कृष्ण विवर अथवा ब्लैक होल किसे कहते हैं?

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अगर हम कोई गेंद ऊपर फेंकते हैं तो वह अंत में नीचे गिर जाती है क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसे पृथ्वी की तरफ मतलब नीचे खींचता है। परंतु, न्यूटन के नियमों के अनुसार पृथ्वी का आकर्षण पृथ्वी से दूर जाने पर कम होता जाता है।

इस कारण अगर कोई वस्तु एक निश्चित सीमा से अधिक गति से फेंकी जाए तो वह पलट कर पृथ्वी पर नहीं गिरेगी, क्योंकि उसे अपनी तरफ खींचने के लिये पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण पर्याप्त नहीं होगा।

यह गति सीमा 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड होती और उसे “पलायन गति” कहा जाता है। पलायन गति से अधिक तेजी से बाहर फेंकी गई वस्तु पृथ्वी पर लौटकर नहीं आती।

जितना किसी तारे का या ग्रह का द्रव्यमान अधिक होगा, उतनी ही यह गति सीमा अधिक होगी। सूर्य पर पलायन गति करीबन 640 किलोमीटर प्रति सेकंड है। अगर किसी तारे पर पलायन गति प्रकाश की गति से, मतलब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड से अधिक होगी तब कैसी स्थिति उत्पन्न होगी ? उस तारे से प्रकाश किरणें बाहर नहीं आ पाएंगी।

फिर यह तारा हमें दिखेगा कैसे ? हम उसे नहीं देख पाएंगे और इस कारण उसे ब्लैक होल अथवा कृष्ण विवर कहते हैं। जैसे कि किसी गहरे कुएँ में गिरने से कोई चीज़ गायब हो जाती है वैसे ही कृष्ण विवर अपने आस-पास की वस्तुएँ अपनी ओर खींचकर उन्हें निगल जाता है।

क्या ब्रह्मांड में कृष्ण विवर मौजूद हैं ? जो चीज़ हम देख ही नहीं पाते उसे हम खोजेंगे कैसे ? उसके “दिखाई पड़ने का सबूत क्या है ? ब्लैक होल यद्यपि अदृश्य होता है फिर भी उसके शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव उसके नजदीक की वस्तुओं पर पड़ता है।

इसलिए ऐसी वस्तुओं का निरीक्षण कर हम ब्लैक होल के अस्तित्व के बारे में पता कर सकते हैं। उदाहरण स्वरूप एक दूसरे के इर्द-गिर्द घूमने वाले दो तारों में से एक ब्लैक होल हो तो उसका अस्तित्व दूसरे तारे के निरीक्षण से जाना जा सकता है। सिग्नस क्ष-1 इस क्ष-किरणों के स्रोत मे ऐसे ही तारायुगल होने का अंदाजा लगाया जाता है ।

क्या सूर्य कृष्ण विवर बनेगा ? सूर्य की त्रिज्या अभी करीब 7 लाख किलोमीटर है। अगर आकुंचन के कारण वह 3 किलोमीटर तक कम हो गई तो सूर्य कृष्ण विवर बन जाएगा। सूर्य का स्वयं का गुरुत्वाकर्षण उसका आकुंचन करता है परंतु उसके आंतरिक दबाव उसका विरोध करते हैं।

आज का भौतिक विज्ञान हमें यह जानकारी देता है, यदि किसी तारे का परमाणु ऊर्जा का भंडार खत्म हो जाए तो उसका भविष्य उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है। उस समय यदि यह द्रव्यमान सूर्य से 2 या 3 गुना से अधिक होगा तो उसके अंदरूनी दबाव गुरुत्वाकर्षण को नहीं रोक पाएंगे और वह तारा कृष्ण विवर बनेगा।

यह चित्र 9 में दिखाया गया है। अगर द्रव्यमान इस सीमा के अंदर होगा तो इन दबावों की गुरुत्वाकर्षण पर जीत होगी और वह तारा न्यूट्रॉन तारा या सफेद बौने के रूप में अपना शेष जीवन व्यतीत करेगा ( प्रश्न 93 देखिए)।

सूर्य भी अपने जीवन का अंत सफेद बौने के रूप में करेगा। वह कृष्ण विवर नहीं बन पाएगा।

कृष्ण विवर में गिरी वस्तु का क्या होता है ?

कृष्ण विवर अपने प्रखर गुरुत्वाकर्षण के कारण आस-पास की वस्तुओं को अपनी ओर खींचता है। मान लीजिये की कोई (अभागा ) व्यक्ति उसमें गिरता है और गिरते वक्त उसका सिर अंदर की तरफ और पैर बाहर की तरफ हैं।

सामान्यतः गुरुत्वाकर्षण का बल तारे के पास जाने से बढ़ता जाता है। इस कारण गिरते हुए व्यक्ति के सिर पर, उसके पैरों की तुलना में आकर्षण का बल अधिक होगा। इससे वह व्यक्ति लंबा खींचा जाएगा। चंद्रमा के आकर्षण का पृथ्वी पर भी ऐसा ही असर पड़ता है।

इसके परिणाम स्वरूप समुद्र में ज्वार-भाटा होता है। ऐसे तनाव निर्माण करने वाले गुरुत्वीय बल को ज्वार-भाटे का बल (टाईडल फोर्स) कहा जाता है। कृष्ण विवर की तरफ गिरते वक्त इस बल में असीमित रूप से वृद्धि होती है और इस कारण कोई भी वस्तु (चाहे वह अभागा व्यक्ति ही क्यों न हो) छिन्न-भिन्न हो जाती है।

कृष्ण विवर के बाहर एक गोलाकार क्षितिज होता है। इसके अंदर कोई भी वस्तु जाने से उसका बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है और फिर उसके छिन्न-भिन्न होने या उसका बाद में क्या हुआ इत्यादि के बारे में हम बाहर बैठे निरीक्षण कर कुछ भी नहीं जान सकते।

पर आइन्स्टाइन का सिद्धांत यह दर्शाता है कि कोई वस्तु कृष्ण विवर के केंद्र तक आकर काल-अवकाश की सीमा पर पहुंचती है और उसके भविष्य का ही अंत हो जाता है ।

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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