छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye

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छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye

पौराणिक देव प्रतिमाओं की श्रृंखला में शैव धर्म से संबंधित परिवार देवताओं में कार्तिकेय महत्वपूर्ण देवता हैं गुप्तकाल से भारतीय कला में कार्तिकेय की कलात्मक प्रतिमायें सृजित होने लगती हैं। छत्तीसगढ़ के स्थापत्य कला में लगभग 6वीं 7वीं सदी ईसवी से की कलात्मक प्रतिमायें ज्ञात होने लगते हैं।

इस अंचल के महत्वपूर्ण स्थापत्य केन्द्र ताला, राजिम, सिरपुर, डीपाडीह, हर्राटोला के अतिरिक्त अन्यत्र पुरास्थलों में युगीन क्षेत्रीय कला शैलियों में कार्तिकेय रूपायित मिलते हैं। छत्तीसगढ़ में कार्तिकेय की मयूरासन तथा स्थानक प्रतिमायें विशेष रूप से ज्ञात हैं। छत्तीसगढ़ के शैव मंदिरों के अर्ध स्तम्भों तथा जंघा भाग पर अलंकृत कार्तिकेय की प्रतिमाएं प्रतिमा विज्ञान के लक्षणों के साथ कला के लालित्य और क्षेत्रीय मौलिक धारा को प्रकाशित करती हैं ।( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

शिल्प ग्रंथों में कार्तिकेय प्रतिमा लक्षण के मुख्य विवरणों में त्रिशिखी केश विन्यास, सौम्य मुखाकृति, गले में मणि विभूषित बघनखा, शक्ति अथवा शूल धारित भुजा और वाहन मयूर का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है। उपरोक्त अंकन कार्तिकेय के बालोचित स्वरूप के साथ उनके देव सेनापति के पद पर अभिषिक्त किए जाने की कथा के पृष्ठभूमि को विस्तारित करता है। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

कार्तिकेय प्रतिमा के प्रभामंडल में मयूर पिच्छ का प्रस्फुटन, मयूर के गले में हार तथा घंटिका का निरूपण, मयूर को स्पर्श करते- दाना चुगाते एवं उसके पृष्ठ भाग पर सवारी बाल-सुलभ मनोविज्ञान के साथ श्रृंगार-सज्जा की झांकी प्रस्तुत करते हैं। अन्य प्रतीकों में उनके एक हाथ में खिलौने के सदृश्य मुर्गा का अंकन मिलता है। कार्तिकेय द्विभुजी तथा चतुर्भुजी प्रतिमाएं अधिक लोकप्रिय रही हैं।( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

इससे अधिक भुजाओं वाली प्रतिमा उनके तंत्र ग्रंथों के आराधना स्वरूपों और शिल्पीय कौशल को उद्घाटित करते हैं। कार्तिकेय की पहचान बालग्रह के रूप में होती है। बालकों के दैवीय पीड़ा तथा बाल रोगों के शमन के लिए कार्तिकेय की उपासना के निर्देश मिलते हैं। रुद्रयामल तंत्र ग्रंथ में कार्तिकेय प्रज्ञाविवर्धन देवता के रूप में संपूजित हैं। कार्तिकेय के सर्वज्ञात बहुप्रचलित नामों में कुमार, स्कन्द, वैशाख, षड्मुख, सुब्रह्मण्यम्, देवसेनापति आदि के अतिरिक्त अष्टोत्तरशतनाम (108 नाम) से आराधना उपासना की जाती है।

