बाजार प्रणाली क्या है ? भारत के ग्रामीण बाजार | Bharat Ke Gramin Bazar Pranali
बाजार की विशेषताएँ अथवा प्रमुख तत्व
- एक वस्तु – अर्थशास्त्र में बाजार का सम्बन्ध साधारणतया किसी वस्तु विशेष से ही होता है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु का अपना एक पृथक् बाजार होता है जिसमें समरूप वस्तुओं का क्रय-विक्रेय किया जाता है। इस प्रकार बाजार में वस्तु ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।
- क्षेत्र – अर्थशास्त्र के अन्तर्गत बाजार कोई विशिष्ट स्थान नहीं होता, बल्कि एक विस्तृत क्षेत्र होता है, जिसमें वस्तु-विशेष के क्रेता तथा विक्रेता फैले रहते हैं। वर्तमान में यातायात एवं संदेश वाहन के साधनों को भी दृष्टिगत रखना पड़ता हैं।
- क्रेता और विक्रेता
- स्वतंत्र प्रतियोगिता अपूर्ण रहते हैं। – बाजार में स्वतंत्र प्रतियोगिता होनी चाहिए परन्तु बाजार प्राय:
- एक मूल्य
बाजार का वर्गीकरण
- क्षेत्र के आधार पर – स्थानीय , प्रादेशिक , राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय
- प्रतियोगिता के आधार पर- पूर्ण बाजार,अपूर्ण बाजार,एकाधिकार बाजार
- समय के आधार पर- दैनिक,अल्पकालीन,दीर्घकालीन,अति दीर्घकालीन
- कार्य के आधार पर – बिक्री के अनुसार बाजार, वैधानिकता के आधार पर बाजार, वस्तु की मात्रा के आधार पर बाजार
स्थानीय बाजार की रूपरेखा
- जब वस्तु की माँग स्थानीय होती है और उसके क्रेता एवं विक्रेता किसी स्थान विशेष तक ही सीमित रहते हैं, तो इस प्रकार के बाजार को स्थानीय बाजार कहते हैं।
- स्थानीय बाजार में उन्हीं वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है, जो प्रायः उस स्थान विशेष में पैदा होती हैं।
- शीघ्र नाशवान वस्तुओं का बाजार स्थानीय होता है, जैसे- सब्जी, दूध, मांस
प्रादेशिक बाजार
- जब किसी वस्तु की माँग और उससे सम्बन्धित लेन-देन एक क्षेत्र तक सीमित रहते हैं, तो उस बाजार को प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय बाजार कहा जाता है।
राष्ट्रीय बाजार
- जब किसी वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता समस्त देश में फैले होते हैं और उसकी देशव्यापी माँग होती है तो ऐसी वस्तु के बाजार को राष्ट्रीय बाजार कहते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार
- जिन वस्तुओं का क्रय-विक्रय विभिन्न राष्ट्रों के बीच किया जाता है, उनका बाजार अन्तर्राष्ट्रीय होता है। जैसे-जैसे विभिन्न देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध बढ़ते हैं, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का विकास होता है।
प्रतियोगिता आधार पर बाजार के रूप
- पूर्ण प्रतियोगिता– जिसमें विक्रेताओं के बीच वस्तु के विक्रय के लिए प्रतियोगिता होती है। ऐसे बाजार में क्रेता लाभ की स्थिति में होता है।
- एकाधिकार एकाधिकार में वस्तु को एक और केवल एक ही फर्म के द्वारा उत्पादन एवं विक्रय किया जाता है. यह विशुद्ध प्रतियोगिता की विपरीत स्थिति होती है। एकाधिकार में बाजार में प्रतियोगिता का अस्तित्व नहीं होता.
