जब हम लोहे की किसी छड़ को गर्म करते हैं तो वह उज्ज्वलित होती है। प्रथम वह लाल दिखती है। जैसे-जैसे उसका तापमान बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसका रंग बदलता जाता है। लाल से पीला और फिर सफेद। ये रंग उसमें से प्रमुखता से निकलती तरंगों के नरंग दैर्ध्य को दर्शाते हैं।
उष्ण-वस्तुओं का सिद्धांत हमें बताता है कि संतुलन की अवस्था में जब किसी वस्तु से निकलती ऊर्जा उसमें अवशोषित होती ऊर्जा के बराबर हो तो उसके वर्णक्रम को हम एक विशिष्ट सूत्र से दर्शित कर सकते हैं जिसे कृष्णिका (ब्लैक-बॉडी) वितरण कहा जाता है।
यह सूत्र हमें बताता है कि उस वस्तु से विभिन्न रंगों की किरणें कितनी मात्रा में निकल रही हैं। सबसे अधिक मात्रा में निकल रहीं किरणों का तरंग दैर्ध्य, कृ ष्णिका के तापमान पर निर्भर करता है।
जितना अधिक तापमान उतना कम यह दैर्ध्य होता है। सूर्य का रंग पीला है। रिजेल तारे का रंग नीला होने से उसका तापमान सूर्य से अधिक होगा। भरत-तारे (Betelgeuse) का रंग लाल होने से उसका तापमान सूर्य से कम होगा।