छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh
छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल
साल का वानस्पतिक नाम शोरिया रोबस्टा है। भारत के विभिन्न राज्यों में इस वृक्ष को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। संस्कृत में साल को अश्वकर्ण, साल, कार्शय, धूपवृक्ष, सर्ज, हिन्दी में शालसार, सान, साख, सखुआ, उर्दू में राल, अंग्रेजी में कॉमन शाल, इण्डियन डैमर ओड़िया में सगुआ, सलवा, कन्नड में असीन, गुग्गुला, काव्या, गुजराती में राल, राला, तेलगु में जलरि चेट्ट, सरजमृ, गुगल, तमिल में शालम, कुंगिलियम, अट्टम, बंगाली में साख, सलवा, शालगाछ, तलूरा, पंजाबी में सेराल, मराठी में गुग्गल, सजारा, राला, रालचा वृक्ष, मलयालम में मारामारम, मूलापूमारूत के नाम से जाना जाता है। ( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
विदेशो में साल वृक्ष
भारत के अलावा श्रीलंका और बर्मा में इस पेड़ की 9 प्रजातियां हैं. साल पेड़ हिमालय की तलहटी से लेकर 3000 फिट की उंचाई तक और असम, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के जंगलों में साल के पेड़ मिलते हैं.
साल इंटरनेशनल ट्राईबल फेस्टिवल
25 सितंबर, 2021. छत्तीसगढ़ के राजकीय वृक्ष एवं आदिवासी संस्कृति में देवतुल्य साल वृक्ष के नाम पर ‘साल इंटरनेशनल ट्राईबल फेस्टिवल’ रखने का निर्णय लिया गया। सरगुजा से लेकर वस्तर तक साल वृक्षों की पहाड़ियों के सुरक्षा घेरा के रूप में जैव विविधता को संतुलित रखने में छत्तीसगढ़ एक जीवन रेखा की तरह है।
मानसून को राह दिखाने से लेकर उसे गतिशील बनाने में साल वृक्ष की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है। जनजाति समाज के लोगों की मानें तो यह वृक्ष अकाल के समय अपने बीजों की संख्या बढ़ाकर अधिक पौधे उगाने में भी मदद करता है। सरई का फूल खिलते ही मध्य भारत में आदिवासी समाज द्वारा सरहुल का उत्सव उत्साह के साथ मनाया जाता है। ( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
साल की लकड़ियों की मांग होने और उपयोगी होने की वजह से रेल पटरी के स्लीपर, फर्नीचर में इसका बहुतायत इस्तेमाल होने लगा था। इस दौरान भी यह वृक्ष बहुतों के रोजगार से लेकर देश के विकास में काम आता रहा।जंगलों को घने जंगलों में बदल देने वाले साल वृक्षों के आसपास धरती के नीचे भारी मात्रा में लौह सहित अन्य अयस्क, खनिज भण्डार की मौजूदगी के प्रमाण है।
साल वृक्ष और खनिज
असंख्य पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़े को वास देने वाले साल वृक्षों के पत्तों में विशेष प्रकार की लाल चींटियों का भी वास होता है। बोड़ा व फुटू भी इन्हीं साल वृक्षों के नीचे प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले उपयोगी और कीमती खाद्य सामग्री है। बलरामपुर जिले बारिश के मौसम से पूर्व सरहुल का महोत्सव मनाकर प्रकृति व साल वृक्ष की पूजा करते हैं।( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
साल वृक्ष के होने वाले उपयोग
