सुपरनोवा क्या होता है?

Share your love
Rate this post

एक विशाल द्रव्यमान वाले तारे का केंद्रभाग एक उष्णीय-नाभिकीय भट्टी (thermonuclear reactor) के समान कार्य करता है जो कि छोटे नाभिकों का संलयन कर बड़े नाभिक बनाता है।

इस प्रकार हाईड्रोजन से शुरू कर वह तारा उत्तरोत्तर हीलियम, कार्बन, ऑक्सीजन, नीयॉन, सल्फर, सिलिकॉन इत्यादि बनाता है और यह सिलसिला लोह, कोबॉल्ट एवं निकेल पर आकर समाप्त होता है।

इन सभी प्रक्रियाओं के दरमियान ऊर्जा निर्मित होती रहती है, जिस कारण तारा चमकता रहता है। किंतु, लौह समूह के नाभिक बनने के बाद नाभिकीय प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा निर्मित नहीं हो सकती और ये प्रक्रियाएं रुक जाती हैं।

ऊर्जा निर्माण के अभाव में तारे का संतुलन बनाये रखने के लिये जरूरी बल बन नहीं पाते। इस चरण में पर्याप्त गैस दबाव न होने के कारण तारे

अंतर्भाग तेज गति से आकुंचित होने लगता है। वह आकार में बहुत छोटा हो जाता है और अधिक घनता के कारण उसमें न्यूट्रॉन निषेध बल (प्रश्न 97 देखिये) महत्वपूर्ण हो जाता है। इस बल के कारण अंतर्भाग उछलता है और बाहर की तरफ फेंका जाता है। इससे एक अत्यधिक बलशाली प्रघाती तरंग (शॉक वेव) पैदा होती है जो कि तारे के बाहरी आवरण को विस्फोटित करती है।

ऐसा विस्फोट सुपरनोवा कहलाता है। विस्फोट के दौरान वह तारा कुछ समय तक असाधारण ऊर्जा से चमकता है। उसके बाद उसकी चमक कम होती जाती है। इस चमक का बढ़ना कुछ दिनों में होता है और उसका घटना चंद सप्ताह या महीनों में होता है।

ऐसा माना जाता है कि हमारी आकाशगंगा में 100 वर्षों में 3 से 4 सुपरनोवा विस्फोट होते हैं। लेकिन ये सब हम तारों के बीच फैले पदार्थों के शोषण के कारण नहीं देख पाते।

Share your love
Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

Articles: 1090

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *