
नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।
बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas
मध्यप्रदेश के व्यस्त जन जीवन से सुदूर दक्षिण पूर्व में स्थित मध्यप्रदेश का एक आदिवासी बाहुल्य जिला बस्तर जो आज भारत के मानचित्र में अपना विशेष स्थान बना चुका है। प्राचीन संस्कृति, पुरातत्व, खनिज और वन सम्पदा से भरपूर इस बस्तर की अनोखी काष्ठकला ने भी पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।
स्वतंत्रता से पूर्व शिक्षा व्यवस्था
स्वतंत्रता से पूर्व मध्यप्रांत की सबसे बड़ी रियासत जिसका क्षेत्रफल आज भी 39714 वर्गकिलोमीटर है भारत के सबसे बड़े जिलों में अपना विशेष स्थान रखती है। समुद्र सतह से चार हजार फीट ऊंची लोह अयस्क से भरी मेलाडीला की पहाड़ियां और कहीं धरती की गर्भ में समायी कोटुमसर को विशाल गुफायें पर्यटकों का ध्यान अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
बस्तर के अधिकांश क्षेत्र को ममत्व भाव से सोचती इन्द्रावती और उसकी सहायक नदियां बस्तर को गौरवान्वित करती हैं। प्राचीन दण्डक जनपद और कालांतर में दण्डकारण्य के नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र के नामकरण के संबंध में अनेक क्विदन्तियां है। कहते हैं, प्रारंभिक काकतीय शासक अन्नमदेव से प्रसन्न हो मां दन्तेश्वरी ने इस पूरे क्षेत्र पर अपना दिव्य वस्त्र फैलाकर काकतीय नरेश को एक सुरक्षित राज्य प्रदान किया था, जो स्वतंत्रता पूर्व तक अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण पूरे संसार से प्रायः अलग अलग ही रहा।
माडिया, मुरिया गोंड, राजगोड, भतरा परजा पुरवा आदि जनजातियां यहाँ मूलरूप से निवास करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र को यदि हम देखें तो पता चलता है कि ऐतिहासिक रूप से शिक्षा का विकास इस क्षेत्र में बहुत कम रहा। 1887 ई. तक भारत में चार विश्व विद्यालय स्थापित हो चुके थे। बम्बई कलकता मद्रास और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र जिन दिनों उच्चशिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उन दिनों शिक्षा के नाम पर बस्तर में प्राथमिक ज्ञान की रोशनी भी उदित नहीं हुई थी। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
सर्वत्र अज्ञान का अंधकार था, जन शिक्षा की बात तो दूर रही यहां के राजकुमारों की शिक्षा तक का कोई प्रबंध नहीं था। बस्तर एवं कांकेर रियासत के कुछ भागों से गुजरने वाले अंग्रेज J.D. Blunt ने लिखा है, पूरी रियासत में पढ़ने लिखने में समर्थ केवल कांकेर रियासत के दीवान थे। 1842 में राजा भोपाल देव के शासन काल के दरबारी पढ़े लिखे थे जिनका उल्लेख किया गया है।
बस्तर में भी पूर्ण शिक्षा का अभाव था, अंग्रेजी शासन के हस्तक्षेप से ही यहां ज्ञान गरिमा से भरपूर उषा को लालिमा उदित हुई, अंग्रेजों ने 1862 में अपर गोदावरी डिस्ट्रिक्ट के डिप्टी कमिश्नर सी ग्लासफर्ड को बस्तर के बारे में पूर्ण रिपोर्ट देने को कहा ग्लासफर्ड की ऐतिहासिक रिपोर्ट बस्तर के बारे में अपना महत्व रखती है। इसमें कहा गया है कि पूरे बस्तर में नाम के लिए भी स्कूल नहीं है। शिक्षा के इतिहास में राजा भैरमदेव का शासन काल विशेष महत्व रखता है। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
स्कूल का निर्माण (1886)
