छत्तीसगढ़ी गजल मुकुंद कौशल | Chhattisgarhi Gajal by Mukund kaushal
(1)
छै बित्ता के मनखे देखौ, का का जिनिस बिसा लेथे ।
आगी पानी पवन अकासा, भुंइया तको नँगा लेथे ।।
(2)
चारो डहर सवाल उगे हे , मुड़ उचाये करगा कस ।
यैला लू के सफल किसनहा, हर जुबान सिरजा लेथे ।।
(3)
पीरा अपने आप टहल जाथे बेरा के धरकत ले।
उखड़े ह्रदय जमाना संगी , जै पीरा संग गा लेथे ।।
(4)
हिजगा पारी के बाजार माँ , परमारथ के मोल कहा ।
हास् के गुरतुर भाखा बोले , यही परमपद पा लेथे ।।
(5)
समय पड़े हे सम्हारे बर अउ चिक्कन कोरे गाथे बर,
चतुरा मन हर ठउँका बेरा , चुंदी ला पाटिया लेथे ।।
(6)
दिन दुकाल ला हास् के सहिये , छत्तीसगढ़ के भुइया हर ।
महतारी मन गरा-धुंका , अचरा मा गठिया लेथे ।।
(7)
जम्मो साध चुरौना बोरव, एक साथ के खातिर मै।
एक डिसा के उड़त परेवा , ठिया ला अमरा लेथे ।।
(8)
उनखर तीर ओंधे के पहिली , सुन ले कौशल गोठ हमर ।
बड़े-बड़े मछरीमन छोटे , मछरी मन ला खा लेते ।।
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