सूर्य जैसे बड़े तारे से प्रकाश इसलिए बाहर निकलता है क्योंकि उसके भीतर परमाणु ऊर्जा का भंडार है (प्रश्न 83 देखिए) । इस ऊर्जा से निर्मित दबाव सूर्य का आकार बनाये रखते हैं। जब यह भंडार खत्म हो जाएगा तब अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण वह आकुंचित होगा।
इस आकुंचन के कारण सूर्य की घनता में वृद्धि होगी। बढ़ती घनता का मतलब परमाणुओं का पास-पास आना। क्वांटम का सिद्धांत (जो की अतिसूक्ष्म कणों के गुणधर्म तय करता है) बताता है कि एक निश्चित स्थिति में इलेक्ट्रॉन के समान गुणधर्म वाले मूलकण एक दूसरे के बहुत नज़दीक नहीं आ सकते।
इस कारण वस्तु के आकुंचन पाकर उसकी घनता बढ़ने पर पाबंदी आ जाती है। यह नये दबाव सूर्य के आकुंचन को के रोके रखते हैं। किंतु इस स्थिति तक पहुँचने के लिये सूर्य की औसत घनता उसकी आज की घनता से दस गुना अधिक होनी चाहिये।
तब सूर्य का आकार, उसकी त्रिज्या आज की तुलना में सौ गुना कम होगी। ऐसे तारे को सफेद बौना (White Dwarf) कहा जाता है। “बौना” इसलिए क्योंकि उसका आकार छोटा होगा और “सफेद” क्योंकि ऐसे तारे से सफेद रंग का प्रकाश निकलता है।
सन् 1930-35 के दरमियान चंद्रशेखर ने यह सिद्ध किया की किसी भी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 40 प्रतिशत से अधिक होने से यह दबाव निर्माण नहीं हो सकेंगे और ऐसे तारे का आकुंचन पाना अबाधित रहेगा।
यह द्रव्यमान की मर्यादा “चंद्रशेखर सीमा” के नाम से जानी जाती है। इस द्रव्यमान से कम वाले तारे सूर्य की तरह “सफेद बौने” के रूप में अपना शेष जीवन व्यतीत करेंगे।
इसके कुछ ही वर्षों बाद सफेद बौनों से भी अरब गुना अधिक घनता वाले तारों के होने की संभावना जताई गई। “न्यूट्रॉन तारे’ के नाम से पहचाने जाने वाले इन तारों में न्यूट्रॉन नामक कणों के समूह में चंद्रशेखर द्वारा बताये गए नियमों के अनुसार नये दबाव निर्माण होते हैं।
अगर तारों का द्रव्यमान सूर्य से 40 प्रतिशत से अधिक परंतु दुगुने या तिगुने से कम होगा तो ये दबाव तारों का आकुंचन रोके रख सकते हैं। ऐसे तारे “न्यूट्रॉन तारे के नाम से जाने जाते हैं।
न्यूट्रॉन तारे दृश्य प्रकाश में दिखाई नहीं पड़ते लेकिन उनमें से रडियो तरंगों के नियमित स्पंदन निकलते हैं, इसलिए वे स्पंदक(पल्सार) के रूप में पाए जाते हैं।