1886 में बस्तर में तीन स्कूल खोले गये। मुसलमानों की शिक्षा के लिए अरबी माध्यम का स्कूल, उड़ीसा से आकर बसे लोगों के बच्चों हेतु उड़िया भाषा माध्यम का स्कूल और हिन्दी माध्यम का एक स्कूल, इस स्कूल के एक साथ तीन कक्षायें आरंभ की गयीं। इन स्कूलों में 80 छात्र अध्ययनरत थे, 1896 में 15 नये स्कूल खोले गये, छात्रों की संख्या 2252 हो गयी।
इसी बीच एक मिडिल स्कूल भी खुल गया, (सन्दर्भ एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट आफ बस्तर फार द इयर 1896) 1897 तक स्कूलों की संख्या 58 हो गयी और छात्रों की संख्या बढ़कर 2627 तक पहुंच गयी। स्कूलों के लिये भवनों का अभाव एक समस्या थी, 1889 को प्रशासनिक रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष 11 स्कूलों के लिये भवन उपलब्ध कराये गये। इस समय शिक्षकों की कमी भी एक समस्या थी, क्योंकि रियासत में ज्यादा पढ़े लिखे लोग नहीं थे, अत: रियासत के बाहर के लोग शिक्षक के पद पर नियुक्त किये जाते थे। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
डॉ. देवेन्द्र नाथ पाणीही प्राध्यापक दिल्ली विश्वविद्यालय के अनुसार 1939 से 1946 तक उन्हें पढ़ाने वाले अधिकांश शिक्षक उच्च शिक्षा प्राप्त एवं बस्तर के बाहर से आये थे। श्री विमल सेन फर्स्ट क्लास गोल्ड मैडलिस्ट, कलकत्ता विश्वविद्यालय से थे। श्री पांकेजी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। श्री डबराल गढ़वाल से आये थे। श्री गणेश गोपाल पाढे जो डिप्टी हेडमास्टर हुआ करते थे।” फर्म्युगन कालेज पूना से शिक्षा प्राप्त की थी, जल बालगंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे शिक्षक रह चुके हैं।
उस समय तक स्थानीय मिक्सन हाई स्कूल में स्थानीय जगदलपुर से कोई भी शिक्षक नहीं था। शिक्षा का स्तर बहुत ही ऊंचा और श्रेष्ठ था। 1910 में हुए आदिवासी संघर्ष ने शिक्षा के विकास को काफी अवरुद्ध किया क्योंकि इस संघर्ष में बस्तर में स्थित 60 स्कूलों में से 45 स्कूल जला दिये गये। स्कूलों, की संख्या घटकर 15 रह गयी एवं छात्रों की संख्या में अत्यंत कमी हो गयी। समय बीतता गया, धीरे धीरे स्कूलों, छात्रों एवं शिक्षकों की संख्या में वृद्धि होती गयी। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
स्वतंत्रता के बाद शिक्षा व्यवस्था
स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के विकास में अभिनव परिवर्तन आया, और बस्तर में शिक्षा का तेजी से विकास हुआ। 1985 में प्राथमिक शिक्षा बस्तर में अपना शताब्दी वर्ष पूर्ण कर चुकी है, और 10 मार्च 1992 को “राजारूद्र प्रताप देव टाऊन स्कूल जो आज वर्तमान में सदर प्राथमिक शाला के नाम से ज्ञात है. सौ वर्ष पूर्णकर शताब्दी समारोह मना चुकी है।
वर्तमान में यहां लगभग 3447 प्राथमिक शालाएं, 617 माध्यमिक शालाएं 137 आश्रम शालाएं, 57 उच्चतर माध्यमिक शालाएं, लगभग 216 छात्रावास 5 औद्योगिक प्रशिक्षण शालाएं, दो बुनियादी प्रशिक्षण शालाएं शासन व निजी संस्थाओं द्वारा संचालित है। जिनके हजारों शिक्षक ज्ञान दान देकर लाखों छात्रों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। जो शिक्षा के इतिहास के विकास में एक अतुलनीय योगदान है। ( बस्तर में शिक्षा का इतिहास | Bastar me shiksha ka itihas )
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