रेडियो खगोलशास्त्र क्या है ? जी.एम.आर.टी. क्या है ? इसका क्या उपयोग है ?

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प्रश्न 1 में हमने देखा कि दृश्य प्रकाश 400 से 500 मैनोमीटर दैर्ध्य की विद्युत-चुंबकीय लहरें हैं। यदि हम इस सीमा क बाहर जाते हैं तो अन्य प्रकार की तरंगे नहीं देख पाते, क्योंकि इनके प्रति हमारी आंखें संवेदनशील नहीं होती है।

किंतु हम इन्हें उचित उपकरणों द्वारा खोज सकते हैं जैसे कि हमदृश्य प्रकाश को खगोलशास्त्र के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं, ठीक वैसे ही हम अन्य विद्युत-चुंबकीय विकिरणों से ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

सन 1930 के दशक के प्रारंभ में कार्ल जान्स्की ने रेडियो तरंगों का खगोलीय निरीक्षण के लिये प्रथम बार उपयोग किया। एक जहाज और समुद्र किनारे के बीच होने वाले रेडियो प्रसारण पर सूर्य से आती रेडियो तरंगों का क्या प्रभाव पड़ता है यह जानने के लिये रेडियो एंटीना को स्थापित किया था।

इससे जान्स्की ने सूर्य से आती रेडियो तरंगों को तो खोजा ही साथ ही हमारी आकाशगंगा के केन्द्र से आती रेडियो तरंगों को भी खोज निकाला। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ग्रो-रीवर ने अपने बगीचे में एक रेडियो दूरबीन लगाकर आकाशगंगा का विस्तृत अध्ययन किया।

विश्वयुद्ध के बाद कई खगोलशास्त्री ऐसे अध्ययनों में रुचि लेने लगे। इंग्लैंड के मॅन्चेस्टर के पास जॉड्रेलबॅक व केंब्रिज में एवं ऑस्ट्रेलिया के सिडनी व पार्कस में रेडियो दूरबीनें लगाई गई। जल्द ही खगोलशास्त्रियों ने पता लगा लिया कि विभिन्न आकार व शक्ति की रेडियो तरंगों के स्त्रोत हमारी आकाशगंगा एवं उसके बाहर भी मौजूद हैं।

उसके बाद रेडियो-खगोलशास्त्र खगोलशास्त्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में स्थापित हो चुका है।

जी.एम.आर.टी (Giant Meterwave Radio Telescope) रेडियो ऐंटिनाओं की विशाल-श्रृंखला है जो कि आमतौर पर एक मीटर के करीब वाले दैर्ध्य की रेडियो तरंगों का अध्ययन करती है।

यह पुणे-नासिक महामार्ग के पास. खोदाद में, पुणे से 85 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस सारणी में 45 मीटर व्यास के 30 ऐंटीना कई वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैले हुए हैं।

केंद्र के एक वर्ग कि.मी. में 12 ऐंटिना हैं। और बाकी अंग्रेजी के वाई आकार (Y) में 25 कि.मी. तक की दूरी में स्थापित किये गये हैं। 20 से 200 से.मी. दैर्ध्य की रेडियो तरंगों के लिये GMRT दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन है।

ये अधिकतर स्पंदकों अर्थात पुच्छल तारों के (प्रश्न 100 देखिये) अध्ययन के लिये उपयोग में लायी जाती हैं। ब्रह्मांड के बड़े पैमाने पर अध्ययन के लिये भी इसका उपयोग होता है। इससे रेडियो स्त्रोतों की रचना को बारीकी से समझा जाता है।

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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