- अपूर्ण प्रतियोगिता– इसके अन्तर्गत बाजार की निम्न श्रेणियाँ आती हैं
1.द्वयाधिकार- किसी बाजार में एक वस्तु के दो उत्पादक हों और ये दोनों उत्पादक बाजार में अपनी वस्तु को बेचने के लिए प्रतियोगिता करते हों।
2.अल्पाधिकार- जब उस बाजार में थोड़े-से विक्रेता हों और उनमें आपसी प्रतियोगिता भी कम हो।
3.एकाधिकार प्रतियोगिता- इसमें न तो पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है और न ही विशुद्ध एकाधिकार, बल्कि इन दोनों के बीच की स्थिति पायी जाती है।
बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व
- वस्तु की माँग– यदि वस्तु की माँग व्यापक होगी तो उसका बाजार विस्तृत होगा।
- परिवहन योग्य– परिवहन योग्य वस्तुओं का बाजार व्यापक होता है।
- टिकाऊपन– टिकाऊ वस्तुओं का बाजार व्यापक होता है। जबकि शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं यथा दूध, दही, सब्जी आदि का बाजार सीमित होता है।
- बड़े पैमाने पर उत्पादन– इससे उत्पादन लागत में कमी आती है, जिससे वस्तु के बाजार का विस्तार होता है।
- पूर्ति की पर्याप्तता एवं स्थानापन्न वस्तुएं- जिन वस्तुओं की पूर्ति उनकी माँग के अनुरूप कर ली जाती हैं, उन वस्तुओं का बाजार व्यापक होता है। वस्तु की पूर्ति उसकी माँग के अनुरूप नहीं बढ़ाने पर उपभोक्ता उस वस्तु के स्थान पर किसी दूसरी वस्तु का उपयोग करने लगते हैं।
- शीघ्रबोधिता वस्तु की सरलता एवं गुण-दोष की जानकारी से बाजार प्रभावित होता है।
- यातायात व संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के साधन– ज्यों-ज्यों यातायात व संचार के साधनों का विकास होता जायेगा त्यों-त्यों वस्तु का बाजार भी व्यापक होता जायेगा।
- मुद्रा की स्थिरता तथा व्यवस्थित बैंकिंग व्यवस्था- मुद्रा के मूल्य में स्थिरता एवं कुशल बैंकिंग प्रणाली से भी बाजार का विस्तार होता है। विपणन का वैज्ञानिक तरीका- विज्ञापन का जितना अधिक और व्यापक विस्तार होगा वस्तु का बाजार भी उतना विस्तृत होगा।
- शान्ति एवं सुरक्षा– देश की शान्ति व्यवस्था बाजार का विस्तार करती है।
- सरकारी नीतियां– देश के भीतर तथा बाहर स्वतन्त्र एवं उदार व्यापार की नीति अपनायी जा रही है और कर-प्रणाली न्यायोचित है, तो बाजार का विस्तार होगा।
भारत में ग्रामीण बाजार
भारत में लगभग 6.4 लाख गांव है। भारत की जनगणना ग्रामीण क्षेत्र को 400 वर्ग किलोमीटर से कम की जनसंख्या घनत्व वाले बस्ती के रूप में परिभाषित करती है, जहाँ कम से कम 75% कामकाजी पुरुष आबादी कृषि में लगी हुई हो और जहां नगर पालिका या बोर्ड मौजूद नहीं हो।
भारत दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। भारत की दो तिहाई से ज्यादा जनसंख्या गावों में निवास करती है इसलिए भारत के समग्र आर्थिक विकास के लिए गावों का विकास अत्यंत आवश्यक है जिसमें ग्रामीण बाजार की अहम भूमिका है।
कंपनियों का भविष्य ग्रामीण बाजारों की गतिशीलता को समझने पर निर्भर करता है। ग्रामीण उपभोक्ताओं की आय का स्तर बढ़ रहा है। यह विपणक को भारी अवसर प्रदान करता है।
ग्रामीण बाजार का महत्व
- शहरी जनसंख्या पर कम बोझ: ग्रामीण विपणन ग्रामीण बुनियादी ढांचे और समृद्धि में योगदान दे सकता है।
- तेजी से आर्थिक विकास: ग्रामीण विपणन कृषि क्षेत्र में सुधार करता है और कृषि क्षेत्र में सुधार देश की पूरी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है।
