बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala

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बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala
बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala

नमस्ते विद्यार्थीओ आज हम पढ़ेंगे बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala के बारे में जो की छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी परीक्षाओ में अक्सर पूछ लिया जाता है , लेकिन यह खासकर के CGPSC PRE और CGPSC Mains और Interview पूछा जाता है, तो आप इसे बिलकुल ध्यान से पढियेगा और हो सके तो इसका नोट्स भी बना लीजियेगा ।

 बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala

भारत वर्ष के मध्य में स्थित मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्वी सीमा पर अवस्थित बस्तर जिला 17°46 से 20° 34′ उत्तरी अक्षांश एवं 80°15′ से 82°1 पूर्वी देशांतर रेखा के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 39171 वर्ग कि.मी. है। जगदलपुर- गीदम मार्ग पर 30 कि.मी. की दूरी पर बांयी ओर एक किलोमीटर पर प्राम ढोढरापाल है, जहां बस्तर के छिन्दक नागयुगीन लगभग 12वीं सदी ईसन में निर्मित प्राचीन मंदिर एवं मूर्तियां विद्यमान हैं। प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला में मंदिरों का स्थान विशिष्ठ है।

अनेकता में एकता

अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता रही है, जिसके फलस्वरूप बाह्य संस्कृतियों को अपने में आत्मसात कर युगों-युगों के कलावशेषों को समेटे आज भी अमर है। मंदिर इस देश की परम्परा तथा प्रतिमा की उपज हैं, जिसकी बुनियाद धार्मिक, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक पृष्ठभूमि है। प्राचीन बस्तर में शास्त्रानुकूल मंदिर निर्माण की परंपरा का प्रारंभ गुप्त युग से पूर्व हो चुका था। हाल ही में जिले के गढ़धनोरा नामक ग्राम की खुदायी में लगभग 22 से अधिक गुप्तकालीन प्राचीन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

बस्तर के मंदिर की विशेषताएं 

बस्तर में मंदिर स्थापत्य का चरमोत्कर्ष नागयुग में हुआ। जिनके राजस्वकाल में सम्पूर्ण जिले में सैकड़ों की संख्या में मंदिर एवं मूर्तियां बनायी गई इसी क्रम में ढोढरापाल में उपलब्ध मंदिर एवं मूर्तियां स्थापत्य शिल्प की अनमोल धरोहर हैं। ढोढरापाल पाम में त्रिरथ शैली युक्त तीन मंदिरों का एक समूह जिसमें से एक मंदिर पूर्णतः ध्वंस हो चुका है, जिसके अवशेष यत्र-तत्र बिखरे हैं मंदिर एक खुले स्थल पर एक ही लम्बी चौड़ी वेदिका पर निर्मित है। मंदिर का मुख्य प्रवेश भाग दक्षिण-पूर्व दिशा के ठीक मध्य में बना है अध्ययन सुविधा की दृष्टि से इन्हें तीन वर्गों में बांटा जा सकता है।

मंदिर क्रमांक- 1 : नागर शैली में निर्मित यह मंदिर एक खुली वेदिका पर बना है। जिसकी लम्बाई लगभग 10 फीट तथा चौड़ाई 10-12 फीट है। मंदिर का अप्रभाग अब क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। इसका प्रवेश द्वार 5-1/2 फीट ऊंचा है। पश्चात् 3-1/2 फीट लम्बा चोड़ा अंतराल है। अंतराल के बाद लगभग 5-12 फीट लम्बा-चौड़ा गर्भगृह है, जिसके आलिंद में गौरी की प्रतिमा स्थापित है इसलिए इसे गौरी मंदिर कहना अधिक उपयुक्त होगा। विशाल प्रस्तर खण्डों को काट तराश कर त्रिरथ शैली में इनका निर्माण किया गया है।( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

मंदिर का पृष्ठ भाग पूर्णतः सुरक्षित है इसके तीनों ओर जंपा भाग में आर्क बने हैं जिनमें अब कोई प्रतिमा शेष नहीं है। इसमें बाह्य भित्तियां जहां अलंकरण विहीन है, वहां अधिष्ठान भाग चारों ओर से अलंकरण युक्त हैं।

