छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta
छत्तीसगढ़ का जन्म नाम कै-कोसला। रामायण, महाभारत, पुराणों तथा प्राचीन ग्रंथों में इस राज्य को ‘कोसल’ ही कहा गया है। शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों में भी इसे ‘कोसल’ लिखा गया है। दसवीं शताब्दी के पश्चात रतनपुर के कलचुरि नरेश ने कोसल राज्य का बहुत विस्तार के कारण कोसल को महाकोसल कहा जाने लगा।
महाकोसल (वृहत्तर कोसल) नाम दक्षिण कोसल अर्थात छत्तीसगढ़ के लिये चेदि हैहयवंश के शासकों ने महिमामय होने के तथ्य को स्थापित करने के लिए प्रयुक्त किया था। ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
संभवतः श्रेष्ठ किस्म के कोसा उत्पादन का क्षेत्र होने के कारण प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ कोसल और बोली जाने वाली भाषा को ‘कोसली’ कहलाती थी। जब इस क्षेत्र का नाम महाकोसल प्रसिद्ध हुआ तब इस क्षेत्र की भाषा ‘महाकोसली’ कही जाने लगी है। विगत दो ढाई सौ वर्षों से कोसल या महाकोसल नाम के स्थान पर छत्तीसगढ़ नाम प्रसिद्ध है इसलिए यहां की जनभाषा छत्तीसगढ़ी कहलाने लगी। बिलासपुर जिला गजेटियर मे भी ऐसा ही अभिमत व्यक्त किया गया है ।
सबलपुर तथा खरियार में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी आज भी ‘कोसली’ कहलाती है। सबलपुर विश्वविद्यालय में ‘कोसली’ भाषा पर एक सेमीनार भी आयोजित हुआ था। बिलासपुर गजेटियर का दावा है कि जिले में 91% लोग छत्तीसगढ़ी बोलते हैं जबकि रायपुर जिला गजेटियर के अनुसार जिले के 81% लोग छत्तीसगढ़ी भाषी हैं। बस्तर जिले में हलबी तथा गोण्डी मु य जनभाषा है। किंतु वहां भी छत्तीसगढ़ी बोलने वालों की पर्याप्त सं या है। छत्तीसगढ़ी के अन्य सभी जिलों में लगभग 90 प्रतिशत लोग छत्तीसगढ़ी ही बोलते हैं। ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
छत्तीसगढ़ अंतर्राज्यीय भाषा है। यह महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली तथा भंडारा में, मध्यप्रदेश के बालाघाट, मंडला तथा शहडोल में, उड़ीसा के सुंदरगढ़, स बलपुर, खरियार आदि जिलों में बोली जाती है। इसी प्रकार आसाम के नवागढ़ क्षेत्र के तीस पैंतीस गांवों में टाटानगर तथा खड़गपुर में, नागपुर, भोपाल तथा दिल्ली में हजारों की सं या में छत्तीसगढ़ी भाषियों की अपनी बस्ती है।
छत्तीसगढ़ से लगे झारखंड के दो जिलों में भी लोगों की भाषा छत्तीसगढ़ी है। छत्तीसगढ़ी भाषा बोलने वालों की संख्या सवा दो करोड़ आंकी जा सकती है। छत्तीसगढ़ी का सुव्यवस्थित व्याकरण काव्योपाध्याय हीरालाल में सन 1885 में लिखा था। जबकि खड़ी बोली हिंदी का सर्वस मत व्याकरण पं. कामता प्रसाद गुरु ने लिखा जो सन 1910 में काशीनगरी प्रचरिणी सभा द्वारा प्रकाशित हुआ था। ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
छत्तीसगढ़ी भाषा जो प्राचीनतम में कोसली या महाकोसली कहलाती थी, संस्कृत से निकली भाषा है। संस्कृत के विद्वान डॉ. महेशचंद्र शर्मा के अनुसार छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृत की पठियारी बहनी है। एक संतान के ठीक पश्चात जो संतान होती है, उसे पठियारी कहते हैं। डॉ. शर्मा के अनुसार संस्कृत की विभक्ति निष्ठा छत्तीसगढ़ी में ज्यों की त्यों है। दोनों में ही समान रूप से किर्यापदों व कारक चिन्हों में लिंग भेद नहीं है। राम का बेटा, राम के बेटी को छत्तीसगढ़ी में ‘तैं जावत हस’ कहेंगे।
संस्कृत में ‘त्वं गच्छसि’ एक जैसी कहेंगे। मध्य पुरुष एक वचन ‘असि’ छत्तीसगढ़ी तथा संस्कृत में समान है। ऐसी ही भाषा वैज्ञानिक समानताएं हैं, जो दोनों भाषाओं में अन्तः संबंधों को उजागर करती है। इनके सहोदरा सूत्र को इस प्रकार भी समझा जा सकता है अतः सलिला के रुप में संस्कृत आज भी यहां के लोक जीवन में प्रवाहित है।
ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जो संस्कृत के हैं किंतु उच्चारण भेद के कारण हम समझ नहीं पाते। ये ऐसे शब्द हैं, जिन्हें हम अपने घरेलू जीवन में रोजमर्रा के जीवन में बोलते हैं। छत्तीसगढ़ में धान की फसल पकने पर धान के दाने जो खेत में झरकर गिर जाते हैं, उसे बीनने की क्रिया को छत्तीसगढ़ी में ‘सिला बीनना’ कहते हैं। ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
महाभारत में एक श्लोक में ऐसे ऋषियों का उल्लेख है, जो खेत में झरकर गिरे हुए अन्न के दानों को बीन-बीन कर जितना एकत्र कर पाते हैं, उसी से उदरपूर्ति करते हैं। ऐसे ऋषियों को ‘शिलाहारी’ कहा गया है।
संस्कृत का वही ‘शिला’ शब्द छत्तीसगढ़ी में ‘सिला’ कहलाता है। छत्तीसगढ़ में छान की खेतो में ‘ब्यासी’ की प्रथा है। संस्कृत में ‘व्यास’ शब्द है। संस्कृत में इस शब्द का एक अर्थ है- वह रेखा जो किसी गोल मंडल या वृत्त के किसी एक घेर से सीधी चलकर दूसरे सिरे तक पहुंचती हो ।( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
व्यास का अर्थ विस्तार या फैलवा भी है। किसान अपने खेतों में नागर के द्वारा यही कार्य करता है। इसे वह ‘ब्यासना’ कहता है। छत्तीसगढ़ के गांवों में नाई को मर्दनिया स बोधित किया जाता है। यह संस्कृत शब्द ‘मर्दन’ शब्द से बना है। गांवों में धोबी को ‘उजीर’ कहा जाता है। यह उजीर शब्द संस्कृत के ‘उज्जवल’ शब्द से बना है।
छत्तीसगढ़ में महिलाएं गालियों के लिये जिन शब्दों का प्रयोग करती हैं, वे शुद्ध संस्कृत के होते हैं, किंतु उच्चारण भेद के कारण हम उन्हें पहचान नहीं पाते। उदाहरण के लिये चण्डालिन (चाण्डाल से), परपंचिन (प्रपंच से) परेतिन (प्रेत से), पंचालिन (पांचाली से) बंचक (प्रवंचना से), कलकलहिन (कलह से), छुरनी (क्षुर से), दुरभिच्छिन (दुर्भिक्ष से) आदि शब्द संस्कृत शब्दों से बने हुए हैं। कुछ चुनिंदा तत्सम शब्दों से उत्पन्न छत्तीसगढ़ी गालियां नि नानुसार हैं
बिटावन-बिटौनी, लबरा,, कुटनी-कुटमाती, चरकट्टी, तलखोर, बतखोर, बदजात, जोगड़ा दोगी, लेदरा-आलसी, लठिंगरा-आवारा, भोकवा-बुद्ध, घेतला सीधा सरल, चटरहा- बहुत बोलने वाला, छिनार, निरलज, दोगला, कलमुंहा, ऊंगचगहा, गिजगिजहा, दांत निपोरने वाला, अघोरी, परबुधिया, कुकर्मी, भड़भड़ाहा, खदराहा, हत्यारा, भड़भड़हिन, परपंचित, चण्डालिन, पंचालिन, परचंडिन, दुर्भिच्छन, छुरनी, कलकलहिन, परलोकहिन, कुलच्छिन, दोखहिन, रोगही अघत, ठगड़ी, बाप खई, भाई खई, लुछर्रिन, पदरी अभागिन, बिदरा, खटकरमी, नखराहा, मुड़पेलवा, रोगहा, परलोकिहा, परचण्डा, लपरहा, मटमटहा, कनघटोर, कोड़िहा, कयरहा, कलकलहा, चण्डाल, दोखहा, गतमरहा, तोर मुँह मा कीरा परै, निरबंसी, मुड़पिरना, खटपटहा, खाय के पातुर, कुल बोरुका । ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )
केवल व्याकरण के आधार पर एक भाषा को दूसरी भाषा से भिन्न माना जा सकता है। छत्तीसगढ़ी भाषा व्याकरण की दृष्टि से खड़ी बोली से सर्वथा भिन्न है। छत्तीसगढ़ी में स प्रदान कर्म ‘ला या ल’ है स प्रदान । कारक की विभक्ति ‘बर’ है। निश्चित का भाव व्यक्त करने के लिये छत्तीसगढ़ी में कतार्तकारकीय पद के साथ ‘हर या ह’ का प्रयोग होता है।
संज्ञा का बहुवचन ‘मन’ लगाकर बनता है। स्त्री या पुरुषों की सं या बताने के लिये छत्तीसगढ़ी में ‘झन’ लता है तथा पशु-पक्षियों, वस्तुओं के लिये ‘उन’ का प्रयोग होता है। अधिकरण में ‘मा या म’ का प्रयोग होता है। व्याकरण की दृष्टि से और भी भिन्नताएं हैं जिनके कारण छत्तीसगढ़ी को खड़ी बोली से सर्वथा भिन्न भाषा का दर्जा गिया गया है। ( छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृत में समानता | Chhattisgarhi Bhasha aur Sanskrit me Samanta )