पृथ्वी के चारों ओर फैले वायुमंडल में विभिन्न गैसें होती हैं। उनमें प्रमुखतः नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन डायऑक्साईड शामिल हैं।
इनके अलावा कुछ अन्य गैसें भी अल्प प्रमाण में होती हैं। ओजोन उनमें से एक है। ऑक्सीजन के दो परमाणु मिलाकर प्राणवायु ऑक्सीजन (हम सांस लेते हैं वह) तैयार होती है, वहीं तीन परमाणु मिलाकर ओजोन।
ओजोन की पतली सी परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। यह परत इन किरणों का अवशोषण कर पृथ्वीतल तक पहुँचने से रोकती है।
अर्थात इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन (प्राणवायु) का विघटन, उसमें से निकले परमाणु का बची हुई प्राणवायु के संयोग से ओजोन का निर्माण और फिर वायुमंडल के अन्य अणु से प्रक्रिया कर ऑक्सीजन का पुनः निर्माण करना, यह चक्र चलता रहता है।
साधारणतः 15 से 20 किलोमीटर की ऊँचाई पर यह ओजोन की परत मौजूद होती है। अगर ओजोन की परत की मोटाई कहीं अत्यधिक कम हो जाए तो इसे परत में छिद्र का निर्माण होना कहा जाता है।
ऐसी स्थिति में उपरोक्त चक्र आगे नहीं बढ़ पाता। और इन छिद्रों से पराबैंगनी किरणें पृथ्वीतल तक पहुँच कर जीव-सृष्टि के लिये हानिकारक साबित हो सकती हैं।
उदाहरण स्वरूप इन पराबैंगनी किरणों की मार से त्वचा का कैंसर, अंधत्व आदि संभव हैं। ऍन्टार्टिका के ऊपर ऐसे छिद्रों का निर्मित होना, उनका बढ़ना, उपग्रह में लगे यंत्रों द्वारा सन् 1979 से 1987 के मध्य प्रमाणित भी किया गया।
पृथ्वी के अन्य हिस्सों पर भी ओजोन की परत में कमी पाई गई है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर बहुत विचार मंथन होता आ रहा है। वायुमंडल में होने वाले बदलाव, सूर्य के प्रकाश का उस पर प्रभाव और पृथ्वी में उत्पन्न होकर ऊपर जाने वाली गैसें, इन सबका इस घटना में योगदान है।
पर यह ठीक कितना और कैसे है, इसपर विशेषज्ञों में विवाद है। इनमें से तीसरी बात पर मानव का थोड़ा बहुत नियंत्रण है।
इस सिलसिले में सी.एफ.सी. (क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन). इस रासायनिक द्रव्य का विषय चर्चा में है। रेफ्रीजरेटर में शीतलता पैदा करने की प्रक्रिया के दौरान ऐसे द्रव्य निकलते हैं। इसी तरह प्लास्टिक के गुब्बारे बनाने के दौरान एवं टिन से द्रवों के छिड़काव के दौरान भी सी.एफ.सी. बाहर निकलते हैं।
fयह द्रव्य सीधे ऊपर वायुमंडल में जाकर वहां मौजूद ओजोन को रासायनिक प्रक्रिया द्वारा नष्ट करते हैं। इसलिए ऐसा एक मत प्रवाह में है कि ओजोन की परत स्थिर रखने के लिये सी.एफ. सी. के उत्पादन पर रोक लगानी चाहिये। परंतु, इससे ओजोन पर हो रहा आक्रमण थमेगा या नहीं यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।