मंदिर का शिखर भाग लगभग 18 फीट ऊंचा है, जिसके ऊपर अलंकृत 4 फीट के घेरे में बना आमलक है। मंदिर के कलश शेष नहीं है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही एक इमली का विशाल वृक्ष उगा है, जिसकी जड़ों ने मंदिर को ध्वंस कर दिया है। अब यह काफी हुआ है। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

मंदिर क्रमांक- 2 : नागर शैली में प्रस्तर निर्मित यह मंदिर लगभग 9-12 फीट लम्बी चौड़ी वेदिका पर निर्मित है। प्रवेश र लगभग 5 फीट ऊंचा है। विरथ शैली में निर्मित यह मंदिर प्रथम मंदिर की मूल अनुकृति है। इसमें अंतर केवल इतना है कि इसके विमान की ऊंचाई कुछ कम है। मंदिर का विमान 15 फीट ऊंचा है। मंदिर के गर्भगृह के आले में उमा महेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के मध्य में जलहरी युक्त शिवलिंग है। अतः इसकी पहचान शिव मंदिर के रूप में की जा सकती है। शीर्ष भाग पर अलंकृत आमलक है। कलश इसमें भी टूटा हुआ है।

मंदिर क्रमांक- 3 : तीसरा मंदिर पूर्णतः ध्वंस हो गया है, जिसके शिला खण्ड यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं मंदिर के गर्भगृह भाग में नीम का एक वृक्ष उगा है, जिसने सम्पूर्ण मंदिर को विनष्ट कर दिया है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 5-1/2 फीट तथा विमान की ऊंचाई 17 फीट 9 इंच रही है। दोदरापाल के इन मंदिरों में जहां उत्तर भारतीय नागर शिल्प के दर्शन होते हैं, वहीं उड़ीसा स्थापत्य शिल्प की भी झलक मिलती है। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

मूर्तियाँ

मूर्तियाँ:- मंदिर समूह परिसर के पास हो ग्रामवासियों ने यत्र-तत्र बिखरे पड़े प्रस्तर खण्डों को उठाकर एक चबूतरा बनाकर वहां नटराज की एक भव्य प्रतिमा तथा शिव की खण्डित मूर्ति रखी है। कुछ प्रतिमाएं मंदिरों के भीतर भी है जिनका विवरण उल्लिखित है

1. खटवांगधारी नटराज :- 19-1/2′ x 16′ 

खटवाग भारी अष्टभुजी नटराज की यह प्रतिमा अद्वितीय है। खटवांग शिव का अध अस्त्र माना जाता है। शिव, ज्ञान, योग योगा तथा समस्त शास्त्रों के अतिरिक्त नृत्य के भी आचार्य है। उन्हें नृत्य-शास्त्र का प्रवर्तक माना जाता है। शैवागमों में उल्लिखित है कि शिव 101 मुद्राओं से भी अधिक मुद्रा में नृत्य कर लेते हैं। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

शास्त्रीय लक्षणों से युक्त काले प्रस्तर खण्ड में निर्मित नटराज को यह प्रतिमा अद्वितीय है। नटराज नृत्य की मुद्रा में लय और तालबद्ध रूप में स्थिर हैं। फलक के नीचे दोनों ओर गण मृदंग वादन कर रहे हैं। शिव के हाथों में क्रमशः त्रिशूल, खांग और डमरू है। शीर्ष पर जटामुकुट, कानों में कुण्डल, गले में देवेयक युक्तमाला, हाथों में वलय एवं केयूर कमर में अलंकृत मेखला, पैरों में नूपुर एवं कड़े धारण किये हुए हैं। प्रतिमा लगभग 12वीं शताब्दी ई. स. की है।

2. गौरी :- 19-12′ x 14 ‘

गौरव चतुर्भुजी खंडित गौरी की प्रतिमा वही मनोहारी है, जो मंदिर क्रमांक एक के भीतर प्रतिष्ठित लगभग 12वीं शताब्दी ई.स. को है। महेश्वर द्वारा इनका ध्यान किया जाता समस्त हिन्दू धर्म एवं सम्पदायों में किसी धार्मिक कार्य के प्रारंभ में गौरी गणेश की पूजा सर्वप्रथम किये जाने का विधान है। स्थानक मुद्रा में गोरी का निचला दाहिना हस्त अभय मुद्रा में तथा ऊपर का हाथ खण्डित है। बायें हाथ में नीचे कमण्डल तथा ऊपरी हस्त में सनालपद्म का अंकन है। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