साल बीज का उपयोग भी अलग-अलग कार्यों में होता है। जंगल में मिलने वाले फलों को खाने से पहले भी पूजा की जाती है। प्रदेश के 40 प्रतिशत अधिक वन क्षेत्र साल के हैं। बस्तर में वनों का द्वीप साल को आदिवासी समाज कल्प वृक्ष और पूजनीय मानते हैं। यह जंगल में रहने वाले आदिवासियों के जनजीवन से जुड़ा है और इनसे उन्हें आधा दर्जन से अधिक उत्पाद इमारती और जलाऊ लकड़ी, दातून, दोना, पत्तल, साल बीज भी मिलते है जो इनकी आर्थिक आय का जरिया है। सरहुल, गौर, करमा, सैला सहित अन्य नृत्य कर वे अपनी संस्कृति और परम्परा को भी आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं।
कोरबा जिले में राज्य के डुबान क्षेत्र सतरेंगा के पास लगभग 1400 से 1500 साल सबसे प्राचीन साल वृक्ष की पहचान वन विभाग द्वारा विशेषज्ञों के माध्यम से की गई है। इस महावृक्ष की लंबाई 28 मीटर से अधिक है। फसल की पहली बोनी महावृक्ष की पूजा से शुरू करते हैं। बॉटनिक प्रक्रिया से पेड़ की उम्र का पता लगाया है। कोरबा ही नहीं बल्कि यहछत्तीसगढ़ का सबसे उम्रदराज वृक्ष है।( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
1 हजार साल पुराना साल वृक्ष
कोरबा के ग्राम मातमार में भी लगभग 1 हजार साल पुराने साल वृक्ष का पता लगाया गया है। धमतरी जिले के दुगली में भी लगभग 418 साल पुराना वृक्ष मदर ट्री और सरई बाबा के रूप में पहचाना जाता है। इसकी ऊंचाई 45 मीटर है और गोलाई 450 मीटर तकरीबन 200 से 250 साल पहले जब यह पेड़ 180 साल का था, तब इसे संरक्षित किया था.
और इसे मदर ट्री का दर्जा दिया था. इस पेड़ की गोलाई 15 साल में 45 से 50 सेमी. बढ़ती है उसके बाद हर साल औसतन एक सेमी तक बढ़ता है. वन विभाग द्वारा इन वृक्षों को संरक्षित करने सुरक्षा का आवश्यक प्रबंध भी किया गया है।( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
आदिवासी समाज आदिकाल से साल जैसे वृक्षों की पूजा करने के साथ अपनी खुशियों को इन वृक्षों के आसपास नृत्य के माध्यम से व्यक्त करते हैं। साल अथवा सरई के वृक्ष की लकड़ियों से तैयार जैतखाम बाबा संत गुरूघासी दास के की पूजा अर्चना की। पूजा भी सैकड़ों वर्षों से होती आ रही है।
अंग्रेजो के ज़माने में उपयोगी साल के वृक्ष
यहां के साल पेड़ एशिया के टॉप क्वालिटी के माने जाते. हैं. यही वजह है कि अंग्रेजों के समय में रेलवे की पटरी पर स्लीपर के बतौर इसका उपयोग होता था, इसलिए अंग्रेजों ने इन स्लीपरों की ढुलाई के लिए रायपुर से बोरेई तक छोटी लाइन की ट्रेन चला रहे थे..
इसकी लकड़ी इमारती लकड़ी के रूप में उपयोग की जाती है क्योंकि यह काफी मजबूत और टिकाऊ है. इस पेड़ से निकलने वाले लासा से धूप बनाया जाता है. इसके बीज को इकट्ठा करके गांव वाले बेचते हैं. इसके तेल का उपयोग साबुन आदि चीजों में उपयोग किया जाता है,
जंगल में कई महिलाएं साल बीज बीन इसके बीज 20 रुपये किलो में और बारिश के दिनों में इस पेड़ के नीचे जमीन के अंदर बोडा नामक मशरूम मिलता है इसकी कीमत 300-400 रुपये तक होती है.( छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष साल | Chhattisgarh ka Rajkiya Vriksh Sal | state tree of chhattisgarh )
सतरेंगा बनेगा साल हेबिटेट
कोरबा जिले के ग्राम सतरेंगा में साल के वृक्षों की संख्या बढ़ाते हुए उसके संरक्षण के लिए एक सुरक्षित प्राकृतिक आवास (हेबिटेट) विकसित करने की योजना बनाई है।
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