिन स्नान करते हैं। मृतक की बहन का पुत्र (भांचा) पानी में आम का पत्ता डालकर घर में छिड़काव करता है। मृत्यु भोज रिश्तेदारों को देते हैं। मृतक की स्मृति में लकड़ी या पत्थर का मृतक स्तंभ लगाने की प्रथा है।

इनका परम्परागत जाति पंचायत (सामाजिक पंचायत) अत्यंत सुगठित होता है। प्रत्येक गाँव में पटेल, गायता, सिरहा, वड्डे, हानागुंडा, गुनिया, कोटवार आदि होते हैं। ये वैवाहिक विवादों का निपटारा तथा ग्राम देवी-देवता की पूजा व्यवस्था करते हैं। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

दण्डामि माड़िया जनजाति के देवी-देवता 

इनके प्रमुख देवी-देवता भीमुल देव (भीमादेव), आंगादेव, बूढ़ाबाबा, बूढ़ीमाता, परदेशनमाता, हिंगलाजिन माता, मुड़िया देव आदि हैं। इनके प्रमुख त्योहार नवा त्योहार, दशहरा, माटी पूजा, कुम्हाड़ा पंडुम, कोसरा (नया धान) पंडुम, कड़सार, भीमुल पंडुम, महुआ पंडुम आदि है।

देवी-देवताओं को शराब चढ़ाकर मुर्गा, बकरा, सुअर आदि की बलि देते हैं। भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं। इनके प्रमुख लोक नृत्य ” ककसार या कर्ताड़” (गौर नृत्य) है। अन्य नृत्यों में पेन्दूल पाटा, कोड़ता पाटा, कुरूंम पाटा, आना पाय आदि है। ( दण्डामि माड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ Dandami madiya janjati chhattisgarh dandami madiya tribe chhattisgarh )

नृत्य में नवयुवक सुंदर वेशभूषा में सिर पर गौरसिंग का कौड़ियों से सजा “कोहक” पहन कर मांदरी को बजाते हुए पंक्ति में नृत्य करते हैं। नवयुवतियाँ सुंदर वेशभूषा में सिर एवं जूड़े को कंपी, क्लिप आदि सजाकर नृत्य करती है। इस जनजाति की विशेष बोली “कोईतूर” कहलाती हैं।

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source : Internet

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Rajveer Singh
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