छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh

Share your love
Rate this post

छत्तीसगढ़ के शासको के अभिलेख | Chhattisgarh ke Shasako ke Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh

तिथिलेखन तकनीक का इतिहास

प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण भाग है। पुरालेखीकीय, अर्थात पुरालेखों की लेखन तकनीक पुरालेखों के इतिहास का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है, कि मानवीय भावनाओं के अभिव्यक्ति के लिये प्रतीक चिन्हों के अंकन के साथ ही लेखन कला का उदभव भी हुआ होगा।

पुरालेखीय तकनीक में हुए क्रमिक विकास में अभिलेखों की ऐतिहासिकता तथा प्रमाणिकता को सिद्ध करने वाले अनेक महत्वपूर्ण कारक हैं, जिसमें तिथि अंकन तकनीक या तिथि लेखन प्रविधि का महत्वपूर्ण स्थान है।

प्राचीन भारत में अभिलेखों में तिथि अंकन सकता है तकनीक का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि इसका सर्वप्रथम प्रयोग मार्यवंशीय प्रतापी शासक अशोक के अभिलेखों में राज्यवर्ष लेखन के रूप में मिलता है।

जिसका क्रमशः विकास सातवाहन शक कुषाण, गुप्त वाकाटक एवं पूर्व मध्य कालीन शासकों द्वारा जारी किये अनेक अभिलेखों में राज्य वर्ष, वंश वर्ष, तिथि, दिन, पक्ष, नक्षत्र, मास, ऋतु एवं संवत्सरों के रूप में अनेक प्रकार से तिथि अंकित किया गया है .( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )

छत्तीसगढ़ में तिथिलेखन का विकासक्रम

अंकन तकनीक का प्रयोग समय-समय पर किए गया। है। जिसका वंशक्रम एवं कालक्रम की दृष्टि से विकासक्रम भिन्न रहा है। इन्हीं तथ्यों का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत शोध-पत्र में किया गया है।

क्षेत्र से ई. पू. द्वितीय शताब्दी से तेरहवी शताब्दी ई. के मध्य में जारी और अब तक प्राप्त विभिन्न दान अनुदान एवं निर्माण के उपलक्ष्य में किये गये अभिलेखों को संख्या लगभग 175 है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )

इनमें से लगभग 75 प्रतिशत लेख किसी न किसी प्रकार से तिथि अंकित है। जिनका विकासक्रम का कालक्रमानुसार विश्लेषण करने पर मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

प्रथम वर्ग

इस वर्ग के अंतर्गत छत्तीसगढ़ क्षेत्र से प्राप्त प्रारंभिक अभिलेखों को लिया गया है। जिन्हें विषयवस्तु की दृष्टि से दो भागों में विभाजित गया-

  1. छत्तीसगढ़ क्षेत्र से प्राप्त प्रारंभिक लेख मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। जिसमें किसी भी प्रकार के तिथि अंकन तकनीक का प्रयोग नहीं किया।
  2. छत्तीसगढ़ क्षेत्र में तिथि अंकित प्रथम अभिलेख सातवाहन कलीन ब्राह्मी लिपि के हैं जो कुमारवरदत्त द्वारा जारी और गुंजी से प्राप्त शिलालेख के रूप में दिवान का उल्लेख हुआ। इसमें यह स्पष्ट नहीं होता। है कि इसमें उल्लेखित 6 संवत्सर का संबंध किस संवत् से है और इसका क्या अभिप्राय है। इसी प्रकार दिवस 6 से भी किसी निश्चित तिथि का ज्ञान नहीं होता

द्वितीय वर्ग

इस वर्ग के अंतर्गत पांचवी से आठवीं शताब्दी ईसवी के मध्य स्थानीय राजवंश के शासकों द्वारा जारी किए गए अभिलेखों को रखा गया है।

छत्तीसगढ़ के शासको के अभिलेख

नलवंशीय शासकों के अभिलेख

छत्तीसगढ़ में शासन करने वाले स्थानीय शासकों के क्रम में प्रथम स्थान नलवंशीय शासकों का रहा है। इस वंश के शासकों द्वारा जारी और अब तक प्राप्त अभिलेखों की संख्या चार है। जिसमें से तीन हुआ है। अभिलेखों में तिथि अंकित किया गया है और उसमें निम्नलिखित तिथि अंकन प्रविधि का प्रयोग हुआ है।