- रोजगार अवसरों में वृद्धि
- बेहतर जीवन स्तर
- कृषि आधारित उद्योगों का विकास, संतुलित औद्योगिक विकास
- ग्रामीण अप्रयुक्त संसाधनों का अधिकतम उपयोग
- कृषि उत्पादन की आसान विपणन क्षमता
- ग्रामीण बुनियादी ढांचे
- मूल्य स्थिरता
वर्तमान ग्रामीण बाजार की विशेषताएं
- ग्रामीण बाजार भौगोलिक दृष्टि से बिखरे हुए है।
- कृषि से आय बाज़ार के आय का प्रमुख स्रोत हैं।
- बाजार की आय मौसम पर आधारित है
- विभिन्न धर्म, भाषा, संस्कृति, सामाजिक रीति-रिवाज और
- क्षेत्रीय एवं भाषाई विविधता, अनेक बोलियां
ग्रामीण बाजार अनेक चुनातियों एवं सीमाओं में बंधा हुआ है जो निम्नानुसार हैं
चुनौतियां / समस्याएं
- उचित संचार का अभाव, सूचना प्रौद्योगिकी में पिछड़ापन, नेटवर्क की समस्या
- परिवहन की समस्या
- वितरण समस्याएं- अप्रभावी वितरण चैनल।
- भण्डारण सुविधाओं का अभाव
- मौसमी माँग
- बैंक और क्रेडिट सुविधाओं का अभाव
- ग्रामीण बाजार में पैकेजिंग की समस्याएँ
- डीलरों की गैर-उपलब्धता
- उपयुक्त मीडिया की उपलब्धता
- अधिक फैला किंतु कम आबादी वाले बाजार
- उपभोक्ता अनुसंधान की लापरवाही
- प्रति व्यक्ति आय कम, उपभोक्ताओं की सीमित क्रय क्षमता
- कम साक्षरता स्तर
- कृषि स्थिति पर निर्भर
- भाषा और बोलियों में अंतर
- कई दूरस्थ स्थानों में आज भी वस्तु विनिमय प्रणाली
ग्रामीण विपणन के लिए किए गए शासकीय संस्थागत उपाय
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC),
- इंडियन फार्मस फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको),
- कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड (कृभको),
- गिरिजन कॉपरेटिव सोसाइटी,
- आंध्र प्रदेश स्टेट हैडलूम वीवर्स कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (एप्को फैब्रिक)
ग्रामीण बाजारों में संगठित खुदरा व्यापार का उद्भव :
- संगठित ग्रामीण खुदरा बिक्री व्यापार अब उभर कर सामने आया है। कई बड़ी कंपनियां अपने संगठित खुदरा प्रारूप स्थापित किए हैं,
- जैसे-चौपाल सागर (ITC), हरियाली किसान बाजार (DCM श्रीराम), टाटा किसान सागर (टाटा केमिकल्स),आधार (गोदरेज समूहों) आदि
सरकारी खुदरा तंत्र
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS),
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC),
- ग्रामीण बैंक
- इंडियन फार्मर्स फार्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO)
परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
- ग्रामीण बाजार में बड़ी उपभोक्ता संख्या जल्दी चलने वाली उपभोक्ता सामग्री (FMCG) मद में है।
- आई. टी. सी. लिमिटेड (ITC Ltd.) ने भारतीय ग्रामीण बाजार में अधिकतम प्रवेश किया है।
ग्रामीण विपणन के चार ‘A’
कंपनियों को ग्रामीण उपभोक्ताओं की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विपणन रणनीतियों का उपयोग करना होगा। जिन्हें ग्रामीण विपणन का चार A कहा जाता है, जो ग्रामीण बाजारों की चुनौतियों और प्रमुख निर्णय क्षेत्रों दोनों को संदर्भित करती है। यह चार A हैं
- सामर्थ्य (affordability),
- उपलब्धता (availabilty),
- जागरूकता (awareness),
- स्वीकार्यता (acceptability)
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