मान सार ग्रन्थ में गौरी को श्वेतवर्ण दो भुजा वाली भी कहा गया है। गौरी के शीर्ष के पीछे चन्द्राकार प्रभा मंडल है। सिर पर केश बंध युक्त किरीट मुकुट है कानों में कुण्डल, गले में त्रिवली हार, कमर में मेखला, घुटनों पर अवलम्बित वनमाल, हाथों में वलय एवं केयूरयुक्त प्रतिमा भावपूर्ण है। फलक के नीचे दायें ओर सनालपदम लिये त्रिभंगमुद्रा में खड़ी परिचारिका तथा बायें भक्ति भाव से बैठा साधक है। फलक के ऊपर शीर्ष के दोनों ओर मालाधारी पक्षों का अंकन है। कलात्मक दृष्टि से प्रतिमा में सुन्दर आकर्षक अलंकरण, वनमाल, सुंदरकेश राशि, कर्णकुण्डल, ओजस्वी एवं आकर्षक मुखमुद्रा अभिव्यक्ति सौम्यता और गाम्भीर्य को प्रदर्शित करने वाली है।

3. उमामहेश्वर :- 18′ x  9-1/2′

ललितासन में विराजमान उमा महेश्वर की यह प्रतिमा अत्यंत प्रभावोत्पादक है। जो मंदिर क्रमांक 2 के आलिंद में जड़ी है। दक्षिणा क्रम से शिव के हाथों में त्रिशूल एवं मोदक है। बायां हाथ कटि प्रदेश से होकर ऊपर की ओर उठा है। हाथों में वलय एवं केयूर, गले में पेवेयक एवं मुक्तामाला, शीर्ष पर जटामुकुट फानों में कुण्डल, कमर में मेखला तथा पैरों में कड़े हैं। शिव का दायां पैर नंदी पर स्थित है। चतुर्भुजी उमा का दायां हस्त शिव के कंधे पर बायें पर दर्पण एवं अंजनशलाका एवं सर्प को पकड़े हैं। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

शिव के शीर्ष पर सरकता हुआ सर्प त्रिशूल के ऊपर फन फैलाये स्थिर है। उमा का दायां पाद शिव की जंघा पर तथा बांया नीचे वाहन सिंह पर अवलंबित है। उमा के शीर्ष पर जटामुकुट से संलटन त्रिभुजाकृति का कटाव दार मुकुट है, कानों में कुण्डल, गले में गुलबंध, त्रिवली हार उसके ऊपर तीन लड़ियों युक्त मुक्तामाला धारण किये हुए हैं, कमर में अलंकृत मेखला, पैरों में कड़े, हाथों में वलय एवं केयूर है। उमा महेश्वर की यह प्रतिमा द्वित्व में एकत्व की भावना को मूर्त रूप प्रदान करती है। प्रतिमा में मूर्तिकार ने शिव पार्वती के दाम्पत्य महासुख को प्रतिबिबित किया है।

4. शिव :- 16′ x  10′

मंदिर के पास बने घेरे में शिव की यह खण्डित प्रतिमा रखी है। मूर्ति का बांया भाग पूर्णतः खण्डित है। शीर्ष पर जटामुकुट कानों में कुण्डल, गले में प्रेवेयक, कमर में मेखला, पैरों में कड़े धारण किये हुए शिव सुखासन में बैठे हैं। दायें हाथ में त्रिशूल, शीर्ष पर फन फैलाये सर्प का अंकन है। ( बस्तर के मंदिरो में ढोढरापाल कलाकृति एवं मूर्तिकला | Bastar ke mandiro me dhondharapal kalakriti avm murtikala )

ढोढरापाल ग्राम में अवस्थित मंदिर एवं मूर्तियां तत्कालीन बस्तर की स्थापत्य एवं मूर्तिकला के उन्नत स्वरूप के साथ ही साथ धार्मिक, दार्शनिक एवं अध्यात्मिक पृष्ठ भूमि का भी सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हैं।

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Source : Internet

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Rajveer Singh
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