  • नलवंशीय शासकों के अभिलेखों में शासकों ने राज्य वर्षों का तो उल्लेख किया है किन्तु इनके अभिलेखों में किसी मानक संवत् का प्रयोग नहीं किया गया है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )
  • भवदत्तवर्मा के ऋद्धिपुर ताम्रपत्र में एकादसराज्यवर्षे कार्तिकमासस्यबहुल सप्तम्याम् शब्द का उल्लेख किया गया है। अर्थपति के कैंसरीबेड़ा ताम्रपत्र में संत्वसर 7 मार्गशीर्षमास अमावस्या का उल्लेख है। स्कन्दवर्मन के पोंडागढ़ शिलालेख में बारहवें राज्य वर्ष माघ मास और सत्ताइसवी तिथि का उल्लेख किया है।
  • नलवंशीय शासकों के अभिलखों में संवत्सर तथा तिथि का अंकन शब्द एवं अंक दोनों में किया गया है।
  • इनके द्वारा जारी तीन अभिलेख में से केवल एक में पक्ष (बहुल अर्थात् कृष्णपक्ष) का उल्लेख है।

राजर्षितुल्य कुल के अभिलेख

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में शासन करने वाले स्थानीय शासकों के क्रम में द्वितीय स्थान राजर्षितुल्य कुल के शासकों का है। इस वंश के शासक भीमसेन द्वितीय द्वारा जारी और अब तक प्राप्त केवल एक ही ताम्रपत्र है जो आरंग से प्राप्त हुआ है। इस ताम्रपत्र सर्वप्रथम गुप्त संवत् का उल्लेख किया गया और गुप्तानां सम्वत्सर शते 200 802 (282) भाद्र दि 108 (18) का उल्लेख किया गया है।

  • छत्तीसगढ़ क्षेत्र से प्राप्त यह केवल अकेला अभिलेख है जिसमें स्पष्ट रूप से गुप्त संवत् का प्रयोग हुआ है।
  • इस अभिलेख में सैकड़ा, दहाई और ईकाई के लिये अलग-अलग अंकों का प्रयोग किया गया है। किन्तु पक्ष, नक्षत्र एवं दिन के नामों का उल्लेख नहीं किया गया है।

शरभपुरीय शासकों के अभिलेख

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में शासन करने वाले स्थानीय शासकों के क्रम में तृतीय स्थान शरभपुरीय राजवंश के शासकों का है। इस वंश के शासकों द्वारा विभिन्न दान के अवसर पर जारी अब तक प्राप्त अभिलेखों की संख्या 20 है। इसमें 174 ताम्रपत्रों में तिथि अंकन तकनीक का प्रयोग किया गया है। जिसमें तिथि अंकन के लिये अनेक प्रविधियों का उपयोग किया गया है।

  • शरभपुरीय शासकों के अधिकांश ताम्रपत्रों में प्रवर्द्धमानविजयसंवत्सर 7 भाद्रपद दिवस 10 जैसे शब्दों का उल्लेख किया गया है। जिसमें स्पष्ट रूप से राज्य वर्ष और तिथि का अंकन अंक में किया गया है। केवल नरेन्द्र के कुरुद ताम्रपत्र और जयराज के मल्लार ताम्रपत्र में राज्य वर्ष का उल्लेख शब्द एवं अंक दोनों में किया गया जैसे प्रवर्द्धमान विजय सत्वत्सर पंच, 5 कार्तिको 5 जैसे शब्द उत्कीर्ण हैं।
  • सभी अभिलेखों में तिथि का उल्लेख अंक में (1 से 30) के कम में किया गया जिसमें पहले दहाई का। अंक लिखा गया फिर इकाई का अंक उत्कीर्ण है। जैसे, सुदेवराज का आरंग ताम्रपत्र में वैशाख दि 209 अंक उत्कीर्ण है
  • शरभपुरीय शासकों के अभिलेखों में संवत्सर के बारह महीनों में लगभग सभी माह में दान देने का उल्लेख है जैसे वैशाख, माघ, कार्तिक, मागशीर्ष, ज्येष्ठ,. श्रावण, भाद्र (द्विभाद्र) तथा पौष मास आदि का उल्लेख है। यहां पर द्विभाद्र का आशय अधिक मास (मल मास) से है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )
  • शरभपुरीय अभिलेखों में दिन एवं मास के नामों का पूरा उल्लेख न कर संक्षिप्तिकरण भी किया गया है। इनके अभिलेखों में भी किसी मानक संवत् एवं नक्षत्र तथा दिन के नामों का उल्लेख नहीं किया गया है।