एक सौ आठ नामों की सूची में सम्मिलित नामावली के अंतर्गत- वह्निगर्भाय, गांगेयाय. अग्नि सम्भवाय संबोधन से कार्तिकेय के अलौकिक जन्म तथा प्राकट्य का संकेत मिलता है। दक्षिण भारत में कार्तिकेय की पहचान मुरुगन के रूप में होती है तथा उत्सवों का आयोजन और उपासना होती है। कार्तिकेय से उत्पन्न शक्ति कौमारी एक प्रमुख मातृका है। शुभ और निशुंभ नामक महाशक्तिशाली दैत्यों के साथ गुरु के अवसर पर प्रमुख देवों की शक्तियां उन्हीं के समान रूप धारण कर संग्राम भूमि में उपस्थित हुई थीं। कार्तिकेय के के सदृश्य कौमारी आयुधों और वाहन से विभूषित रहती हैं।( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

दक्षिण कोसल अर्थात छत्तीसगढ़ में शैव धर्म व्यापक लोकप्रिय रहा है। दक्षिण कोसल स्थापत्य कला के प्रारंभिक केन्द्र देवरानी-जेठानी मंदिर ताला (लगभग हव सदी ईसवी), राजिम (लगभग 7वीं सदी ईसवी), सिरपुर (लगभग 7वीं सदी ईसवी), डीपाडीह (लगभग 7वीं सदी ईसवी), हर्राटोला बेलसर (लगभग 8वीं सदी ईसवी) से मौलिक कल्पना से प्रस्फुटित कार्तिकेय की कलात्मक का प्रतिमाओं में शिल्प शास्त्रीय लक्षण, कलात्मक अभिप्राय, भाव-भंगिमा तथा आसन भेद से लालित्य का चरमोत्कर्ष विशेष रूप से आकृष्ट करता है।

प्रतिमाओं का संक्षिप्त परिचय

कार्तिकेय (ताला) 

यह चतुर्भुजी प्रतिमा सौम्य मुखाकृति युक्त, त्रिशिखी केश विन्यास, बघनखा जड़ति ग्रैवेयक तथा अन्य पारंपरिक आभूषणों सहित संतुलित अंग सौष्ठव से परिपूर्ण कार्तिकेय सम्मुख मुख किये.. मयूर के पीठ पर दोनो पैर फैलाये आसीन हैं। मयूर के पंख उध्वभाग में प्रभामंडल तक विस्तृत है।

इसके सिर पर मुकुट कान में कुंडल, गले में हार, भुजबंध तथा हाथ में कंगन सुशोभित है। सभी भुजाएं खण्डित अवस्था में होने के कारण आयुधों का ज्ञान नहीं होता है। मयूर का मुख भी खण्डित है। प्रतिमा की लंबाई 56 इंच, चौड़ाई 45 इंच एवं गहराई 11 इंच है। इस प्रतिमा का काल लगभग पांचवीं छठवीं शताब्दी ईसवी माना गया है। यह शिल्पकृति वर्तमान में जिला संग्रहालय बिलासपुर में संग्रहित है।( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

कार्तिकेय (कुलेश्वर मंदिर राजिम ) 

कार्तिकेय सम्मुख मुख किए मयूर पर आसीन दायां पैर मोर के पंख पर और घुटने से जुड़ा बायां पैर मयूर के गर्दन पर स्थित त्रिशिखी केश विन्यास तथा बघनखा जडति मुक्ताहार के साथ विविध पारंपरिक अलंकरणों से शोभित हैं। मयूर के दोनों पैरों के मध्य एक वक्रिम आकृति युक्त पुरूष का अंकन है।

समीपस्थ दायें भाग में पद्मासनस्थ आराधक पुरूष तथा बायें ओर अर्ध ललितासन में एक गण भी स्थित है इस प्रतिमा के अधिष्ठान भाग पर  दो आसनस्थ भारवाहक गणों के मध्य त्रिभंग ‘मुद्रा राजपुरूष दाहिने हाथ से भार वहन में सहयोग कर रहा है।( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

कार्तिकेय डीपाडीह में ही अवस्थित सामत सरना मंदिर

के मण्डप के बाएं भित्ति के किनारे पर प्रदर्शित, द्विभुजी कार्तिकेय मयूरासीन प्रतिमा का माप 200×64×37 सेमी., पादपीठ के ऊपर दो भागों में विभक्त है जिसके निचले खण्ड में सादे चौकी के मध्य में सनाल पद्मपीठ के नीचे वानर किष्किंधा पति बालि एवं उनके अनुज सुग्रीव का द्वंद्व युद्ध प्रदर्शित है। वे एक दूसरे की जंघा को एक हाथ से पकड़कर, दूसरे हाथ की मुष्ठि से प्रहार करने को तैयार दिखाई दे रहे है।

दोनों के पीछे उनकी पत्नियां क्रमश: तारा एवं रूमा प्रदर्शित हैं। पद्मपीठ के ऊपर बाएं तरफ मुंह किए हुए वाहन मयूर खड़ा हुआ जिस पर ललितासन मुद्रा में कार्तिकेय बैठे हुए हैं। वे अपने दाएं हाथ में शक्ति धारण किए हुए हैं जिसका ऊपरी सिरा खण्डित है। त्रिशिखी कार्तिकेय के सिर की मध्य शिखा पुष्पहार से युक्त, जटा मुकुट के रूप में तथा दो, दोनों कंधो पर लटकती हुई केशराशि मरीजरती है ।

कुमार कार्तिकेय कानो में कुण्डल ,गले में अरावली एवं व्याघ्रनख जड़ति हार पहने हुए हैं। वे कंकण, केयूर, उदरबंध, कटिमेखला तथा परवलय से सुसज्जित हैं। कटि के नीचे पुष्पांकित पारदर्शी अधोवस्त्र पहने हुए हैं। इनके माथे में गोल बिन्दी है। नासिका का अग्रभाग खण्डित है। सिर के पीछे कमलदल युक्त अण्डाकार प्रभामण्डल है तथा मूर्ति पेट के ऊपरी भाग में दोनों अंतिम सिरों पर उड़ते हुए मालधारी विद्याधर प्रदर्शित हैं, जो खण्डित हैं। इस प्रतिमा का काल नवमीं शताब्दी ईसवी के लगभग माना गया है . ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

कार्तिकेय ( सिरपुर )

श्री अरूण कुमार शर्मा निदेशक सिरपुर उत्खनन के द्वारा सिरपुर के बालेश्वर मंदिर समूह के उत्खनन से एक विलक्षण कार्तिकेय प्रतिमा प्रकाश में आई है। इस शिल्पखंड पर तीन मयूरासन कार्तिकेय आकृतियां परस्पर संगठन प्रदर्शित हैं। अधोभाग पर भारवाहक और गणों का अंकन है। यह शिल्पकृति बालेश्वर मंदिर के मण्डप से संलग्न रही होगी। यह सोमवंशी कला शैली की एक जटिल, लक्षण तथा मौलिक कृति है। यह अत्यधिक क्षरित तथा भग्न है।

कार्तिकेय ( महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर ) 

षडानन द्वादशभुजी कार्तिकेय की प्रतिमा रतनपुर के कलचुरि कला शैली का प्रतिनिधित्व करती है। यह प्रतिमा कार्तिकेय के सर्वांगपूर्ण लक्षणों के साथ ध्यान तथा प्रार्थना के निर्दिष्ट स्वरूपों तथा तंत्र को प्रकाशित करता है। इसकी प्राप्ति बिलासपुर जिले में गोमरी नामक ग्राम से हुई है। यह प्रतिमा बारहवीं शताब्दी ईसवी की मानी गई है। द्वादश भुजी कार्तिकेय के वाहन मयूर दायें पैर के सन्निकट दर्शित है।

