भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh

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भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh
भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains में आएगा , तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya Janjati Chhattisgarh Bhunjiya Tribe Chhattisgarh

भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति 

भुजिया छत्तीसगढ़ की एक अल्प जनसंख्या वाली जनजाति है। राज्य में इनकी आबादी वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार 10603 थी। इनमें पुरुषों की जनसंख्या 5225 तथा स्त्रियों की 5378 थी। भुजिया जनजाति छत्तीसढ़ के गरियाबंद जिले में पाई जाती है। इनकी जनसंख्या उड़ीसा में कालाहंडी जिले में भी है।

भुजिया जनजाति के उत्पत्ति का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। 1916 में प्राचीन दंतकथा अनुसार सदियों पूर्व बचर नाम के गोंड ने पैरी नदी में मछली पकड़ने के लिए जाल डाला, उसमें एक काला पत्थर फंसा, बचर ने उसे नदी ‘में फेंक कर पुनः जाल नदी में फेंका तो पत्थर पुनः आ गया। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

अतः बचर उसे घर ले आया। रात्रि में स्वप्न में बताया कि वह बूढ़ादेव है। बचर ने उनकी पूजा में असमर्थता व पद्धति की जानकारी न होना बताया तो बूढ़ादेव ने कहा कि पूजा के जानकार ढूंढ कर उसे अपनी पुत्री ब्याह दो पूजा के जानकार कोंदा नाम हलबा जाति का व्यक्ति मिला, जो गूंगा व बहरा था। बचर की पुत्री इससे ब्याही गई। यह बूढ़ादेव का पुजारी बना।

इनकी संतानें चौखुटिया भुजिया कहलाई अर्थात् चौखुटिया भुजिया जनजाति की उत्पत्ति हलबा पुरुष और गोंड महिला के विवाह से माना जाता है। अंग्रेज विद्वान रिजले ने चिन्दा भुजिया की उत्पत्ति बिंझवार व गोंड जाति के विवाह से माना है। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

भुंजिया जनजाति के रहन-सहन 

भुजिया जनजाति इस क्षेत्र के अन्य जनजाति गोंड, कमार, कंवर आदि के साथ ग्राम में निवास करते हैं। इनके ग्राम में अन्य जाति के लोग भी रहते हैं। घर सामान्यतः मिट्टी का बना होता है, जिस पर घास-फूस या देशी खपरैल का छप्पर होता है। घर सामान्यतः दो-तीन कमरे का होता है। घर की दीवार को सफेद या पीली मिट्टी से पुताई करते हैं। घर का फर्श मिट्टी का होता है, जिसे गोवर, मिट्टी से रोज लीपते हैं।

चौखुटिया भुजिया लोग रांधा घर अलग बनाते हैं। इसकी दीवार लाल मिट्टी से पुताई करते हैं। इसकी छत घास-फूस का होता है, यह लाल बंगला भी कहलाता है। जहाँ देव स्थान होता है, यहीं रसोई भी बनाते हैं। इस घर को परिवार के सदस्यों के अलावा अन्य परिवार या अन्य जाति के लोग स्पर्श नहीं कर सकते। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

घर में अनाज रखने की कोठी, “जांता” ( चक्की ), वेंकी, मूसल, ओढ़ने-बिछाने, पहनने के कपड़े, भोजन बनाने तथा खाने के बर्तन मिट्टी, एल्युमिनियम, कांसे के होते हैं। कृषि उपकरण, कुल्हाड़ी, बाँस की टोकरी, सूपा, मछली पकड़ने के जाल आदि होता है। भुजिया जनजाति की स्त्रियाँ हाथ, पैर, चेहरे पर गोदना गोदाती हैं।

पुरुष धोती, पंछा, मंडी, कुरता पहनते हैं। महिलाएँ लुगड़ा, पोलका पहनती हैं। स्त्रियाँ पैर में पैरी, सांटी, हाथ में पटा, ऐंठी, गले में सुरड़ा, रुपिया माला, नाक में फूली, कान में खिनवा पहनती हैं। अधिकांश आभूषण गिलट व नकली चाँदी के होते हैं। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

इनका मुख्य भोजन चावल, कोदो की भात, यासी, पेज, मड़िया का पेज, मौसमी सब्जी है। कभी-कभी उड़द, मूंग, कुलथी, बेलिया की दाल भी बनाते हैं। मांसाहार में बकरा, चीतल, सांभर, खरगोश, मुर्गा, मछली, विभिन्न प्रकार के जंगली पक्षियों को खाते हैं। महुआ से निर्मित शराब पीते हैं। पुरुष बीड़ी पीते हैं।

भुंजिया जनजाति का व्यवसाय 

इस जनजाति का आर्थिक जीवन मुख्यतः कृषि, जंगली उपज संग्रह, मजदूरी आदि पर आधारित है। पहले जंगल में शिकार भी करते थे। इनके प्रमुख कृषि उत्पादन धान, कोदो, उड़द, अरहर, कुलथी, तिवड़ा, तिल आदि है। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

जंगली उपज महुआ, चार, गोंद, लाख, तेंदू पत्ता आदि एकत्र कर बेचते हैं। जिनके पास कृषि भूमि कम है, वे अन्य कृषकों के खेतों पर मजदूरी करते हैं। वर्षा ऋतु में स्वयं के उपयोग हेतु मछली पकड़ते हैं।