मेकल पाण्डुवंशी शासकों के अभिलेख

शरभपुरीय शासकों के पश्चात् इस क्षेत्र में शासन करने वाले मेकल पाण्डुवंशीय शासकों द्वारा जारी और अब तक प्राप्त अभिलेखों की संख्या तीन हैं। जिसमें निम्न तिथि अंकन प्रविधि का प्रयोग किया गया है-

  • मेकल पाण्डुवंशीय शासकों के अभिलेखों में राज्यवर्ष का उल्लेख शब्द एवं अंक दोनों में किया गया है।
  • इनके अभिलेखों में राज्य वर्ष, मास, पक्ष (कृष्ण एवं शुक्ल), नक्षत्र, तिथि एवं दिन या वार का नाम का उल्लेख स्पष्ट रूप से किया गया है। जैसे- प्रवर्द्धमान विजयराज्यसवत्सर अष्टमे कार्तिक कृष्ण पक्षे एकाश्या पूर्व फाल्गुण्यां बुधदिनेनाति ।
  • पक्ष एवं तिथि तथा दिन के नाम के उल्लेख में विविधता है। जैसे कहीं प्रथम पक्ष कहा तो कहीं कृष्ण पक्ष कहा गया है। इसी प्रकार तिथि के साथ दिन के नाम का भी उल्लेख किया गया है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )
  • इस क्षेत्र से प्राप्त मेकल के पाण्डुवंशीय शासकों के अभिलेखों में सर्वप्रथम नक्षत्र के नामों का उल्लेख •मिलता है। जैसे पुष्य, पूर्व, फाल्गुणी, उत्तर भाद्रपद इनके अभिलेखों में भी किसी मानक संवत् का उल्लेख नहीं किया गया है।

कोसल के पाण्डुवंशी शासकों के अभिलेख

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में शासन करने वाले स्थानीय शासकों के क्रम में चौथा और महत्वपूर्ण स्थान कोसल के पाण्डुवंशीय शासकों का है। इस वंश के शासको द्वारा जारी और अब तक प्राप्त अभिलेखों कि संख्या लगभग 50 है •जिसमें से लगभग 60 प्रतिशत अभिलेखो में तिथि अंकन तकनीक का प्रयोग किया गया है। जिसका स्वरूप निम्न रहा है।

  • पाण्डुवंशीय शासकों के अभिलेखों में राज्य वर्ष, मास, तिथि, पक्ष, दिन एवं नक्षत्र के नामों का उल्लेख पूर्व के समान ही मिलता है। किन्तु संवत्सर एवं तिथि तथा दिन का अंकन शब्द एवं अंक दोनों में किया गया है। जो कभी साथ-साथ और कभी अलग अलग मिलता है। जिसमें प्राय: पहले दहाई की संख्या फिर इकाई की संख्या का उल्लेख किया गया है।
  • पाण्डुवंशीय शासकों के कुछ अभिलेखों में मास, तिथि एवं दिन का अंकन अभिलेख के मध्य एवं अंत दोनों स्थान पर किया गया है। जैसे इस प्रकार उल्लेख का प्रारंभ पाण्डुवंशीय शासकों के अभिलेखों से होता है।
  • अंत दोनों स्थान पर किया गया है। इस प्रकार का उल्लेख का प्रारम्भ पाण्डुवंशीय शासकों के अभिलेखों से होता है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )
  • इनके अभिलेखों में प्रथम बार अभिलेख जारी करने के पर्वो एवं अवसरों का उल्लेख किया गया है। जैसे अडभार ताम्रपत्र में भाद्र पद कृष्ण द्वादश्यां सकांतो मल्लार ताम्र पत्र आषाढा मावास्या सूर्यग्रहोपरागे तथा सिरपुर ताम्रपत्र में माघ मासो उत्तरायण विसुसकान्त आदि का उल्लेख है।
  • इनके अभिलेखों में भी किसी मानक संवत् का प्रयोग नहीं किया गया है।

तृतीय वर्ग

इस वर्ग के अंतर्गत दसवीं से लेकर के चौदहवीं शताब्दी के मध्य जारी किये गये अभिलेखों को रखा गया है।

कलचुरि कालीन अभिलेख

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में शासन करने वाले स्थानीय शासकों के कम में अंतिम और अति विशिष्ट स्थान रतनपुर एवं रायपुर शाखा के कलचुरि शासकों एवं उनके अधीनस्थ शासकों का रहा है। इनका शासन काल दसवीं शताब्दी ई. से चौदहवीं शताब्दी ई. तक रहा है। इन वंश के शासकों द्वारा दान एवं निर्माण के अवसर पर जारी किये गये और इस क्षेत्र से प्राप्त अभिलेखो कि संख्या लगभग 80 है। जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत अभिलेखों में तिथि अंकन तकनीक का प्रयोग किया गया है। जिसमें तिथि अंकन के विविध प्रविधियों का उपयोग हुआ है।

