जब कोई सुपरनोवा (प्रश्न 98 देखिये) विस्फोट होता है उसका घना केंद्रभाग पीछे छूट जाता है। अगर उसका द्रव्यमान सूर्य के दुगुने या तिगुने से कम हो तो वह न्यूट्रॉन तारे के रूप में संतुलित अवस्था पाता है।
संभव है कि वह अपने अक्ष के चारों ओर बहुत अधिक गति से घूर्णन करता हो। अगर उसमें किसी दूसरे अक्ष के चारों ओर तीव्र चुंबकीय क्षेत्र भी हो तो वह तारे के साथ घसीटता जायेगा। ऐसी स्थिति में तारे के वातावरण में स्थित आवेशित कण विद्युत-चुंबकीय किरणों का उत्सर्जन करेंगे।
ये किरणें एक शंकु में मर्यादित होंगी और वह शंकु, एक खोज बत्ती की तरह, तारे के घूर्णन के साथ गोल-गोल घूमेगा। यदि उस शंकु के रास्ते में पृथ्वी स्थित है तो हमें वे किरणें स्पन्द के रूप में प्राप्त होंगी।
रेडियो तरंगों के ऐसे स्पंद पहली बार सन 1967 में जॉसलिन बेल द्वारा देखे गये। वे उस समय केंब्रिज में रेडियो खगोलशास्त्र की खोज छात्रा थीं। इन स्पंदों के स्त्रोत का नामकरण प्रजातिगत रूप से स्पंदक किया गया।
अब तक हमारी आकाशगंगा में कई स्पंदक पाये गये हैं। हमसे बहुत दूर होने के कारण उनसे पृथ्वी को किसी भी प्रकार की हानि संभव नहीं है। किंतु अगर कोई स्पंदक हमसे 30 प्रकाश वर्ष से कम दूरी पर होता तो उसमें से अत्याधिक गति से निकलने वाली ब्रह्मांडीय किरणें (कॉसमिक रेज) हमारे लिये हानिकारक साबित हो सकती थीं। सौभाग्यवश सभी ज्ञात स्पंदक हमसे बहुत दूर हैं। अगर कोई स्पंदक हमारे पास होता तो अब तक खोज लिया गया होता।