छत्तीसगढ़ के राजा चक्रधर सिंह | Chhattisgarh ke Raja Chakradhar Singh | Chhattisgarh King Raja Chakradhar Singh
राजा चक्रधर सिंह का जन्म
छत्तीसगढ़ के राजा चक्रधर सिंह : भारत की स्वतंत्रता से पूर्व वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के के उत्तर-पूर्व में रायगढ़ नामक एक छोटी-सी रियासत थी। इसके संस्थापक मदनसिंह के आठवीं पीढ़ी में धर्मप्रवण, प्रजावत्सल, शास्त्रीय एवं लोक कलाओं के महान संरक्षक राजा भूपदेव सिंह हुए। इनके द्वितीय पुत्र के रूप में 19 अगस्त सन् 1905 ई. को चक्रधर सिंह का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम रानी रामकुंवर देवी था।
रायगढ़ शहर में मोती महल की स्थापना
नन्हें महाराज के नाम से विख्यात चक्रधर सिंह के जन्म की खुशी में राजा भूपदेव सिंह ने दो ऐतिहासिक कार्य किए पहला रायगढ़ शहर में मोती महल का | निर्माण तथा दूसरा पुत्रोत्सव को राजकीय गणेषोत्सव के नाम से प्रारंभ किया, जो गणेष मेला के नाम से पूरे देश में विख्यात हुआ। इसमें हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से संगीतकार, नर्तक दल, साहित्यकार, पहलवान तथा मुर्गा, बटेर लड़ाने वाले लोग आकर अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन करते थे।
राजा चक्रधर सिंह की शिक्षा
चक्रधर सिंह की प्रारंभिक शिक्षा राजमहल में ही उनके बड़े भाई नटवर सिंह के साथ हुई। नौ वर्ष की उम्र में सन् 1914 ई. में उन्हें तबला नवाज ठा. लक्ष्मण सिंह की देखरेख में रायपुर के प्रतिष्ठित राजकुमार कॉलेज में दाखिला दिलाया गया। यहाँ शरीरिक, मानसिक, धार्मिक, दार्शनिक तथा संगीत की शिक्षा के अलावा बॉक्सिंग, शूटिंग और घुड़सवारी शामिल था। चक्रधर सिंह टेनिस, फूटबाल और हॉकी के अच्छे खिलाड़ी भी थे।
राजा चक्रधर सिंह का विवाह
1923 तक शिक्षा के बाद छिंदवाड़ा में एक वर्ष के प्रशासनिक प्रशिक्षण के दौरान ही उनका विवाह छुरा के जमींदार की कन्या डिश्वरीमती देवी के साथ हुआ। भारतरत्न बिस्मिला खाँ ने उनकी शादी में अपने वालिद और साथियों के साथ षहनाई बजाई थी । उनके बड़े भाई राजा नटवर सिंह की अचानक मृत्यु हो गई ।
बेगार प्रथा का अंत
15 फरवरी सन् 1924 ई. को चक्रधर सिंह का राजतिलक किया गया। उन्होंने बेगार प्रथा बंद करवा दी। कृषि, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया। रायगढ़ में बादल महल, गेस्ट हाउस, टाउन हाल, अस्पताल, नलघर, विद्युत व्यवस्था, पुस्तकालय आदि का निर्माण उन्हीं के शासन काल में हुआ राजकीय कार्यों के अतिरिक्त अपना अधिकांश समय संगीत, नृत्य, कला और साहित्य साधना में लगाने लगे।
देश विदेश के महान साहित्यकार
उनके शासन काल में गणेश मेला अपने चरम पर था। अब देश-विदेश के संगीतज्ञ, कलाविद्, साहित्यकारों का आना-जाना पहले से अधिक होने लगा। इनमें पं. ओंकारनाथ, मनहर बर्वे, नारायण व्यास, पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जैसे महान संगीतज्ञ तथा पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. माखन लाल चतुर्वेदी, भगवतीचरण वर्मा, पं. जानकी बल्लभ शास्त्री, डॉ. रामकुमार वर्मा, रामेश्वर शुक्ल अंचल, पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय एवं पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय जैसे महान साहित्यकार पामिल थे।
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र तो उनके दीवान थे, जबकि आनंद मोहन वाजपेयी उनके निजी सचिव | तथा महावीर प्रसाद द्विवेदी उनके पथ प्रदर्षक थे। उन्होंने पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को स्वयं एक हजार एक रुपये देकर सम्मानित किया था।