  • कलचुरि शासकों एवं उनके अधीनस्थ शासकों द्वारा जारी किये गये तिथि अंकित अभिलेखों में मानक संवत् का प्रयोग किया गया। जिसके तीन अलग अलग प्रकार मिलते हैं, प्रथम अधिकांश अभिलेखों में कलचुरि चेदि संवत् का प्रयोग किया गया है। द्वितीय कुछ अभिलेखों में विक्रम संवत् का प्रयोग हुआ है और तृतीय कुछ अभिलेखों में शक संवत् का प्रयोग किया गया है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )
  • रतनपुर के कलचुरि शासकों के अभिलेखों में के जिस संवत् का उल्लेख किया गया है उसकी गणना 821 अर्थात् (249 ई) से प्रारम्भ होता है जैसे संवत् 821878880, 900, 915, 969 आदि का उल्लेख है। केवल पृथ्वीदेव द्वितीय के कुगदा, राजिम एवं रतनपुर अभिलेखों में तथा रत्नदेव द्वितीय के पारागांव ताम्रपत्र एवं गोपाल देव के शिवरीनारायण शिलालेख में अभिलेखों में कलचुरि संवत्सरे, 885, 893 एवं 910 का उल्लेख है।
  • जाजल्लदेव द्वितीय के शिवरीनाराण शिलालेख एवं रत्नदेव तृतीय खरीद शिलालेख में चेदि संवत् 919 एवं 933 का उल्लेख है।
  • कलचुरि शासक बाहर एवं हरिब्रह्म देव के अभिलेखों में श्री संवत् 1552 समये, संवत् 1570 विक्रम नाम संवत्सरे, श्री संवतु 1458 वर्षे साके 1322 समये सर्वजितनाम संवत्सरे, श्रीसंवत 1470 वर्षे शाके 1334 षष्टयाव्ययोमध्ये प्लवनाम संवत्सरे का उल्लेख है।
  • कलचुरि कालीन अधिकांश अभिलेखों में संवत् का अंकन, अभिलेख के अंत में अंकों में किया गया है।
  • कलचुरि कालीन अधिकांश अभिलेखों में संवत् के साथ-साथ मास, तिथि एवं दिन के नामों का भी उल्लेख किया गया है। जैसे संवत् 205 आस्विन सुदि, 6 भौमे एवं चेदीस संवत् 831 फाल्गुन कृष्ण ससम्या रवि दिने एवं कलचुरि संवत्सरे 896 माघे मास शुक्ल पक्षे रथाष्टाम्या बुद्धदिने जैसे उल्लेख मिलते हैं।
  • तिथि का उल्लेख पक्ष के कम में किया गया. जिसके लिये शुक्ल एवं कृष्ण तथा उसका संक्षिप्त रूप शुद्धि एवं बंदि शब्द के रूप में प्रयोग किया गया है। तिथि लेखन के लिये शब्द एवं अंक दोनों विधियों का प्रयोग किया गया है।
  • अधिकांश अभिलेखों में दान के अवसर जैसे राहूग्रस्ते राजनितिलक, सूर्यग्रहण पर्वाणि संक्रांति समय एवं चैत्रे सोमग्र आदि का उल्लेख अभिलेख के मध्य में और संवत् तिथि, माह, दिन का उल्लेख अभिलेख के अंत में किया गया है।
  • बस्तर के छिंदक नागवंशी शासकों के अधिकांश अभिलेखों में शक संवत् का प्रयोग किया गया है। जैसे- शक् 1246 रक्ताकेशरी संवत्सर चैत्र शुदि 12 •एवं शक् नृप काल तिथि दश शत तृषतम अधिक 921 संवतसर कार्तिक पूर्णिमाया बुद्धवार का उल्लेख है।
  • फणिनागवंशी शासकों के अभिलेखों में कलचुरि चेदि संवत् का प्रयोग किया गया है।
  • कांकेर के सोमवंशी शासकों के अभिलेखों में शक् संवत् एवं कलचुरि चेदि संवत् का प्रयोग किया गया है। जैसे, पम्पराज के तहनकापार ताम्रपत्र में संवत्सरे कार्तिक मासे चित्रारिक्षे रविदिने सूर्योपरागे एवं संदर्भ सूची संवत् 965 भाद्र पदे मृग सिरे सोम दिने एवं भानुदेव के कांकेर शिलालेख में संवत् 1242 रौद्रसंवत्सरे ज्येष्ठ यदि पंचम्या का उल्लेख है।

