इन दो सिद्धांतों को सरल भाषा में बताना कठिन है। तथापि अल्बर्ट आईनस्टाईन द्वारा प्रस्थापित सापेक्षवाद के विशेष सिद्धान्त (सन 1905 में दिया हुआ) और साधारण सिद्धांत (सन् 1915 में दिया हुआ) संक्षेप में इस प्रकार है
विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत ‘सभी जड़त्वीय प्रेक्षकों (प्रश्न 79 देखिये) के लिये प्रकृति के नियम एक समान होते हैं, इस पूर्वधारणा पर आधारित है। इस धारणा से यह निष्कर्ष निकलता है कि एक दूसरे के सापेक्ष में स्थिर वेग से गमन कर रहे सभी जड़त्वीय प्रेक्षकों के अनुसार प्रकाश की गति एक समान होगी।
इस निष्कर्ष के कारण हमें न्यूटन के दौर की अंतरिक्ष-समय की धारणाएं बदलनी पड़ीं। प्रश्न 81 में बताये अनुसार यह सापेक्षतावाद समय के विस्तारण जैसे, हमारी अंतःप्रज्ञा को विचित्र लगने वाले प्रभाव स्थापित करता है।
तथापि ब्रह्मांडीय किरणों में एवं मानव निर्मित त्वरकों में मौजूद गतिमान सूक्ष्म कणों के अध्ययन से इसका सत्यापन किया जा चुका है साधारण सापेक्षतावाद इसके भी आगे जाकर गुरुत्वीय बलों के प्रभाव से अंतरिक्ष-समय के मापन में होने वाले परिवर्तन के बारे में प्रतिपादन करता है।
ये बल अंतरिक्ष-समय की ज्यामिति को स्कूलों में पढ़ाये जाने वाले युक्लिडियन ज्यामिति से भिन्न कर देते हैं। चित्र 7 में एक महाघन वस्तु के आस-पास की बदली हुई ज्यामिति को दर्शाया गया है। इस ज्यामिति को पहली बार सन 1916 में कार्ल श्वार्टजशाईल्ड ने प्रस्तुत किया था
( प्रश्न 103 देखिये)। आज तक इसका प्रेक्षणों द्वारा कई बार सत्यापन किया गया है। साधारण सापेक्षतावाद पूर्वानुमान करता है कि अति तीव्र गुरुत्वीय प्रभाव वाले क्षेत्र में घड़ियां, कम गुरुत्वीय प्रभाव वाले क्षेत्र में स्थित घड़ियों से धीमी गति से चलेंगी। यह पूर्वानुमान भी प्रयोगशालाओं में एवं खगोलशास्त्रीय प्रेक्षणों से सत्यापित किया गया है।