एक घूर्णनशील भँवरे की तरह एक अक्ष के चारों ओर स्वतन्त्ररूप से घूर्णन करने वाली वस्तु सैद्धांतिक रूप में एक घूर्णिका होती है। घूर्णनशील भँवरा एक बिन्दु पर टिका होता है या फिर हम उसे एक डोरी द्वारा लटका सकते हैं।
इस बारे में एक रोचक बात यह है कि जब तक उस भँवरे पर कोई बल नहीं लगाया जाता, उसके घूर्णन की दिशा स्थिर रहती है। अगर हम इसकी दिशा बदलने के लिये इस पर दबाव डालें या उस पर कोई बल-युग्म लगायें तो भँवरे का पुरस्सरण होता है याने की उसके घूर्णन की अक्ष किसी अन्य अक्ष के चारों ओर घूमती है।
और यह घूमना सहज ज्ञान के विरोध में होता है। आप एक साईकिल के पहिये को उसके घूर्णन अक्ष से बंधी रस्सी से लटकाकर यह प्रयोग कर सकते हैं। अगर हम पहिये को छोड़ दें तो वह, गुरुत्वाकर्षण के कारण, क्षैतिज स्थिति में आ जायेगा।
मगर हम उसे उर्द्वधर स्थिति में रखकर घूर्णनशील करें तो वह गुरुत्वाकर्षण का विरोध करते हुए उर्द्धधर स्थिति में ही रहेगा। हम उसकी गतिकी को न्यूटन के गति के नियमों से समझ सकते हैं। घूर्णिका के दिशा की स्थिरता नौवाहन एवं विमान वाहन में इस्तेमाल की जाती है।