छत्तीसगढ़ क्षेत्र से प्राप्त अभिलेखों में तिथि लेखन का जो विकास कम मिलता है, उसका ऐतिहासिक विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है, कि इस क्षेत्र से प्राप्त प्रारंभिक अभिलेखों में किसी प्रकार का तिथि अंकन प्रविधि एवं तिथिलेखन का प्रयोग नहीं किया गया है।

तिथि लेखन का प्रारंभ सर्वप्रथम इस क्षेत्र में सातवाहन कालीन लेखों में मिलता है। द्वितीय चरण का प्रारंभ पांचवी से नवीं शताब्दी के मध्य स्थानीय शासकों के द्वारा जारी किये गये अभिलेखों में से होता है। जिसमें किसी मानक संवत् का प्रयोग नहीं करते हुए केवल शासकों के व्यक्तिगत राज्य वर्षों का ही उल्लेख किया गया है। अपवाद स्वरूप केवल राजर्षितुल्य कुल के शासक द्वारा जारी आरंग ताम्रपत्र में गुप्त संवत् का उल्लेख किया गया है।( छत्तीसगढ़ शासको के प्राप्त अभिलेख | Chhattisgarh Shasako ke Prapt Abhilekh | Records of the rulers of Chhattisgarh )

तृतीय चरण में मानक संवत् का प्रयोग सर्वप्रथम इस क्षेत्र में रतनपुर के कलचुरि शासकों के शासनकाल में में प्रारंभ हुआ और उनके अधिकांश अभिलेखों में कलचुरि चेदि संवत् का ही प्रयोग किया गया है। कलचुरि वंश के अंतिम शासक एवं इनके अधीनस्थ शासकों के अभिलेखों में मानक राष्ट्रीय संवत् शक् एवं विक्रम संवत् का भी प्रयोग प्रारम्भ हो गया।

इस प्रकार छत्तीसगढ़ क्षेत्र के अभिलेखों में तिथिलेखन के प्रयोग एवं परंपरा में शास्त्रीय एवं स्थानीय प्रभाव साथ-साथ दिखाई पड़ता है। इन तिथि अंकित अभिलेखों का छत्तीसगढ़ क्षेत्र के स्थानीय राजवंश के इतिहास पुर्नलेखन एवं शासकों के कालक्रम के निर्धारण में विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है।

इन्हे भी पढ़े 

👉माँ मड़वारानी मंदिर : आखिर क्यों मंडप छोड़ भाग आयी थी माता मड़वारानी 

👉पाताल भैरवी मंदिर : शिव , दुर्गा , पाताल भैरवी एक ही मंदिर में क्यों है ?

👉फणीकेश्वरनाथ महादेव मंदिर : सोलह खम्बो वाला शिवलिंग अपने नहीं देखा होगा !

👉प्राचीन शिव मंदिर : भगवन शिव की मूर्तियों को किसने तोडा , और नदी का सर धार से अलग किसने किया ?

👉प्राचीन ईंटों निर्मित मंदिर : ग्रामीणों को क्यों बनाना पड़ा शिवलिंग ?

👉चितावरी देवी मंदिर  : शिव मंदिर को क्यों बनाया गया देवी मंदिर ?

👉शिव मदिर : बाली और सुग्रीव का युद्ध करता हुआ अनोखा मंदिर !

👉सिद्धेश्वर मंदिर : आखिर त्रिदेव क्यों विराजमान है इस मंदिर पर ?

👉मावली माता मंदिर : महिसासुर मर्दिनी कैसे बन गयी मावली माता ?

👉कुलेश्वर मंदिर : ब्रह्मा, विष्णु , शंकर के रचयिता अदि शिव का मंदिर 

👉चंडी माता मंदिर : विचित्र ! पत्थर की स्वयंभू मूर्ति निरंतर बढ़ रही है !

👉खरौद का शिवमंदिर : लक्ष्मण जी ने क्यों बनाये थे सवा लाख शिवलिंग ?

👉जगननाथ मंदिर : चमत्कार ! पेड़ का हर पत्ता दोने के आकर का कैसे ?

👉केशव नारायण मंदिर : भगवान विष्णु के पैर के नीचे स्त्री, शबरी की एक कहानी !

👉नर-नारायण मंदिर : मेरु शिखर के जैसा बना मंदिर !

👉राजीव लोचन मंदिर : कुम्भ से भी अनोखा है यहाँ का अर्धकुम्भ !

