धूमकेतु के कक्षा में घूमते हुए उसमें से धूल कण बाहर निकलते रहते हैं। जब उसकी कक्षा पृथ्वी की कक्षा के करीब से गुजरती है तब कुछ कूड़ा पृथ्वी के रास्ते में आता है।
ये धूल के गोले पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उसकी ओर उड़ान भर उसके वायुमंडल से गुजरते वक्त घर्षण से गरम हो जाते हैं। और चमकते हैं।
ऐसे कई गोलों की बौछार ही उल्का बौछार (Meteo Shower) कहलाती है। दूर से हमें ये टूटते तारों जैसे दिखते हैं पर असल में ये छोटे-छोटे गोले होते हैं।
पृथ्वी कीकक्षा में कुछ ही जगह पिछले धूमकेतुओं का ऐसा कूड़ा है, इस में कारण साल में कुछ खास समय ही ( पृथ्वी के वहां से गुजरते समय) यह वर्षा नज़र आती है।
यह समय है: 1-20 अगस्त (ययाती नक्षत्र), 11- 20 नवंबर (सिंह तारका समूह में), 20-22 अप्रैल (स्वरमंडल नक्षत्र में). 24-27 नवंबर (देवयानी), 9-14 दिसंबर (मिथुन) एवं 30 मई से 14 जून (मेष)।