हम कोई वस्तु तब देख पाते हैं जब वह स्वयं प्रकाशित हो या फिर उस पर पड़ने वाली प्रकाश की किरणें बिखर कर उनमें से कुछ हमारी आँखों तक पहुँच रहीं हों।
प्रथम स्थिति में उस वस्तु द्वारा विकिर्णित प्रकाश का तरंग दैर्ध्य उसका रंग निश्चित करते हैं, जैसा की प्रश्न 1 में समझाया गया है। दूसरी स्थिति में वह वस्तु कुछ विशिष्ट दैर्ध्य की तरंगों का शोषण करती है।
और हम केवल बची तरंगें देख पाते हैं जो वस्तु का रंग निश्चित करती हैं। इस तरह पहली स्थिति में हमें कुछ तरंग दैयों के जोड़ से रंग दिखते हैं जबकि दूसरी स्थिति में घटाव के कारण।