👉खल्लारी माता का मंदिर : जहा भीमपुत्र घटोच्कच का जन्म हुआ , कौरवो ने पांडवो को मरने के लिए लाछागृह भी यही बनवाया था !

👉देवरानी और जेठानी मंदिर : क्या है सम्बन्ध दोनों मंदिरो के बीच ?

👉मामा भांजा मंदिर : ऐसा मंदिर जिसका निर्माण एक दिन में किया गया !

👉लक्ष्मण मंदिर : पुरे भारत में ईंटो से निर्मित पहला मंदिर 

👉जैन मंदिर : राजपूत राजाओ द्वारा बनाये गए जैन मंदिर 

👉विष्णु मंदिर : कलचुरी शासको द्वारा बनाया गया अब तक का जबरजस्त मंदिर !

👉गणेश मंदिर  : पुत्री उषा और चित्रलेखा की कहानी !

👉दंतेश्वरी मंदिर : 52वा शक्तिपीठ जिसके बारे में बहुत हिन्दू नहीं जानते !

👉हटकेश्वर महादेव मंदिर : जिसे मुग़ल भी नहीं तोड़ पाए !

👉महामाया देवी मंदिर : यहाँ 31 हजार ज्योति कलश क्यों जलाते है श्रद्धालु !

👉शिवरीनारायण मंदिर : जहा भगवान राम ने खाये थे शबरी के झूठे बेर ।  

👉माँ बम्लेश्वरी मंदिर : आखिर क्यों तालाब में कूदी थी कामकंदला ?

👉नगपुरा जैन मंदिर : राजा गज सिंह ने 108 जैन मुर्तिया बनाने की प्रतिज्ञा क्यों ली ? 

👉भोरमदेव मंदिर : दाढ़ी-मुछ वाले योगी की मूर्ति के पेट पर क्या लिखा है ? 

👉माता कौशल्या मंदिर : वह धरती जिसने भगवान राम की माता कौशल्या को जन्म दिया !

👉डीपाडीह मंदिर : सामंत की रानियाँ क्यों कूद पड़ी आग में ?

👉शिवरीनारायण के आस पास के अन्य सभी मंदिर ।

👉बाबा सत्यनारायण धाम रायगढ |

👉लुतरा शरीफ बिलासपुर छत्तीसगढ़ |

👉शदाणी दरबार छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल |

👉श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा |

👉बस्तर दशहरा छत्तीसगढ़ | 

👉प्रथम विश्व युद्ध का इतिहास |

👉[2021] छत्तीसगढ़ के सरकारी योजनाए

👉छत्तीसगढ़ के खेल पुरस्कार

👉छत्तीसगढ़ के काव्य गद्य

👉छत्तीसगढ़ में जेल प्रशासन

👉छत्तीसगढ़ में संचार

👉छत्तीसगढ़ में शिक्षा स्कूल विश्वविद्यालय 

👉छत्तीसगढ़ में सिनेमा

👉छत्तीसगढ़ वायु परिवहन 

👉छत्तीसगढ़ रेल परिवहन

👉छत्तीसगढ़ में सड़क परिवहन

👉छत्तीसगढ़ के परिवहन

👉छत्तीसगढ़ में ऊर्जा

👉छत्तीसगढ़ के औधोगिक पार्क काम्प्लेक्स

👉छत्तीसगढ़ के उद्योग

👉Chhattisgarh Dolomite Tin Heera Sona Diamond Gold

👉छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट ऐलुमिनियम 

👉छत्तीसगढ़ के चुना पत्थर

👉छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क कहा कहा पाया जाता है | 

👉दीवानपटपर गांव कवर्धा छत्तीसगढ़

👉दाऊ दुलार सिंह मंदराजी

👉छत्तीसगढ़ पदमश्री पदमभूषण 

👉छत्तीसगढ़ी कलेवा व्यंजन पकवान भोजन

👉छत्तीसगढ़ी मुहावरे लोकोक्तिया 

👉विद्याचरण शुक्ल छत्तीसगढ़

👉केयूर भूषण की जीवनी

👉पंडो जनजाति छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ में शिक्षा प्रेस का विकास

👉छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान 

👉छत्तीसगढ़ में प्रथम

👉छत्तीसगढ़ के साहित्य साहित्यकार

👉छत्तीसगढ़ के परियोजनाएं

👉खारुन नदी छत्तीसगढ़ 

👉मरीन ड्राइव तेलीबांधा तालाब

👉नगर घड़ी चौक रायपुर

👉राजकुमार कालेज रायपुर

👉डोंगरगढ छत्तीसगढ़

👉भिलाई स्टील प्लांट

👉बैगा जनजाति

👉जिंदल रायगढ़ छत्तीसगढ़

👉कांकेर जिला छत्तीसगढ़

👉बीजाकाशा जलप्रपात

👉लक्ष्मण झूला रायपुर छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के पहाड़ो की ऊंचाई

