ब्रह्मांड का प्रसरण हो रहा है इसके सही मायने क्या हैं?

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अपना सूर्य और उसकी ग्रहमाला एक विशाल तारा समूह के सदस्य हैं। इस समूह को हम आकाशगंगा कहते हैं। इसमें सूर्य जैसे 100 से 200 अरब तारे हैं।

संपूर्ण ब्रह्मांड में ऐसी असंख्य आकाशगंगाएँ हैं यह हम निरीक्षणों से जानते हैं। ऐसी ही किसी एक आकाशगंगा का वर्णपट्ट देखें तो उसमें कुछ काली रेखाएँ दिखाई पड़ती है। ये रेखाएँ शोषण रेखाओं के नाम से जानी जाती है और इनका तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) शोषण करने वाले परमाणु निश्चित करते हैं।

परंतु अधिकांश आकाशगंगाओं के बारे में देखा गया है कि इन शोषण रेखाओं का तरंग दैर्ध्य उनके निश्चित दैर्ध्य से अधिक होता है और वह लाल रंग की तरफ विस्थापित हुआ दिखता है।

यह दैर्ध्य की बढ़त क्या दर्शाती है ? भौतिक शास्त्र के अनुसार जब कोई प्रकाश का स्त्रोत हमसे दूर जा रहा होता है तो उसके वर्णपट्ट की रेखाएं लाल रंग की तरफ विस्थापित होती हैं और उनके विस्थापित होने का प्रमाण उस स्त्रोत के दूर जाने की गति के साथ बढ़ता है।

सन् 1929 में एडविन हबल ने ऐसे निरीक्षणों से एक नियम खोज निकाला- “कोई आकाशगंगा जितनी दूर, उतनी अधिक उसकी हम से दूर जाने की गति।”

इस नियम के अनुसार दूर की आकाशगंगाएँ पास की आकाशगंगाओं की तुलना में अधिक तेजी से हम से दूर जा रही हैं। इसी को ब्रह्मांड का प्रसरण कहते हैं। यह जिस अंतरिक्ष में हो रहा है उसी का प्रसरण हो रहा है।

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Rajveer Singh
Rajveer Singh

Hello my subscribers my name is Rajveer Singh and I am 30year old and yes I am a student, and I have completed the Bachlore in arts, as well as Masters in arts and yes I am a currently a Internet blogger and a techminded boy and preparing for PSC in chhattisgarh ,India. I am the man who want to spread the knowledge of whole chhattisgarh to all the Chhattisgarh people.

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