आकाशगंगा में तारों के बीच फैले विस्तीर्ण प्रदेश में गैस के विशाल मेघ हैं। ऐसे ही किसी गैस के मेघ का आकुंचन होते-होते उसमें से एक तप्त गोला तैयार होता है जो कि तारा बन जाता है, मतलब उसके केंद्र में परमाणु ऊर्जा का निर्माण होता है।
सूर्य का निर्माण भी ऐसे ही हुआ। पर, मूल गैस का मेघ अपने अक्ष पर घूम रहा होगा, इस कारण आकुंचन होते समय केंद्र में गोला व अक्ष के चारों ओर दूर तक फैली हुई एक चक्रिका जैसा उस गैस के मेघ का आकार रहा होगा और वह चक्रिका उस गोले के अक्ष पर चक्कर काट रही होगी।
यह सब गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है, गैस के मेघ के हिस्से एक दूसरे को आकर्षित कर पास आना चाहते हैं। लेकिन, अक्ष पर घूमने के कारण (अपकेंद्रीय बल से) मेघ के टुकड़े अक्ष से दूर फेंके जाते हैं।
केंद्र से सूर्य एवं चक्रिका से ग्रह, उपग्रह आदि का निर्माण हुआ होगा। अपने सूर्य या ग्रहों की उत्पत्ति करीब 5 अरब वर्षों पूर्व हुई होगी।
ग्रहमाला का आकार, ग्रहों के आकार और ग्रहों की संख्या आदि इस सिद्धांत से निश्चित नहीं किये जा सकते लेकिन अन्य तारों के आस-पास भी ग्रहमालाएँ होंगी यह अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है।