सन् 1676 में रोमर नामक शास्त्रज्ञ ने “गुरु” ग्रह के उपग्रहों में लगने वाले ग्रहणों के समय का अध्ययन कर प्रकाश की गति नापी जब गुरु उसके उपग्रह एवं सूर्य के बीच आता है तो उपग्रह को ग्रहण लगता है।
गुरु के अनेक उपग्रह होने और उनके तेज गति से घूमते रहने से हम कई ग्रहण देख पाते हैं। परंतु, पृथ्वी से हमें वह कुछ देर बाद दिखाई पड़ते हैं क्योंकि प्रकाश वहां से पृथ्वी तक आने में समय लेता है।
गुरु और पृथ्वी के बीच का अंतर, दोनों के प्रचलन के कारण बदलता रहता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए रोमर ने गणित का उपयोग कर प्रकाश की गति 3.5 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड निश्चित की।
आज हम जानते हैं की यह गति 2.997 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड है।
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