👉छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन

👉छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण तिथि क्रम 

👉छत्तीसगढ़ शासन के विभिन्‍न भवनों के नाम 

👉छत्तीसगढ़ के लोक खेल 

👉भगवान धनवंतरि छत्तीसगढ़

👉दानवीर भामाशाह छत्तीसगढ़

👉Pandit Ravishankar Shukla ka Jeevan Parichay

👉महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव

👉पाण्डु वंश छत्तीसगढ़

👉गुप्त वंश छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ में मराठा शासन

👉छत्तीसगढ़ में 1857 की क्रांति

👉छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थापना 

👉छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह

👉छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलन

👉छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास

👉छत्तीसगढ़ के रियासत

👉छत्तीसगढ़ के 36 गढ़

👉फणिनाग वंश छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास

👉सोमवंश छत्तीसगढ़

👉काकतीय वंश छत्तीसगढ़

👉छिन्दक नागवंश छत्तीसगढ़

👉ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग

👉छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास

👉नल वंश छत्तीसगढ़

👉सातवाहन वंश

👉कलचुरी वंश छत्तीसगढ़

👉सोनाखान विद्रोह छत्तीसगढ़

👉चम्पारण छत्तीसगढ़

👉राजिम प्रयाग छत्तीसगढ़

👉बस्तर छत्तीसगढ़

👉मैनपाट छत्तीसगढ़

👉तालगाओं बिलासपुर छत्तीसगढ़

👉सिरपुर महासमुंद छत्तीसगढ़

👉रतनपुर बिलासपुर छत्तीसगढ़

👉इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय

👉रायपुर का इतिहास

👉मल्हार बिलासपुर का इतिहास

👉छत्तीसगढ़ के प्रमुख व्यक्तित्व

👉छत्तीसगढ़ की जनगणना 2011

👉केंद्र संरक्षित स्मारक छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के स्थलों के उपनाम

👉छत्तीसगढ़ संभाग एवं जिलो का गठन

👉छत्तीसगढ़ औद्योगिक विकास केंद्र

👉बालोद जिला छत्तीसगढ़

👉गोरेला पेंड्रा मरवाही छत्तीसगढ़

👉दुर्ग के बारे में जानकारी

👉बेमेतरा जिला छत्तीसगढ़

👉Chhattisgarh Corundum Alexandrite Uranium Graphite Copper

👉छत्तीसगढ़ में कोयला उत्पादन

👉कोरबा में शैलचित्र की खोज

👉छत्तीसगढ़ में खनिज उत्पादन

👉पोई भाजी 

👉उड़द दाल के बड़ा 

👉चापड़ा छत्तीसगढ़

👉माड़ा पीठा

👉मखना भाजी

👉मंद-महुआ शराब

👉अइरसा अनरसा

👉मूंग दाल पकोड़ा

👉चौसेला संग चटनी

👉खरखरा बांध

👉खारा रिज़र्व वन

👉मनगटा वन्यजीव पार्क

👉छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल

👉राजनांदगाव जिले की जानकारी

👉छत्तीसगढ़ राज्य संरक्षित स्मारक

👉छत्तीसगढ़ के प्राचीन स्थानों-शहरो नाम

👉छत्तीसगढ़ के अभ्यारण्य

👉छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय उद्यान

👉टाइम्स स्क्वायर ,नया रायपुर

👉चित्रकूट जलप्रपात छत्तीसगढ़

👉घटारानी जलप्रपात छत्तीसगढ़

👉शहीद स्मारक भवन रायपुर

👉दानपुरी झरना जशपुर छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के शैलचित्र

👉कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान

👉प्रज्ञागिरी पर्वत डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़

👉मदकूद्वीप छत्तीसगढ़

👉बारनवापारा अभ्यारण छत्तीसगढ़

👉गंगरेल बांध धमतरी

👉उदंती-सीतानदी टाइगर रिज़र्व

👉रामगढ सरगुजा छत्तीसगढ़

👉दामाखेड़ा सिमगा छत्तीसगढ़

👉गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़

👉केनापारा तेलईकछार जलाशय

👉मैत्री बाग भिलाई छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के जलप्रपात