भुंजिया जनजाति की संस्कृति 

भुजिया जनजाति पितृवंशीय, पितृसत्तात्मक, पितृ निवास स्थानीय होता है। भुजिया जनजाति में मुख्य रूप से दो उपजाति क्रमशः चौखुटिया भुजिया और चिन्दा भुजिया पाया जाता है। चौखुटिया भुजिया ऊँचे माने जाते हैं। उपजातियाँ गोत्रों में विभक्त है। इनके प्रमुख गोत्र बघवा, बोकरा, चीता, भैंसा, सोनवानी, तेकाम, जांता, नेताम, मरकाम, दूध, सुआ आदि है। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

गोत्र बहिर्विवाही समूह है। वर-वधू का गोत्र अलग-अलग होना आवश्यक है, किन्तु इनके उपजाति अन्तः विवाडी होता है अर्थात् उपजाति के भीतर ही विवाह किया जाता है। प्रत्येक गोत्र के टोटाम पाये जाते हैं, जो पशु-पक्षी, जीव-जन्तु पर आधारित होता है।

गर्भवती महिलाएँ प्रसव पूर्व तक आर्थिक एवं पारिवारिक कार्य सम्पन्न करती है। गर्भावस्था में कोई संस्कार नहीं किया जाता। प्रसव घर पर स्थानीय सुनवाई या बुजुर्ग महिलाओं द्वारा कराया जाता है। प्रसूता को जड़ी-बूटी की काढ़ा, सोंठ, गुड़, तिल के लड्डू खिलाते हैं। छठे दिन उठी मनाते हैं। इस दिन प्रसूता व बच्चे को नहलाते हैं, उन पर दूध छिड़क कर पवित्र करते हैं। रिश्तेदारों को चाय पिलाते हैं। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

विवाह के पूर्व हर लड़कियों का रजोदर्शन उम्र के पूर्व “कांड” (तीर) विवाह संपन्न कराते हैं। इसमें लड़की का विवाह तीर के साथ कराया जाता है, जिसे कांडाबारा कहा जाता है। विवाह उम्र लड़कों में 16-18 वर्ष तथा लड़कियों में 14-16 वर्ष माना जाता है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। वर पक्ष द्वारा वधू के पिता को चावल, दाल, गुड़, हल्दी, तेल, कपड़े आदि देते हैं। विवाह की रस्में जाति के बुजुर्ग व्यक्ति के देख-रेख में संपन्न कराया जाता है।

इसके अतिरिक्त “उरिया”, “पैठू”, “लमसेना”, गुरावट प्रथा भी इनमें देखने को मिलता है। विधवा या त्यगता को पुनर्विवाह की स्वीकृति है, जिसे चूड़ी पहनाना कहते हैं।

मृत्यु होने पर मृतक को दफनाते हैं। तीसरे दिन घर की लिपाई-पुताई कर स्नान करते हैं। पुरुष दाढ़ी, मूंछ व सिर के बाल का मुण्डन कराते हैं। 10वें दिन मृत्यु भोज देते हैं। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

भुजिया जनजाति में परम्परागत जाति पंचायत पाई जाती है। इस पंचायत के प्रमुख सदस्य पुजेरी, पाती और दीवान होते हैं। ये पद वंशानुगत होता है इस पंचायत में परम्परागत तरीके से अनैतिक संबंध, दूसरे जाति के स्त्री या पुरुष से विवाह, विवाह तथा तलाक संबंधी विवाद का निपटारा करते हैं। दण्ड के रूप में नगद जुर्माना या सामाजिक भोज देना पड़ता है।

भुंजिया जनजाति के देवी-देवता और त्यौहार 

भुजिया जनजाति के मुख्य देवी-देवता बूढ़ादेव, ठाकुरदेव, बूढीमाई, भैंसासुर, माटीदेव, काना भौंरा, काला कुंवर, डूमादेव (पूर्वज) आदि हैं। चंदा-सूरज, नदी, पहाड़, वृक्ष, हिंदू देवी-देवता की भी पूजा करते हैं। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

इनके प्रमुख त्योहार हरेली, पोला, तीजा, पितर, नवाखानी, दशहरा, दिवाली, होली आदि है। देवी-देवता की पूजा त्योहारों पर करते हैं। प्रतिवर्ष ग्राम देवता व कुल देवता को मुर्गी की बलि चढ़ाते हैं। काला कुंवर में तीन वर्ष बाद बकरा की बलि देते हैं। जादू-टोना, मंत्र-तंत्र, भूत-प्रेत में काफी विश्वास करते हैं। इनका धार्मिक पुजारी व जादू मंत्र का जानकार बैगा कहलाता है।

भुजिया जनजाति के लोग विवाह में बिहाव नाच, दिवाली में महिलाएँ पड़की, भादों में पुरुष राम सप्ताह, होली में रहस नाचते हैं। इनके प्रमुख लोक गीत पड़की गीत, ददरिया, विवाह गीत, फाग, राम सप्ताह गीत आदि है। ( भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ Bhunjiya janjati chhattisgarh bhunjiya tribe chhattisgarh )

2011 की जनगणना अनुसार भुजिया जनजाति में साक्षरता 58.9 प्रतिशत थी। पुरुषों में साक्षरता 74.6 प्रतिशत व स्त्रियों में 43.8 प्रतिशत थी।

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source : Internet

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Rajveer Singh
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