जब सूर्य से सौर पवन के रूप में निकलते गतिमान आवेशितकण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में आते हैं तो ध्रुवीय ज्योति की गतिविधि होती है।
इन कणों से रंगबिरंगी मनमोहक किरणें निकलती हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि प्रयोगशाला में किसी निर्वात नली में निर्वहन से निकलती हैं।
यह गतिविधि वसंत एवं शरद काल में अधिक अक्षांश (उत्तर व दक्षिण में 65 से 70 डिग्री) वाले क्षेत्र में ज्यादा प्रभावी होती है। चूँकि सौर पवन की प्रबलता पहले से ऑकी नहीं जा सकती,
हम ध्रुवीय ज्योति के दिखने की संभावना पहले से नहीं जता सकते। इसके प्रभाव से रेडियो तरंगों के प्रसारण में बाधा आ सकती है और पृथ्वी के चक्कर काट रहे मानव निर्मित उपग्रहों में भी खराबी आ सकती है।