👉हाखिकुड़म जलप्रपात

👉छ:ग कृषि उपज-उत्पादक क्षेत्र

👉छत्तीसगढ़ के सभी तहसील

👉छत्तीसगढ़ नगर निगम

👉छत्तीसगढ़ नगर पालिका

👉छत्तीसगढ़ नगर पंचायत

👉छत्तीसगढ़ में शहरी प्रशासन 

👉उच्च न्यायलय छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ ग्रामीण प्रशासन

👉छत्तीसगढ़ की न्यायपालिका

👉छत्तीसगढ़ की कार्यपालिका

👉छत्तीसगढ़ विधानसभा सीट

👉छत्तीसगढ़ में प्रशासन

👉छत्तीसगढ़ की सिफारिश समितियाँ

👉मिनीमाता का जीवन परिचय

👉छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का गठन

👉डॉ.भंवरसिंह पोर्ते छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ के सम्मान पुरस्कार

👉छत्तीसगढ़ के महिला सांसद और विधायक

👉छत्तीसगढ़ में पशुपालन

👉छत्तीसगढ़ की गुफाये

👉छत्तीसगढ़ में कृषि

👉छत्तीसगढ़ की मिट्टिया

👉छत्तीसगढ़ में नदियों किनारे बसे शहर

👉छत्तीसगढ़ में सिंचाई व्यवस्था

👉छत्तीसगढ़ का नदी परियोजना

👉छत्तीसगढ़ के नदियों की लम्बाई

👉छत्तीसगढ़ जल विवाद

👉इंद्रावती नदी अपवाह तंत्र

👉सोन नदी की सहायक नदिया

👉शिवनाथ नदी अपवाह तंत्र छत्तीसगढ़ 

👉महानदी अपवाह तंत्र छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ की नदिया

👉छत्तीसगढ़ में जीवो का संरक्षण

👉छत्तीसगढ़ वन संसाधन 

👉जशपुर सामरी पाट प्रदेश

👉सरगुजा बेसिन बघेलखण्ड

👉बस्तर का पठार

👉महानदी बेसिन छत्तीसगढ़ का मैदान

👉  छत्तीसगढ़ की जबरजस्त चित्रकला  जिसे अपने नहीं देखा !

👉 छत्तीसगढ़ के त्यौहार क्यों है दूसरे राज्यों से अच्छा !

👉  छत्तीसगढ़ का लोकनृत्य लोकनाट्य देखकर आप ठुमकना छोड़ देंगे !

👉 छत्तीसगढ़ के लोकगीत जिसे अपने अबतक नहीं सुना  ?

👉  छत्तीसगढ़ के देवी देवता जो बाहरी हिन्दू नहीं जानते होंगे ?

👉 छत्तीसगढ़ जनजाति विवाह गीत सुनते ही गुनगुनाने का मन करेगा !

👉 छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजातियाँ 

👉पत्थलगड़ी आंदोलन छत्तीसगढ़

👉छत्तीसगढ़ी बर्तन

👉  नगेसिया जनजाति छत्तीसगढ़ 

👉 छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ी बोली 

👉  छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह 

👉 भादो जार्ता उत्सव छत्तीसगढ़

👉  बस्तर के मेले मंडई 

👉 छत्तीसगढ़ के प्रमुख महोत्सव 

👉  छेरछेरा त्यौहार छत्तीसगढ़ 

👉 छत्तीसगढ़ के आभूषण

👉  छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियाँ 

👉 छत्तीसगढ़ के मेले

👉 छत्तीसगढ़ के जनजाति आदिवासी

👉  पोला के तिहार 

विद्रोह :-

👉  मुरिया विद्रोह में आदिवासियों ने कैसे अंग्रेजो को धूल चटाई ?

👉  लिंगागिरी विद्रोह के मंगल पांडेय से मिलिए !

👉  मेरिया माड़िया विद्रोह में दंतेश्वरी मंदिर पर अंग्रेजो ने कैसे हमला किया ?

👉  तारापुर विद्रोह छत्तीसगढ़ 

👉 परलकोट विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  भोपालपट्नम विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  भूमकाल विद्रोह छत्तीसगढ़

👉  कोई विद्रोह छत्तीसगढ़

👉 हल्बा विद्रोह छत्तीसगढ़ :-

👉  राउत नाचा छत्तीसगढ़ 

👉 ककसार नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉  चंदैनी नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉 करमा नृत्य छत्तीसगढ़

👉  सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ 

👉  पंथी नृत्य छत्तीसगढ़

Share your love
Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

Articles: 1117

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *