कृष्ण विवर में गिरी वस्तु का क्या होता है ?

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कृष्ण विवर अपने प्रखर गुरुत्वाकर्षण के कारण आस-पास की वस्तुओं को अपनी ओर खींचता है। मान लीजिये की कोई (अभागा ) व्यक्ति उसमें गिरता है और गिरते वक्त उसका सिर अंदर की तरफ और पैर बाहर की तरफ हैं।

सामान्यतः गुरुत्वाकर्षण का बल तारे के पास जाने से बढ़ता जाता है। इस कारण गिरते हुए व्यक्ति के सिर पर, उसके पैरों की तुलना में आकर्षण का बल अधिक होगा। इससे वह व्यक्ति लंबा खींचा जाएगा।

चंद्रमा के आकर्षण का पृथ्वी पर भी ऐसा ही असर पड़ता है। इसके परिणाम स्वरूप समुद्र में ज्वार-भाटा होता है। ऐसे तनाव निर्माण करने वाले गुरुत्वीय बल को ज्वार-भाटे का बल (टाईडल फोर्स) कहा जाता है।

कृष्ण विवर की तरफ गिरते वक्त इस बल में असीमित रूप से वृद्धि होती है और इस कारण कोई भी वस्तु (चाहे वह अभागा व्यक्ति ही क्यों न हो) छिन्न-भिन्न हो जाती है।

कृष्ण विवर के बाहर एक गोलाकार क्षितिज होता है। इसके अंदर कोई भी वस्तु जाने से उसका बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है और फिर उसके छिन्न-भिन्न होने या उसका बाद में क्या हुआ इत्यादि के बारे में हम बाहर बैठे निरीक्षण कर कुछ भी नहीं जान सकते।

पर आइन्स्टाइन का सिद्धांत यह दर्शाता है कि कोई वस्तु कृष्ण विवर के केंद्र तक आकर काल-अवकाश की सीमा पर पहुंचती है और उसके भविष्य का ही अंत हो जाता है ।

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