शिल्पकृति में कार्तिकेय के मुख्य मुख के साथ चार अन्य मुख निर्मित हैं। स्थानाभाव से एक मुख निर्मित नहीं है। प्रतिमा के शिरोभाग पर जटामुकुट युक्त केश विन्यास सहित विविध पारंपरिक अलंकरण कान में कुण्डल, गले में हार, मुक्त माला, कमर में कटिसूत्र, हाथ में कंकण और बाजुबंध, तथा पैरों में परवलय पहने हुए अलंकृत है। दायें तरफ के छ: हाथों में से दो हाथ खण्डित हैं। एक हाथ में आयुध खण्डित अवस्था में दिखाई दे रहे है। बाएं हाथ में बाण तथा उसके नीचे का हाथ स्पष्ट नहीं है तथा एक हाथ अभयमुद्रा की हथेली में गोल बिन्दु है। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

बायें तरफ के छः हाथों में से तीन हाथ खण्डित अवस्था में है, दूसरा अभय मुद्रा में और एक हाथ की हथेली में कुकुट तथा दूसरे में धनुष लिये हुए प्रदर्शित है बाई तरफ कार्तिकेय का वाहन मयूर है। बांयी तरफ दो आभूषणों से सुसज्जित परिचारिकायें है जिनमें एक हाथ में चंवर लिए खड़ीतथा दूसरी हाथ जोड़े हुए बैठी है।

बालसमुंद सिद्धेश्वर मंदिर रायपुर

से बलौदाबाजार रोड पर 70 किमी. की दूरी पर पलारी ग्राम में बालसमुंद नामक तालाब के किनार, पश्चिमाभिमुख ईष्टिका निर्मित शिव मंदिर सिद्धेश्वर मंदिर के नाम से है। इस मंदिर के जवा भाग के मध्यरथ में चेत्य गवाक्ष के अंदर गजलक्ष्मी, कुबेर, सूर्य, वराह, कार्तिकेय, गणेश आदि की प्रतिमाएं अंकित हैं। जिसमें कार्तिकेय की प्रतिमा दक्षिणी उत्तरी कोने के कर्ण रथ में चैत्य गवाक्ष में निर्मित है।

कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर आसीन है। मयूर का उदर से मुख तक का भाग क्षरित है, जबकि पृष्ठभाग में पंख दृष्टव्य है। देव के सिर में मुकुट, कर्ण कुण्डल तथा गले में हार, दायें हाथ में मुद्रर जैसी वस्तु पकड़े हुये हैं तथा बांये हाथ से मयूर की गर्दन पकड़े हुये हैं। मयूर का मुख पूर्व दिशा की ओर और देव का मुख खण्डित है। इसका निर्माणकाल लगभग सातवीं-आठवीं शताब्दी ईसवी माना गया है। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

राजनांदगांव जिला पुरातत्व संग्रहालय में प्रदर्शित त्रिमुखी कार्तिकेय की प्रतिमा

राजनांदगांव जिला पुरातत्व संग्रहालय में प्रदर्शित त्रिमुखी कार्तिकेय की प्रतिमा द्विभंग मुद्रां में स्थित है। इस प्रतिमा की प्राप्ति पुतली- पीलिया नामक स्थल से हुई है। कार्तिकेय चतुर्भुजी उनके हाथों में क्रमशः वरदमुद्रा के साथ ही, शूल या दण्ड, पाश तथा कुक्कुट धारण किये हुए मुकुट, हार, यज्ञोपवीत, मेखला, भुजबंध तथा नूपूर आदि आभूषणों से सज्जित है। कटि पर कटिसूत्र एवं अधोवस्त्र को अलंकरणात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। दाहिने पैरों के सम्मुख वाहन, मयूर का अंकन है जो कार्तिकेय की ओर उन्मुख है। निर्माण काल लगभग तेरहवीं शताब्दी ईसवी माना गया है।