राजा चक्रधर सिंह ने पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी को ‘सरस्वती’ से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् जीवन पर्यन्त प्रतिमाह पचास रुपये की आर्थिक सहायता देकर अपनी उदारता एवं संस्कृतिप्रियता का उदाहरण प्रस्तुत किया था। वे समर्पित कला साधक होने के साथ-साथ उच्चकोटि के विद्वान, संगीत शास्त्र के ज्ञाता, कुशल नर्तक, तबला तथा सितार वादक थे।
उनके आमंत्रण पर जयपुर घराने के गुरु पं. जगन्नाथ तथा लखनऊ घराने के गुरु कालिका प्रसाद तथा उनके तीनों पुत्र अच्छन महाराज, लच्छू महाराज तथा पंभू महाराज रायगढ़ आए। राजा चक्रधर सिंह ने कत्थक की कई नई बंदिशें तैयार की। नृत्य और संगीत की इन दुर्लभ बंदिशों का संग्रह संगीत ग्रंथ के रूप में सामने आया, जिनमें मूरज चरण पुष्पाकर, ताल तोयनिधि, राग रत्न मंजूषा और नर्तन स्वस्वं विशेष तौर पर याद किए जाते हैं।
अपनी अनुभूति तथा संगीत की गहराइयों में डूबकर उन्होंने लखनऊ, बनारस और जयपुर कत्थक शैली की तर्ज पर एक विशिष्ट स्वरूप विकसित किया जिसे रायगढ़ घराने के नाम से जाना जाता है।
राजा चक्रधर सिंह का दिल्ली में अध्यक्ष बनाना
सन् 1938 ई. में इलाहाबाद में आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में राजा चक्रधर सिंह को अध्यक्ष चुना गया था। यह उनकी सांगीतिक प्रतिभा का ही सम्मान था । सन् 1939 दिल्ली में तत्कालीन वायसराय तथा देश के समस्त राजा-महाराजाओं की उपस्थिति में आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में कार्तिक-कल्याण के नृत्य प्रस्तुतिकरण में उन्होंने तबले पर संगत की थी जिससे वायसराय तथा दतिया नरेष ने प्रभावित होकर उन्हें संगीत सम्राट की उपाधि से सम्मानित किया।
अन्य भाषाओ में लेख लिखा
राजा चक्रधर सिंह जी का हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उड़िया, उर्दू तथा बांग्ला आदि कई भाषाओं पर अच्छा अधिकार था। वे स्वयं एक संगीतकार होने के साथ साथ अच्छे लेखक भी थे। वे हिंदी काव्य में अपना उपनाम चक्रप्रिया तथा उर्दू में फरहत लिखा करते थे । उनकी साहित्यिक रचनाओं में अल्कापुरी तिलस्मी, मायाचक्र, रम्य रास, बैरागढ़िया राजकुमार, काव्य कानन, प्रेम के तीर, रत्नहार, मृगनयनी आदि प्रमुख हैं। जोषे फरहद और निगाहें फरहद उर्दू में लिखी उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।
राजा चक्रधर सिंह को पतंगबाजी का बड़ा शौक था। राजा चक्रधर सिंह की दिलचस्पी कुश्ती में भी थी। उनके दरबार में जानी मुखर्जी तथा एम. के. वर्मा जैसे नामी गिरामी पेंटर थे जो पोट्रेट के अलावा पुस्तकों के चित्रों का भी निर्माण करते थे।
राजा चक्रधर सिंह का निधन
अक्टूबर सन् 1947 को मात्र 42 वर्ष की अल्प आयु में ही राजा चक्रधर सिंह का निधन हो गया। संगीत के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश शासन ने भोपाल में चक्रधर नृत्यकला केंद्र की स्थापना की। रायगढ़वासियों ने नगर के एक मोहल्ले का नाम चक्रधर नगर रखा है।
राज्यस्तरीय चक्रधर सम्मान
गणेश मेला शासकीय संरक्षण के अभाव में बंद हो गया था जिसे सन् 1985 में, चक्रधर नृत्यकला केंद्र द्वारा स्थानीय कलाकारों तथा जन सहयोग से एवं सन् 1986 में शासकीय संरक्षण एवं मान्यता प्रदान कर आरंभ किया गया । नवम्बर सन् 2000 को नवीन राज्य निर्माण के उपरांत – छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा उनकी स्मृति में कला एवं संगीत के लिए राज्य स्तरीय चक्रधर सम्मान स्थापित किया गया है।
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