दुर्ग-बेमेतरा रोड पर धमधा 

दुर्ग-बेमेतरा रोड पर धमधा पुरास्थल स्थित जहाँ तालाब के किनारे शिव मंदिर में कार्तिकेय की प्रतिमा उत्कीर्ण है। प्रतिमा मंदिर के अंतराल में दाहिने आलिंद पर मयूर ( खण्डित अवस्था) में पर आरूढ़ है। यह प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर से निर्मित षड्मुखी है। मध्य का मुख अपेक्षाकृत बड़ा तथा पार्श्ववर्ती मुख क्रमशः छोटे होते चले गये हैं किनारे का एक मुख खंडित है। सिर नोंकदार तथा किरीट मुकुट से युक्त है। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

यह प्रतिमा चतुर्भुजी है जिसके चारों हाथ कलाई से खण्डित हैं। प्रतिमा का बीच का मुख तथा दोनों पैर खंडित है। कार्तिकेय कर्ण में कुण्डल, गले में दो हार, हाथ में कड़ा तथा भुजबंध, आभूषण धारण किय हुये हैं। इस मंदिर का निर्माण काल लगभग चौदहवीं पंद्रहवीं शताब्दी ईसवी माना गया है।

अंबिकापुर संग्रहालय में द्विभुजी कार्तिकेय की प्रतिमा

अंबिकापुर संग्रहालय में द्विभुजी कार्तिकेय की प्रतिमा अंबिकापुर जिला में 1990-91 में बेसलर नामक ग्राम में तालाब के समीप एक टीले के उत्खनन के दौरान हुई थी। प्रतिमा का माप 53×35×17 सेमी. है। यह प्रतिमा अपने वाहन मयूर पर आरूढ़ है। मयूर के दोनो पंख गतिशील अवस्था में दिखाई दे रहे हैं। प्रतिमा के मयूर के पंखों का अलंकार है तथा उसके गले में पृष्ठभाग में घण्टी बंधी हुई है।

कार्तिकेय के सिरोभाग पर त्रिशिखीय केशविन्यास है। वे चक्राकार कुण्डल, मुक्त ग्रेवैयक, केयूर तथा कटिसूत्र पहने हुए हैं। प्रतिमा की दोनों भुजाएं भग्न है। दाएं हाथ में संभावित फल तथा बाएं हाथ में शूल रहा होगा। यह प्रतिमा बेलसर से प्राप्त अन्य सभी प्रतिमाओं ने सबसे उच्च कोटि की है। जो कि कलाशैली की दृष्टि से गुप्तोत्तर कालीन लावण्य, ओज तथा सौष्ठव से परिपूर्ण आठवीं-नवमी शताब्दी ईस्वी ने निर्मित प्रतीत होती है । ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

अंबिकापुर जिला के अंतर्गत आने वाले ग्राम कोठी पखना पुरातात्विक स्थल पर कुछ प्राचीन स्थापत्य एवं कलाकृतियां स्थित है जिसमें से एक प्रतिमा द्विभुजी कार्तिकेय की है। प्रतिमा का निचला भाग तथा दोनों भुजायें भग्न है तथा पृष्ठभाग में मयूर पृच्छ दिखाई दे रहा है । कानों में गोलाकार पुष्प तथा कंठ में हार है। यह प्रतिमा लगभग तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी ईसवी में निर्मित प्रतीत होती है।

सरगुजा जिले के अंतर्गत ही महेशपुर नामक पुरातात्त्विक स्थल

सरगुजा जिले के अंतर्गत ही महेशपुर नामक पुरातात्त्विक स्थल  अवस्थित है। यहाँ बिखरे हुए ध्वंसावशेष के भीतरदुरा समूह में आदिनाथ टीले से एक चतुर्भुजी कार्तिकेय प्रतिमा की प्राप्ति हुई है। हाथों में अस्पष्ट वस्तु हैं। प्रतिमा का मुख खण्डित है। गले में यज्ञोपवीत, कटिसूत्र आदि आभूषण पहने हुए प्रतिमा त्रिभंग मुद्रा में स्थित है। प्रतिमा के दाएं तरफ नीचे की ओर उनका वाहन मयूर है। प्रतिमा के ऊपरी भाग में जालिकावत अलंकरण है। प्रतिमा की माप 61×50×16 सेमी. है तथा इसका काल नवमीं दसवीं शताब्दी ईसवी ज्ञात होता है।

सरगुजा जिले के कुसमी तहसील

सरगुजा जिले के कुसमी तहसील  में डीपाडीह नामक बस्ती से लगभग 3 किमी. की दूरी पर प्राचीन मंदिरों के अनेक भग्नावशेष विद्यमान हैं। डीपाडीह के सूर्य मंदिर समूह में कार्तिकेय की चतुर्भुजी प्रतिमा स्थित है। इस प्रतिमा के ऊपरी दांये हाथ में अस्पष्ट वस्तु तथा निचले हाथ से कार्तिकेय मयूर को दाना चुगाते हुए दिखाई दे रहे हैं। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

बायां हाथ भग्न है। शिरोभाग के पीछे प्रभामण्डल तथा शीर्ष पर त्रिशिखा केशविन्यास है। नीचे दायें तरफ स्थित परिचारक संभवतः चंवर पकड़े हुये हैं। ऊपरी दायां प्रभामण्डल तथा अधिष्ठान भाग भग्न है और मयूर कार्तिकेय के दायें तरफ स्थित है। इस प्रतिमा का काल लगभग आठवीं-नवमी शताब्दी ईसवी माना गया है।

पाली स्थित महादेव मंदिर 

पाली स्थित महादेव मंदिर जिसका निर्माण बाणवंशीय शासक विक्रमादित्य द्वारा नवमी-दसवीं शताब्दी ईसवी के बीच कराया गया था। इस मंदिर के दक्षिणी भित्ति के आले में कार्तिकेय की खड़ी प्रतिमा का अंकन हुआ है । | कार्तिकेय अष्टभुजी रूप में प्रदर्शित है। कार्तिकेय के दाएं भाग के हाथों में खड्ग, त पाश का अंकन है बाकी की सारी भुजाएं खंडित अवस्था में है। कार्तिकेय के बाएं ओर खड़े हुए मयूर का अंकन है, परंतु मयूर का सिर खंडित अवस्था में दिखाई दे रहा है। कार्तिकेय किरीट मुकुट, कुण्डल, हार, कटिसूत्र, परवलय पहने हुए द्विभंग मुद्रा में सभी आभूषणों से सुसज्जित हैं ।

धमतरी जिले के अंतर्गत पुरास्थल नवागांव में पैरी,

धमतरी जिले के अंतर्गत पुरास्थल नवागांव में पैरी,सोंदूर तथा महानदी के संगम पर मंदिर स्थित है। मंदिर के दांये भित्ति के बाह्य कुलेश्वर में मयूरासन कार्तिकेय की प्रतिमा का अंकन है। इस प्रतिमा में कार्तिकेय अपने वाहन मयूर के पीठ पर सुखासन मुद्रा में बैठे हुए प्रदर्शित हैं यह एक द्विभुजी प्रतिमा है जिसका दाहिना हाथ खण्डित है। बायां हाथ घुटने पर अवलंबित है। यह प्रतिमा जटामुकुट, भुजबंध, कंगन, कंठहार, त्रिलड़ी युक्त मुक्ताहार और यज्ञोपवीत से श्रृंगारित है इस प्रतिमा के पृष्ठाधार में मयूर पृच्छ का अंकन है। ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

मयूर के नीचे एक प्रतिमा बैठी हुई प्रदर्शित है जिसका सिर तो एक है परंतु शरीर अलग अलग है। प्रतिमा के नीचे निर्मित भारवाहक भी अत्यंत अलंकृत है जिसका एक हाथ ऊपर की ओर कार्तिकेय के भार को थामे हुए है तथा दूसरा हाथ घुटने के ऊपर रखा हुआ दिखाई दे रहा है। यह प्रतिमा आठवीं-नवमीं शताब्दी ईसवी की ज्ञात होती है, जिसका माप 150×40×20 सेमी. है ।

बस्तर संभाग में बारसूर के चंद्रादित्येश्वर मंदिर

बस्तर संभाग में बारसूर के चंद्रादित्येश्वर मंदिर के जंघाभाग में द्विभुजी कार्तिकेय की प्रतिमा, पद्मासन मुद्रा में बैठी हुई प्रदर्शित है। यह प्रतिमा तीन मुखों से युक्त है जो मुकुट, कुण्डल, हार, कटिसूत्र तथा माला धारण किये हुए है इस प्रतिमा के बायें किनारे पर वाहन मयूर के गर्दन से ऊपर का भाग प्रदर्शित है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1060 शताब्दी ईसवी में कराया गया था।

जगदलपुर जिला पुरातत्व संग्रहालय में भी एक चतुर्भुजी कार्तिकेय की प्रतिमा

जगदलपुर जिला पुरातत्व संग्रहालय में भी एक चतुर्भुजी कार्तिकेय की प्रतिमा प्रदर्शित है। इस प्रतिमा की प्राप्ति कुरूसपाल नामक पुरातात्विक स्थल हुई है। यह प्रतिमा लगभग बारहवीं शताब्दी ईसवी की मानी गई है। इस प्रतिमा के तीन मुख प्रदर्शित हैं। दायें हाथों में से एक हाथ वरद मुद्रा में तथा दूसरे हाथ में शक्ति का अंकन है, बायें हाथों में से एक हाथ दूसरे हाथ में शक्ति का अंकन है, बायें हाथों में से एक हाथ में पाश तथा दूसरा हाथ कुक्कुट पकड़े हुए है। यह प्रतिमा सिर पर मुकुट, गले में माला तथा सभी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित है। प्रतिमा के दाहिने तरफ मयूर का अंकन हुआ है।

हर्राटोला बेलसर से ज्ञात कार्तिकेय प्रतिमा

हर्राटोला बेलसर से ज्ञात कार्तिकेय प्रतिमा अलंकार की दृष्टि से विकसित है। उपरोक्त विवरणों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन छत्तीसगढ़ में पांचवी शताब्दी ईसवी से लेकर चौदहवीं शताब्दी ईसवी तक शैव परिवार के सदस्य के रूप में कार्तिकेय की उपासना अनवर क्रम में दिखाई देती है। चूंकि उत्तर तथा दक्षिण भारत के शासकों ने कार्तिकेय को युद्ध का देवता मानकर उन्हें अपने संपोषित कला शैली में प्रतिष्ठित किया था, ( छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्तिकेय प्रतिमाये | Chhattissgarh Me Vibhinn Kartikey Pratimaye )

इसका ही प्रभाव रहा होगा कि छत्तीसगढ़ के स्थानीय शासकों ने भी साम्राज्य विस्तार करने हेतु युद्ध के देवता कार्तिकेय को आराध्य देव मानकर, प्रतिमा शास्त्रीय मूर्ति विधान अनुसार, उनकी प्रतिमा निर्मित करवाई तथा स्थापत्य कला में विशेष महत्व प्रदान किया। शैव परंपरा में इसका प्रचलन उतना ही महत्वपूर्ण रहा, जितना गणेश का रहा है। गणेश की प्रतिमाओं के समान ही भावाभिव्यक्ति, कार्तिकेय प्रतिमाओं के अंकन में भी दिखाई देता है जिसका प्रमाण छत्तीसगढ़ के स्थापत्य एवं मूर्तिकला में दृष्टिगोचर होने वाले कार्तिकेय की प्रतिमाएं हैं। 

छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल

छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास

शिवरीनारायण मंदिर

माँ बम्लेश्वरी मंदिर

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Rajveer Singh
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Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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